जयंती विशेष: अवधी भाषा को पहचान दिलाने वाले साहित्यिक कवि पढ़ीस, अपनी ही जन्मभूमि पर हैं गुमनाम

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Published : Sep 25, 2021, 2:33 PM IST

अपनी ही जन्मभूमि पर गुमनाम हैं कवि पढ़ीस

उत्तर प्रदेश ही नहीं देश दुनिया में अवधी भाषा को पहचान दिलाने वाले बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी अपने ही जन्मभूमि और ग्रह जनपद में गुमनाम हो चुके हैं. ऐसे महान अवधी भाषा के साहित्यिक कवि, व्यंग्यकार को नई पीढ़ी भूल चुकी है. पढ़ीस जी ने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध अपनी कविताओं के माध्यम से देश की आजादी के लिए जनमानस में क्रांति लाने का काम किया.

सीतापुर: बलभद्र प्रसाद दीक्षित यानी पढ़ीस जी का जन्म 25 सितम्बर 1898 को सीतापुर के अम्बरपुर गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. उस समय सीतापुर संयुक्त प्रांत आगरा और अवध के अन्तर्गत आता था. अपने साहित्य से पढ़ीस जी ने अंग्रेजों का खूब मुखालफत की. चकल्लस नाम की कविता संग्रह में पढ़ीस जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई कविताएं लिखी. उनकी ये कविताएं जनमानस के मन में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति लाने का काम रही थी. आखिरकार, अंग्रेजी हुकूमत ने चकल्लस कविता संग्रह पर बैन लगा दिया. इसी बीच लखनऊ में आल इंडिया रेडियो की स्थापना हुई तो बलभद्र प्रसाद दीक्षित को रेडियो में नौकरी मिल गई. पढ़ीस जी ने रेडियो पर देहाती भाई के नाम के कार्यक्रम में अपनी कविताओं को जनमानस तक पहुंचाने का काम करने लगे.



पढ़ीस जी कई रचनाओं को लखनऊ विश्वविद्यालय में बी.ए व एम.ए में हिन्दी साहित्य में पढ़ाई जाती है. लखनऊ विश्वविद्यालय के अलावा पूर्वांचल के विश्वविद्यालयों में उनकी रचनाओं को पढ़ाया जाता है.


रेडियो की नैकरी छोड़ स्वराज आन्दोलन मे हुऐ थे शामिल


1941 में रेडियो (आकाशवाणी) की सरकारी नौकरी छोडकर स्वराज आन्दोलन मे शामिल हो गये. इस के साथ ही जाति पांति छुवा छूत को खत्म करने के उद्देश्य से सवर्ण दलित सहित सभी जातियों के बच्चों एक साथ शिक्षा देने के उद्देश्य से अपने गांव में पाठशाला संचालित की और बच्चों को बढ़ाना शुरू किया. पढ़ीस जी मानवता के सच्चे पक्षधर थे सामाजिक सुधार की भावना बलभद्र प्रसाद दीक्षित के मन में कूट कूट कर भरी हुई थी.

