चैत्र नवरात्रि 2022: इस देवी शक्तिपीठ में पांडवों ने किया था विश्राम...ये है खासियत

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Published : Apr 8, 2022, 3:43 PM IST

51 शक्तिपीठों में एक है मां ललिता देवी का मंदिर.

प्रयागराज में एक ऐसा शक्तिपीठ है जहां पांडवों ने रात्रि विश्राम किया था. इस शक्तिपीठ को लेकर कई मान्यताएं हैं. चलिए नवरात्रि के मौके पर आपको इससे रूबरू कराते हैं.

प्रयागराजः जिले के मीरापुर स्थित मां ललिता देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. मान्यता है कि यहां देवी सती के हाथ की अंगुलियां गिरी थीं. मान्यता हैं कि जो भक्त यहां सच्चे मन से जो भी मन्नत मांगते हैं वह पूरी जरूर होती है. यह जिले के तीन शक्तिपीठों में एक है. यहां मां ललिता देवी के साथ ही यहां भगवती महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजमान हैं. इनके दर्शन-पूजन के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु यहां आते हैं.



धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के हिस्से उनके वस्त्र या आभूषण गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठ बन गए थे. यह पावन तीर्थस्थान पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं. देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है. इन्हीं में से एक संगमनगरी में ललिता देवी मंदिर भी है जहां सती की अंगुलियां गिरी थीं.

51 शक्तिपीठों में एक है मां ललिता देवी का मंदिर.

इस शक्तिपीठ में पांच मंदिर स्थित है. इस पावन शक्तिपीठ के दर्शन के लिए सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है. नवरात्रि के दिनों में यहां का महात्म्य और भी बढ़ जाता है क्योंकि नवरात्रि के नौ दिन मां की उपासना का दिन है, ऐसे में शक्तिपीठों के दर्शन-पूजन से विशेष लाभ प्राप्त होता है.



नवरात्रि के नौ दिनों में रोजाना माता का दिव्य श्रृंगार भी किया जाता है. सुबह करीब 5ः30 बजे मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और पूरे विधि-विधान के साथ देवी की पूजा-अर्चना की जाती है और शाम 7ः30 बजे मां की भव्य आरती की जाती है. मां के पवित्र मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम सप्तचंडी का पाठ और पूजन किया जाता है. साथ ही हर माह अष्टमी तिथि को ललिता देवी का दर्शन-पूजन अत्यंत फलदायी माना जाता है. ललिता माता का मंत्र समस्त सुखों को प्रदान करने वाला मंत्र है. माता को हलुवे का भोग अत्यंत प्रिय है.


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मां ललिता देवी मंदिर पुजारी शिव मूरत मिश्र जी ने बताया कि जब पांडव लाक्षा गृह से बच के निकल गए थे तो वे इसी धाम में ही एक रात रुके थे और इसी जगह पर देवी ललिता की स्तुति की थी. आज भी यहां पांडव कूप मौजूद है जिसके चारों ओर अब जलियां लगा दी गई है.

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