योगिनी एकादशी व्रत आज, जानिए क्यों है यह व्रत सबसे अलग और खास

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Published : Jun 23, 2022, 6:45 PM IST

Updated : Jun 24, 2022, 6:08 AM IST

etv bharat

इस बार आषाढ़ माह की योगिनी एकादशी आज मनाई जाएगी. आइए जानते हैं योगिनी एकादशी अन्य एकादशी से किस प्रकार अलग है और यह हमारे लिए किस प्रकार लाभप्रद है.

वाराणसी: सनातन धर्म में हिंदू महीने के अनुसार अलग-अलग व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं. इनमें एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है. भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित यह दिन अपने आप में अलग-अलग एकादशी के रूप में मनाया जाता है. आज योगिनी एकादशी का पर्व है.


श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद के सदस्य एवं प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि एकादशी व्रत के विषय में मत्स्य, कूर्म, ब्रह्मांड, वाराह, स्कंध और भविष्य आदि सभी पुराणों में अनेक वर्गों की विधियां और विवरण देखने में आते हैं. व्रत के बाद व्रत कथा सुनाने की विधि का वर्णन पुराणों में यत्र-तत्र-सर्वत्र सुलभ है. हेमाद्रिव्रतखंड' में व्रत करने के अधिकार के विषय में भी लिखा गया है. चारों वर्णों के स्त्री पुरुषों का व्रत में अधिकार है, किंतु व्रतकाल में निर्दिष्ट गुणों की नितांत आवश्यकता है. अपने वर्ण के अनुसार ही व्रत करें, जो वेद का निंदक नहीं है. उसी का व्रत में अधिकार है.

परिजनों की अनुमति लेकर करना चाहिए व्रत: शास्त्र के मतानुसार कुमारी को पिता की आज्ञा, सौभाग्यवती को पति की आज्ञा और सहमति लेकर व्रत करना चाहिए अन्यथा व्रत निष्फल हो जाता है. बहुत सारे विद्वानों ने एकादशी के विषय में बताया है. एकादशी व्रत के विषय में प्रसिद्ध ऋषि वशिष्ठ का वचन है कि जिस तिथि में सूर्योदय होता है वह तिथि यदि मध्यान्ह तक न रहे तो वह खंडा तिथि कहलाती है. उसमें व्रत आरंभ नहीं करना चाहिए. इसके विपरीत अखंडा तिथि में व्रत आरंभ करना उचित है. व्रत के पूर्व दिन संयम रख संकल्प व्रत आरंभ करना होता है. यज्ञ, विवाह, श्राद्ध, होम, पूजा, पुरश्चरण आदि में आरंभ से पहले सूतक लगता है, आरंभ के बाद नहीं लगता.

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योगिनी एकादशी के दिन भोजन का निषेध माना गया है. दूध अथवा जलपान करके उपवास हो सकता है. एकादशी का व्रत सर्व साधारण जनता के लिए अपरिहार्य सिद्ध होता है. गृहस्थ, ब्रह्मचारी, सात्विक किसी को भी एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए. यह नियम शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में लागू रहेगा. असमर्थ रहने पर ब्राह्मण द्वारा अथवा पुत्रद्वारा उपवास कराने का विधान वायुपुराण में मिलता है.

फल का आहार करके रख सकते हैं व्रतः पंडित प्रसाद दीक्षित का कहना है कि मारकंडेय स्मृति के अनुसार बाल, वृद्ध, रोगी भी फल का आहार करके एकादशी का व्रत कर सकते हैं. वशिष्ठ स्मृति के अनुसार दशमी युक्त एकादशी में उपवास नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से संतान का नाश होता है. एकादशी के दिन बार-बार खाना, मल मूत्र का त्याग करना, मिथ्या बोलना तथा ईर्ष्या करना निषेध माना गया है. जो लोग एकादशी के दिन नियमपूर्वक व्रत-उपवास करते हैं, उनके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती. एकादशी की तरह अमावस्या और पूर्णिमा को भी नित्यव्रत कहा जाता है. इन दोनों तिथियों में पृथ्वी, चंद्र और सूर्य तीनों समसूत्र में होते हैं. अमावस्या में चंद्र पृथ्वी और सूर्य के बीच में होता है.

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दोषों का होता है निवारणः इस प्रकार जो चंद्र का अंश पृथ्वी की ओर होता है. उसमें सूर्य किरण के स्पर्श न होने से उस दिन दिखाई नहीं देता. पूर्णिमा तिथि को पृथ्वी चंद्र और सूर्य के बीच में होती है. इस कारण संपूर्ण मंडल के साथ चंद्रमा का प्रकाश पृथ्वी पर हो जाता है. अतः सिद्ध होता है कि समसूत्र में रहने के कारण पूर्णिमा और अमावस्या दोनों तिथियों में चंद्र का विशेष प्रभाव पृथ्वी पर हो जाता है, जिससे पृथ्वी में रहने वाले जीवो के शरीर और मन दोनों ही स्वस्थ तथा चंचल हो सकते हैं. सब दोषों के निवारण के लिए एकादशी व्रत करने की आवश्यकता है. पूर्णमासी और अमावस्या में भी अवश्य व्रत करना चाहिए यही शास्त्र का सिद्धांत है.

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Last Updated :Jun 24, 2022, 6:08 AM IST
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