विश्व अल्जाइमर दिवस : बीमारी से बचाव के लिए जरूरी है जन जागरूकता

author img

By

Published : Sep 21, 2021, 10:53 AM IST

what is alzheimers, can alzheimers be treated, what is the treatment for alzheimers, alzheimers, World alzheimers day, alzheimers day, what are the causes of alzheimers, how to prevent alzheimers, neurological disorders, what are neurological disorders, what is the cure for alzheimers, अल्जाइमर, what is dementia

अल्जाइमर एक मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी याददाश्त खोने लगता है. गंभीर होने पर यह रोग शरीर के संतुलन और संचालन को भी प्रभावित कर सकता है. दुनिया भर में लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से हर वर्ष 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है.

बुजुर्गों की बीमारी कहा जाने वाला अल्जाइमर रोग डिमेंशिया का एक प्रकार है, जिसके चलते पीड़ित को भूलने की समस्या होने लगती है. समस्या गंभीर होने पर न सिर्फ पीड़ित का तंत्रिका तंत्र बल्कि शरीर के अन्य तंत्र तथा उनके कार्य भी प्रभावित होने लगते हैं और उनका उनके शरीर पर नियंत्रण कम होने लगता है. घातक कही जाने वाली इस बीमारी के बारे में लोगों में जागरूकता बहुत जरूरी है, साथ ही जरूरी है इस बीमारी के बारे में चर्चा करना, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इस बीमारी तथा इसके लक्षणों, प्रभावों व इलाज के बारें में जान सकें. इसी के चलते इस वर्ष इस कैंपेन की थीम है "क्नोव डिमेंशिया, क्नोव अल्जाइमर".

इतिहास

यूं तो विश्व अल्‍जाइमर दिवस मनाए जाने की शुरुआत 21 सितंबर 1994 को एडिनबर्ग में एडीआई के वार्षिक सम्मेलन के दौरान की गई थी, लेकिन सबसे पहले इस रोग की खोज सन 1906 में जर्मन मनोचिकित्‍सक और न्‍येरोपैथोलॉजिस्‍ट डॉ. अल्‍जाइमर ने की थी. दरअसल उस समय एक मानसिक बीमारी के चलते एक महिला की मृत्यु हो गई थी. मृत्यु के कारणों के निरीक्षण के दौरान महिला के मस्तिष्‍क में ऊतकों में परिवर्तन देखा गया था. जांच में सामने आई इस बीमारी को अल्‍जाइमर नाम दिया गया और इसे घातक रोगों की श्रेणी में रखा गया. गौरतलब है की सितम्‍बर का महीना अल्‍जाइमर को समर्पित किया गया है.

बुजुर्गों की बीमारी है अल्जाइमर

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली की तरफ से जारी एक एडवाइजरी में बताया गया था की वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में करीब 16 करोड़ बुजुर्ग (60 साल के ऊपर) हैं, इनमें से 60 से 69 साल के करीब 8.8 करोड़, 70 से 79 साल के करीब 6.4 करोड़, दूसरों पर आश्रित 80 साल के करीब 2.8 करोड़ और 18 लाख बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनका अपना कोई घर नहीं है या कोई देखभाल करने वाला नहीं है.

आंकड़ों की माने तो भारत में लगभग 40 लाख से अधिक लोगों को किसी न किसी प्रकार का डिमेंशिया है. वहीं विश्व भर में कम-से-कम 4 करोड़ 40 लाख लोग डिमेंशिया से ग्रस्त हैं. जिनमें से अधिकांश बुजुर्ग हैं. चिकित्सक तथा जानकार मानते हैं की यह आंकड़ा ज्यादा हो सकता है क्योंकि ज्यादातर बुजुर्ग जानकारी के अभाव, तथा अन्य आर्थिक, सामाजिक व पारिवारिक कारणों से यह समस्या होने पर चिकित्सों से संपर्क नहीं कर पाते हैं.

अल्जाइमर रोग के कारण

यह सत्य है की इसे बुजुर्गों की बीमारी कहा जाता है, लेकिन अल्जाइमर के लिए हमेशा ज्यादा उम्र जिम्मेदार नहीं होती है. यह रोग कुछ विशेष परिस्तिथ्यों में कुछ अन्य कारणों से भी हो सकता है, जो इस प्रकार हैं:

  • जेनेटिक कारण – परिवार में अल्जाइमर रोग का इतिहास होने पर भी यह रोग होने की आशंका हो सकती है.
  • सिर पर चोट लगना- यदि किसी व्यक्ति के सिर पर चोट लगी है, तो उसे अल्जाइमर रोग होने की बीमारी की आशंका हो सकती है.
  • किसी अन्य बीमारी से पीड़ित होना- कई बार डायबिटीज या दिल संबंधी बीमारी से पीड़ित लोगों में भी अल्जाइमर के लक्षण देखने में आ सकते हैं. ऐसे लोगों को अपनी बीमारियों का सही तरीके से इलाज कराना चाहिए ताकि उन्हें अल्जाइमर रोग जैसी गंभीर बीमारी न हो.
  • तनाव का शिकार होना- अल्जाइमर रोग का खतरा तनाव से पीड़ित लोगों में भी काफी अधिक रहता है.

अल्‍जाइमर के लक्षण

उम्र बढ़ने के साथ-साथ मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर असर पड़ने लगता है, जिसके चलते कई बार बातों व लोगों को याद करने में समस्याएँ आने लगती है. लेकिन अल्ज़ाइमर रोग तथा अन्य प्रकार के डिमेंशिया होने की अवस्था में यरदाश्त में कमी के अलावा अन्य लक्षण भी नजर आने लगते हैं जो पीड़ित के सामान्य जीवन जीने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं. अल्ज़ाइमर के अन्य लक्षण इस प्रकार हैं:

  • सामान्य व सरल कार्यों को पूरा करने में भी समस्या होना
  • बातों, निर्देशों और परिस्थितियों को समझने में कठिनाई आना
  • मूड, मनोदशा और व्यक्तित्व में बदलाव
  • हैल्यूसिनेशन या पैरानोइया
  • अपने शब्दों को दोहराना
  • बेचैनी तथा एकाग्रता में कमी
  • दोस्तों एवं परिवार से स्वयं को अलग कर लेना या उनसे कम बात करना
  • दूसरों से बात करने तथा लिखित या मौखिक दोनों ही प्रकार से संपर्क करने में परेशानी होना
  • जगहों, लोगों और घटनाओं के बारे में विभ्रम पैदा होना
  • देखने संबंधी बदलाव, जैसे कि तस्वीरों या छवियों को समझने में दिक्कत

जरूरी है शारीरिक और मानसिक सक्रियता

यूं तो अभी तक इस बीमारी का कोई सटीक इलाज नहीं मिला है. लेकिन चिकित्सक मानते हैं की डिमेंशिया/ अल्ज़ाइमर से बचने में शारीरिक और मानसिक सक्रियता काफी मददगार हो सकती है. चिकित्सक मानते हैं की शुरुआती अवस्था में इस रोग की जांच और निदान के द्वारा मरीज के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है.

पढ़ें: ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चर अल्जाइमर रोग के संभावित कारण की पहचान की

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.