आसमान छू रहे सब्जियों के दाम, खेती संबंधी विस्तृत कार्य योजना की जरूरत

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Published : Sep 20, 2020, 7:59 AM IST

price hike

कोरोना वायरस महामारी का असर हर क्षेत्र में देखने को मिल रहा है. इसका असर सब्जियों के दामों में भी साफ देखा जा सकता है. संक्रमण रोकने किए गए लॉकडाउन से परिवहन सुविधाओं की कमी और मजदूर नहीं मिलने के कारण सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं.

सब्जियों के दाम गर्मी के मौसम में सूरज के साथ होड़ लगाकर बढ़ते हैं. जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती वैसे-वैसे सब्जियों के दाम भी बढ़ते जाते हैं. आमतौर पर बारिश के मौसम के दौरान कीमतें कम रहती हैं. कोविड संकट के दौरान अच्छी बारिश के बाद भी सब्जियों की कीमतें पूरे देश में बढ़ रही हैं. पिछले कुछ दिनों से पूरे उत्तर भारत में फूलगोभी, हरा मटर, टमाटर, आलू और प्याज के दाम आसमान छू रहे हैं. पुणे से कोलकाता तक और दिल्ली से चेन्नई तक हर जगह आपूर्ति बाधित रहने के कारण कीमतें असामान्य रूप से बढ़ रही हैं.

तेलुगु राज्यों में आम उपभोक्ता चिंता व्यक्त कर रहा है कि एक किलो बीन्स की कीमत करीब 80 रुपये है और फलियां 70 रुपये की हैं. स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली सब्जी की किस्में जैसे तुरई, लौकी, ककड़ी, करेला इत्यादि भारी बारिश के कारण प्रभावित हुई हैं और सब्जियों की कम आपूर्ति के कारण आम जनता को बहुत अधिक असुविधा हो रही है. विभिन्न कारणों से सब्जी की खेती के रकबे में कमी आई है. सब्जी के लिए हैदराबाद शहर अन्य राज्यों से आपूर्ति पर निर्भर है, सब्जियों को लाने के किराए में बढ़ोतरी और मजदूरी बढ़ने का इस पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा है.

दूसरी ओर कर्नाटक जैसी जगहों पर अधिक उत्पादन और मांग की कमी के कारण किसान या तो अपनी उपज को फेंक रहे हैं या मुफ्त में बांट रहे हैं. गुजरात में मूंगफली, हिमाचल में टमाटर, पंजाब और हरियाणा में आलू और तेलुगु मिट्टी पर प्याज और ककड़ी (डोंडाकाया) के उत्पादकों को इस तरह के कड़वे अनुभवों का सामना करना पड़ा.

अब भी कोरोना के भय के कारण परिवहन सुविधाओं की कमी और मजदूर नहीं मिलने के कारण विभिन्न हिस्सों में किसान शोक जता रहे हैं कि उनके सभी प्रयास बर्बाद हो गए. रोजमर्रा की जरूरत की आवश्यक चीजों की आपूर्ति चेन बाधित होने की वजह से उपभोक्ताओं को बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है.

हाल के दिनों तक प्याज सौ रुपये में छह किलो बेचा जा रहा था, लेकिन अब यह 40 रुपये प्रति किलो है. केंद्र ने हाल ही में घरेलू बाजार में प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए दूसरे देशों में निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. खबरों से पता चलता है कि सरकार उपभोक्ताओं को कुछ राहत देने के लिए 50 हजार टन प्याज का बफर स्टॉक रखने पर विचार कर रही है.

केवल प्याज ही नहीं पूरे साल उचित मूल्य पर विभिन्न तरह की सब्जियां उपलब्ध हो इसके लिए तत्काल एक ठोस कार्य योजना बनाने की आवश्यकता है. एक अनुमान है कि देश में जितनी फल और सब्जियों का उत्पादन होता है उसका 18 फीसद रखने की उचित सुविधाओं की कमी के कारण हर साल बर्बाद हो जाता है.

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खराब हो जाने वाली उपज को रखने के लिए उन स्थानों पर उचित कोल्ड स्टोरेज की सुविधा नहीं होने के कारण देश को प्रति वर्ष करीब 92 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है. हालांकि नेतृत्व का कहना है कि देश भर में तीन करोड़ टन से अधिक कोल्ड स्टोरेज की क्षमता उपलब्ध हैं, जिनमें से 75-80 प्रतिशत आलू के भंडारण के लिए हैं. यह योजना प्रक्रिया में प्राथमिकता के आधार पर सुधार की कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को इंगित करता है.

केंद्र और राज्य सरकारों को संबंधित पंचायतों से देश में विभिन्न स्थानों पर इसका पता लगाना चाहिए कि देश के किस हिस्से में कौन सी फसल अधिक बोई जाती है और फसलों को उगाने के लिए एक विस्तृत कार्य योजना तैयार करनी चाहिए. यह सुनिश्चित करने के लिए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विश्वविद्यालय पैदावार बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाएं. उस तरह के प्रयास एक पुनर्जीवित कृषि प्रधान भारत के उदय की शुरुआत के रूप में होनी चाहिए.

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