देहरादून राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के मुताबिक देश में हर 40 घंटे में एक बाघ की मौत हो रही है और इस साल अब तक अलगअलग राज्यों में 30 बाघों की मौत हो चुकी है जिसे लेकर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एनटीसीए सहित राज्यों की सरकार भी चिंतित है दरअसल एनटीसीए की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश का रिकॉर्ड सबसे खराब है और वहां इस साल जनवरी से 20 फरवरी तक सबसे ज्यादा 9 मौतें हुईं हैं इसके बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है जहां पर सात बाघों की मौत हुई है तीसरे नंबर पर कर्नाटक और राजस्थान हैं जहां पर तीनतीन मौतें हुईं हैं उत्तराखंड और असम में दोदो और तमिलनाडु केरल बिहार और उत्तर प्रदेश में एकएक बाघ की मौत एक जनवरी से 20 फरवरी के बीच हुई है ऐसे में एनटीसीए ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह ना केवल बाघ संरक्षण प्राधिकरण को सवालों में खड़ा कर रहा है बल्कि यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या डायनासोर की तरह भारत में बाघ भी आने वाले कुछ सालों में लुप्त हो जाएंगेइतना खर्च करती है उत्तराखंड सरकार मोदी सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के बजटीय आवंटन को 185 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2022 में 300 करोड़ रुपए कर दिया था वहीं उत्तराखंड सरकार भी प्रदेश में बाघ संरक्षण के लिए चार से पांच करोड़ रुपए खर्च करती है इसके बाद भी जंगलों से बाघों की संख्या तेजी से कम हो रही हैउत्तराखंड में बाघों की संख्या साल 2018 में हुई बाघों की गणना के मुताबिक देश में कुल 2967 बाघ हैं बात उत्तराखंड की करें तो आंकड़े सुकूनदायक हैं क्योंकि प्रदेश में बाघों की संख्या 442 है वहीं सबसे ज्यादा 526 बाघ मध्य प्रदेश में हैं इसके बाद कर्नाटक में 524 बाघ मौजूद हैं एक समय था जब मध्य प्रदेश केरलकर्नाटक और उत्तराखंड में बाघों की संख्या बहुतायत थी लेकिन कभी रोड एक्सीडेंट तो कभी इनके शिकार इनकी मौत की मुख्य वजह बन रही है हलाकि अधिकारी मानते है कि प्राकृतिक मौत से सबसे अधिक बाघ मारे जा रहे हैंये भी पढ़ें World Tiger Day 2022 बाघ संरक्षण में सीटीआर अव्वल ट्रिपल सेंचुरी की उम्मीदउत्तराखंड में हर महीने हो रही एक बाघ की मौत उत्तराखंड में भी हर महीने में एक बाघ की मौत हो रही है जबकि तेंदुए की मौत का भी यही हाल है उत्तराखंड में भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी WPSI Wildlife Protection Society of India के प्रोग्राम मैनेजर टीटो जोजफ का कहना है कि उत्तराखंड में बाघ अधिकतर नेचुरल डेथ ही मर रहे हैं लेकिन ये बात भी गंभीर है कि कुमाऊं और गढ़वाल में कई जगह पर बाघों की खाल के साथ कई लोग गिरफ्तार भी हुए है ये सभी घटना बताती हैं कि उत्तराखंड के जंगलो में भी बाघों पर शिकारियों की पैनी नजर है जो चिंता का विषय है उत्तराखंड के कॉर्बेट से लेकर राजाजी नेशनल पार्क में बाघ और तेंदुआ के साथसाथ अन्य जानवरों के लिए भी अच्छा माहौल है ऐसे में हमे शिकारियों पर शिकंजा कसना होगातेंदुए भी तेजी से घट रहे ऐसा नहीं है की देश में सिर्फ बाघों की संख्या ही घट रही है इसी श्रेणी में आना वाला तेंदुआ भी अपनी जान से हाथ धो रहा है NTCA की रिपोर्ट के मुताबिकदेशभर में 2001 में 167 तेंदुओं की मौत हुई थीसाल 2002 में 892003 में 1482004 में 1232005 में 2002006 में 1652007 में 1262008 में 1572009 में 1652010 में 1842011 में 1882012 में 1402013 में 1112014 में 1182015 में 1272016 में 1542017 में 1592018 में 1692019 में 1132020 में 1702021 में 1822022 में 162और 2023 में अभी तक 25 तेंदुए मारे जा चुके हैं