रैणी आपदा के लिए रिसर्च टीम ने वेदर अर्ली वार्निंग सिस्टम को बताया जिम्मेदार, नोटिस हुआ जारी

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Published : Dec 29, 2021, 6:22 PM IST

Updated : Dec 29, 2021, 6:30 PM IST

Raini disaster chamoli

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्यों को रिसर्च पेपर में कमजोर मौसम पूर्व चेतावनी तंत्र का जिक्र करना भारी पड़ गया है. रिसर्च टीम ने रैणी आपदा में वेदर अर्ली वार्निंग सिस्टम न होने की वजह से मौतें होने की वजह बताई है. जिस पर अब उन्हें नोटिस थमा दिया गया है.

चमोलीः रैणी आपदा मामले में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्यों ने एक रिसर्च पेपर लिखा है. जिसमें उन्होंने बताया कि मौसम पूर्व चेतावनी तंत्र (Weather Early Warning System) न होने की वजह से मौतें हुईं, लेकिन मामले पर अपर मुख्य कार्यधिकारी प्रशासन जितेंद्र कुमार सोनकर ने नाराजगी जाहिर की है. इतना ही नहीं उन्होंने अपनी नोडल एजेंसी को कारण बताओ नोटिस भी जारी कर दिया है.

दरअसल, अपर मुख्य कार्यधिकारी प्रशासन जितेंद्र कुमार सोनकर ने उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सचिव पीयूष रौतेला और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ. गिरीश चंद्र जोशी, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भू वैज्ञानिक सुशील खंडूड़ी, यूएनडीपी एवं ग्राम्य विकास और जीआईएस कनसल्टेंट सुरभि कुंडलिया को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. साथ ही मामले में 7 दिनों के भीतर जबाब देने को कहा है.

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अपर मुख्य कार्यधिकारी जितेंद्र कुमार सोनकर ने रिचर्स करने वाले अधिकारियों पर एक अंग्रेजी अखबार के समाचार का संज्ञान लेते हुए मौसम पूर्व चेतावनी तंत्र को कमजोर दर्शाने में भी स्पष्टीकरण मांगा है. साथ ही रिसर्च पेपर की जानकारी को बगैर अनुमति के अखबारों में प्रकाशित करने पर भी नाराजगी जाहिर की है.

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गौर हो कि बीती 7 फरवरी को चमोली के तपोवन क्षेत्र में रैणी गांव के पास ऋषिगंगा में आए जल सैलाब से भारी तबाही मची थी. जिसकी चपेट में आने से ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना और एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना में कार्यरत 204 लोगों की मौत हो गई थी. अभी भी कई लोग लापता चल रहे हैं. इस तबाही का जख्म अभी भी नहीं भर पाया है.

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रैणी गांव में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगा: उत्तराखंड एसडीआरएफ ने 31 जुलाई को रैणी गांव में फिर से अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को एक्टिवेट कर दिया था. ऐसे में नदी का जलस्तर यदि बढ़ता है तो वॉर्निंग सिस्टम के जरिए आस-पास के गांवों को अलर्ट कर दिया जाएगा और 5 से 7 मिनट के भीतर पूरे इलाके को खाली कराया जा सकता है.

चमोली हादसे की वजह: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के वैज्ञानिकों ने जांच के बाद पाया कि करीब 5,600 मीटर की ऊंचाई से रौंथी पीक (Raunthi Peak) के नीचे रौंथी ग्लेशियर कैचमेंट में रॉक मास के साथ एक लटकता हुआ ग्लेशियर टूट गया था. बर्फ और चट्टान का यह टुकड़ा करीब 3 किलोमीटर का नीचे की ओर सफर तय कर करीब 3,600 मीटर की ऊंचाई पर रौंथी धारा तक पहुंच गया था, जो रौंथी ग्लेशियर के मुंह से करीब 1.6 किलोमीटर नीचे की ओर मौजूद है.

वैज्ञानिकों के अनुसार रौंथी कैचमेंट में साल 2015-2017 के बीच हिमस्खलन और मलबे के प्रवाह की घटना देखी गई. इन घटनाओं ने डाउनस्ट्रीम में कोई बड़ी आपदा नहीं की. लेकिन कैचमेंट में हुए बड़े बदलाव की वजह से रौंथी धारा के हिमनद क्षेत्र में ढीले मोरेनिक मलबे और तलछट के संचय का कारण बना.

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लिहाजा, 7 फरवरी 2021 को बर्फ, ग्लेशियर, चट्टान के टुकड़े, मोरेनिक मलबे आदि चीजें एक साथ मिक्स हो गए, जो करीब 8.5 किमी रौंथी धारा की ओर नीचे आ गया और करीब 2,300 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया. जिससे एक पानी के झील का निर्माण हुआ.

ऋषिगंगा नदी से आई आपदा: रौंथी कैचमेंट से आए इस मलबे ने ऋषिगंगा नदी पर स्थित 13.2 मेगावाट क्षमता वाले हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट को तबाह कर दिया. इसके साथ ही रैणी गांव के पास ऋषिगंगा नदी पर नदी तल से करीब 70 मीटर ऊंचाई पर बना एक बड़ा पुल भी बह गया था, जिससे नदी के ऊपर के गांवों और सीमावर्ती क्षेत्रों में आपूर्ति बाधित हो गई और फिर यह मलबा आगे बढ़ते हुए तपोवन परियोजना को भी क्षतिग्रस्त कर गया.

तपोवन हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट क्षमता की परियोजना थी. चमोली आपदा के दौरान तपोवन एचईपी में करीब 20 मीटर और बैराज गेट्स के पास 12 मीटर ऊंचाई तक मलबा और बड़े-बड़े बोल्डर जमा हो गए थे. जिससे इस प्रोजेक्ट को भी काफी नुकसान पहुंचा था. इस आपदा ने न सिर्फ 204 लोगों की जान ले ली, बल्कि अपने रास्ते में आने वाले सभी बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया. आपदा में करीब 1,625 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.

Last Updated :Dec 29, 2021, 6:30 PM IST
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