आईसीडीएस : कैसे पूरा होगा परियोजना का मूलभूत मिशन

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Published : Oct 5, 2020, 10:20 PM IST

आईसीडीएस के लिए आवंटित फंड

भारत में समेकित बाल विकास सेवा कार्यक्रम के लिए आवंटित धनराशी को दूसरे कार्यक्रमों के तरफ मोड़ दिया गया. इस बात का खुलासा कैग की रिपोर्ट में हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में आईसीडीएस के लिए बजट का आवंटन को भी कम किया गया है, जिस कारण इस कार्यक्रम पर नकारात्मक असर पड़ा है. पढ़ें यह रिपोर्ट.

भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिन्होंने 1975 की शुरुआत में समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) कार्यक्रम शुरू किया था. इस योजना का उद्देश्य छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं को पौष्टिक भोजन, पूर्व स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और टीकाकरण सेवाएं सुनिश्चित करना था. यह योजना शुरू में 5 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों के साथ शुरू की गई थी, लेकिन 7 हजार ब्लॉकों में 14 लाख केंद्रों के बाद भी परियोजना के मूलभूत मिशन को पूरा करना कोसों दूर है.

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में बताया कि भारत शिशु कल्याण के क्षेत्र में घाना और टोबैगो जैसे अफ्रीकी देशों की तुलना में इतना खराब प्रदर्शन क्यों कर रहा है. कैग की रिपोर्ट ने महिला और बाल विकास मंत्रालय की यह कहते हुए निंदा की है कि उसने समेकित बाल विकास सेवा के लिए आवंटित धनराशि को उन गतिविधियों की ओर मोड़ दिया, जिनके लिए कार्यक्रम के तहत अनुमति नहीं दी गई. पिछले कुछ वर्षों में आईसीडीएस के लिए बजट का आवंटन को भी कम किया गया है. 2016 में लगभग 50 प्रतिशत फंड में कटौती हुई थी.

पोषण संबंधी सूचकांकों के बावजूद इस योजना में 2020 के केंद्रीय बजट में 19 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. कुछ राज्यों ने अपने वित्तीय विवरण का ब्योरा प्रस्तुत किया है, लेकिन वास्तविक व्यय और धन के उपयोग के बीच विसंगतियां साफ है.

सितंबर 2019 में प्रकाशित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की रिपोर्ट में 5 वर्ष की आयु से कम 68 प्रतिशत बच्चों की मौत कुपोषण से हुई है. 5 वर्ष से कम आयु के 35 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं और 17 प्रतिशत बच्चे क्षीण हालात में हैं. इन आंकड़ों से पता चलता है कि कैसे अपर्याप्त आवंटन और खराब निगरानी ने इस योजना को नकारात्मक तौर पर प्रभावित किया है.

आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि आंगनबाड़ी केंद्र 8.5 करोड़ 6 वर्ष की आयु से कम बच्चों और 1.90 करोड़ स्तनपान कराती माताओं की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में लगे हुए हैं. 2001 में सर्वोच्च न्यायलय ने टीकाकरण और पोषण कार्यक्रमों को लागू करने के लिए केंद्र को देशभर में 17 लाख आंगनबाड़ी केंद्र स्थापित करने का आदेश दिया था. राज्य सरकारों से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने के बाद भी हजारों केंद्र अभी भी काम नहीं कर रहे हैं.

इसके अलावा अब महामारी ने कई ग्रामीण बाल देखभाल केंद्रों के कामकाज को पंगु बना दिया है. हाल ही में शीर्ष अदालत ने भूख की महामारी को रोकने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों को फिर से खोलने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी है. हालांकि कोविड-19 के दौरान दूरदराज के गांवों में आदिवासी महिलाओं के कल्याण के लिए अधिकारियों ने प्रयास किए हैं, लेकिन ये कदम सामान्य से ज्यादा विशेष मामले थे.

दिसंबर 2019 में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने विशेष तौर पर पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में आंगनबाड़ी केंद्रों में विशाल स्टाफ रिक्त पदों की पुष्टि की है. धनराशि की कमी का हवाला देते हुए केंद्र न तो ठेकेदारों के बिलों को मंजूरी दी हैं और न ही कर्मचारियों को वेतन दे रहे हैं.

केंद्र और राज्य सरकारों को समझना चाहिए कि भारत को पोषण सुरक्षा पर ध्यान क्यों देना चाहिए, जैसा कि एमएस स्वामीनाथन ने कहा है कि भारत के सबसे कम उम्र के नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समेकित बाल विकास सेवा को सुधारना आवश्यक है.

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