अपनी ही जन्मभूमि पर गुमनाम हैं कवि पढ़ीस
जन्मभूमि में नहीं है कोई उनका स्मृति अवशेष
बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस के जन्मभूमि अम्बरपुर गांव में उनकी कोई स्मृति अवशेष नहीं है. जहां पर उनका घर था वह एक टीले में तबदील हो चुका है. उनके पौत्र संतोष दीक्षित, कल्लू आदि सीतापुर जनपद के सिधौली कस्बे में रहते हैं. वहीं युक्तभद्र के पुत्र श्रीभद्र दीक्षित आदि इलाहाबाद (प्रयागराज) में रहते हैं. गांव में पढ़ीस के नाम से एक एडेड विद्यालय तो संचालित है. लेकिन उस विद्यालय के बाहर विद्यालय का नाम नहीं दर्शाया गया है. जिसे नई पीढ़ी बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी को नहीं जानती है. गांव के बुजुर्ग लोगों व उनके परिजनों की मांग है कि गांव में सरकार पढ़ीस जी के नाम से पुस्तकालय व उनका स्मारक बनाने का काम करे.
पढ़ीस जी का जीवन परिचय
बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस का जन्म 25 सितम्बर 1898 को सीतापुर जनपद के तहसील सिधौली क्षेत्र के अम्बरपुर गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था. उस समय सीतापुर जनपद संयुक्त प्रांत आगरा व अवध के अन्तर्गत आता था. जो आजादी के बाद उत्तर प्रदेश प्रांत बना. पढ़ीस जी के पिता का नाम कृष्ण कुमार दीक्षित व माता का नाम यशोदा था. उनके भाई दीनबंधु, सुखदेव प्रसाद, कामता प्रसाद, बहन बियना थी. बलभद्र प्रसाद दीक्षित बहन व भाईयों में सबसे छोटे थे. बलभद्र प्रसाद शिशु ही थे कि उसी दौरान उनके पिता का देहांत हो गया. जिसके बाद भड़े भाई दीनबंधु पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई.
12 वर्ष की आयु में दीनबंधु ने कसमंडा स्टेट के राजा सूर्यबक्श सिंह के दरबार में खिदमतगार के तौर पर नौकरी कर अपने परिवार का भरणपोषण करने लगे. कुछ समय बाद राजा की पुत्री का विवाह विजयनगरम से हुआ. उस दौरान राज कुमारी दीनबंधु को अपने साथ विजयनगरम ले जाना चाहती थीं. राज कुमारी के साथ जाने से पहले दीनबंधु ने अपने सबसे छोटे भाई बलभद्र प्रसाद दीक्षित को राजदरबार में खिदमत के लिए नियुक्त करा दिया. जहां बलभद्र प्रसाद की पढ़ाई कसमंडा के राजकुमार दिवाकर प्रताप सिंह के साथ हुई. पढ़ाई लिखाई के बाद बलभद्र प्रसाद दीक्षित राजा कसमंडा के निजी सचिव के तौर पर काम किया. इस बीच वह सहित्यिक कविताएं, व्यंग्य, कहानी, गजले लिखने लगे थे.
कुछ समय बाद पढ़ीस जी ने चकल्लस नाम की एक पांडुलिप तौयर की जिसका प्रकाशन कसमंडा के राजा सूर्यबक्श सिंह द्वारा लखनऊ के दुलारे लाल भार्गव पुस्तक भंडार के यहां रचना संग्रह का प्रकाशन सन 1933 में कराया गया था. चकल्लस नाम की कविता संग्रह पुस्तक में पढ़ीस जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई साहित्यिक कविताएं लिखी थी. यह कविताओं ने जनमानस में अंग्रेजी के विरुद्ध क्रांति लाने का काम रही थीं, जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने चकल्लस पुस्तक पर बैन लगा दिया और इस पुस्तक की प्रतियां को दोबारा छापने पर भी बैन लगा दिया.
इस बीच लखनऊ में आल इंडिया रेडियो की स्थापना हुई तो बलभद्र प्रसाद दीक्षित को रेडियो में नौकरी मिल गई. बलभद्र प्रसाद दीक्षित पढ़ीस जी ने रेडियो पर देहाती भाई नाम के कार्यक्रम में अपनी कविताओं को जनमानस तक पहुचाने का काम करने लगे.1941 में आकाशवाणी की सरकारी नौकरी छोड़ स्वराज आन्दोलन मे शामिल हो गये. इस के साथ ही जाति पांति छुवा छूत को खत्म करने के उद्देश्य से सवर्ण दलित सहित सभी जातियों के बच्चों एक साथ शिक्षा देने के उद्देश्य से अपने गांव अम्बरपुर में पाठशाला संचालित की और बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.
14 जुलाई सन 1942 में उनका देहांत हो गया. पढ़ीस जी के चार बेटे थे युक्तभद्र दीक्षित व लवकुश दीक्षित एक बड़े कवि के तौर पर जाने गये. युक्तभद्र दीक्षित ने कई कविताएं लिखी. वह लम्बे समय तक रेडियो स्टेशन(आकाशवाणी) के डारेक्टर रहे. वहीं लवकुश दीक्षित ने बहुत से कविताएं, व्यंग्य, गीतों की रचनाएं की उन्होंने 40 वर्षों तक आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अपनी रचनाओं का पाठ किया.
हिन्दी संस्थान लखनऊ ने कराया था पढ़ीस ग्रंथावली का प्रकाशन
पढ़ीस ग्रंथावली का प्रकाशन हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा कराया गया इस पुस्तक में पढ़ीस द्वारा लिखी गई कविताएं जो किसी अन्य पुस्तक में प्रकाशित हुए व अप्रकाशित सम्पूर्ण रचनाओं का प्रकाशन कराया गया. इस ग्रंथावली का सम्पादक डा. रामबिलास शर्मा व पढ़ीस जी के पुत्र युक्तिभद्र दीक्षित द्वारा किया गया. रचनाओं का संकलन पढ़ीस के पौत्र श्रीभद्र दीक्षित द्वारा किया गया. इस ग्रंथावली में पढ़ीस जी के जीवन परिचय के साथ ही उनकी रचनाओं व किस तरह से बलभद्र प्रसाद दीक्षित का समय बीता और उनका समाज व देश के लिए क्या योगदान रहा. इसका इस ग्रंथावली में उल्लेख किया गया.

पढ़ीस जी को हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी भाषाओं का ज्ञान था, पढीस जी मुंशी प्रेम चंद, अमृत लाल नागर, महादेवी वर्मा जैसे हिंदी साहित्याकाश के दैदीप्यमान साहित्यकारों के सरीखे माने जाते हैं. 14 जुलाई सन 1942 को बलभद्र दीक्षित यानी पढ़ीस जी भले ही दुनिया से अलविदा कह गए हों. मगर अपने साहित्य से ता उम्र वह हम सबके बीच दस्तक देते रहेंगे.

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