भाजपा के लिए मुश्किल होगा जीतना बुढाना सीट, डर है कहीं सपा दे ना 'पीट' !

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Published : Oct 17, 2021, 9:33 AM IST

Updated : Oct 17, 2021, 1:32 PM IST

बुढाना विधानसभा.

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. 2017 में मोदी लहर ने इस हिंदी भाषी राज्य पर अच्छा-खासा प्रभाव छोड़ा, नतीजा यह रहा कि बीजेपी ने यूपी की सत्ता पर कब्जा जमाया. कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार विपक्ष को मोदी के साथ योगी लहर का भी सामना करना पड़ेगा.

मुजफ्फरनगर : जिले में विधानसभा की कुल 6 सीटें हैं. बुढाना सीट भी उन्हीं में से एक है. यहां की उपजाऊ भूमि के कारण किसान और मजदूर काफी सम्पन्न हैं. गन्ना और गेहूं यहां प्रमुख रूप से उगाया जाता है, इस जनपद में 8 शुगर मिल हैं, वहीं सैकड़ों की संख्या में पेपर मिल व स्टील प्लांट भी चलाए जा रहे हैं. इस जनपद की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है.

बुढाना सीट का इतिहास

जनपद की बुढाना विधानसभा सीट पहली बार 1952 में अस्तित्व में आई थी. क्षेत्र के पहले विधायक श्री चंद बने थे, जो एलम के निवासी थी. उनके बाद 1962 में ठाकुर विजय पाल सिंह विधायक चुने गए. 1957 में कुंवर असगर अली निवासी लोई ने चुनाव जीता, लेकिन दो साल बाद ही मौत के बाद कांधला के रहने वाले कमरुद्दीन ने विधायक पद संभाला. 1967 में इस सीट को समाप्त कर नई कांधला सीट बनाई गई थी.

बुढाना विधानसभा.
बुढाना विधानसभा.

बुढाना कस्बा भी कांधला विधानसभा सीट का हिस्सा बन गया और वीरेंद्र वर्मा कांधला से विधायक बने. 2011 में परिसीमन के बाद बुढाना को फिर से विधानसभा सीट बनाया गया. 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के नवाजिश आलम ने चुनाव जीता. जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा की ओर से मीरापुर पर चुनाव लड़ा था. 2017 में बीजेपी के उमेश मलिक ने सपा के प्रमोद त्यागी को करीब 13 हजार वोट के अंतर से हराकर चुनाव जीता था.

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दंगा प्रभावित हैं क्षेत्र के कई गांव

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और किसानों के मसीहा स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का गांव सिसौली 2011 से पहले खतौली का हिस्सा था, लेकिन 2011 में हुए परिसीमन के बाद इसे बुढाना का हिस्सा बना दिया गया. 2013 के दौरान मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों से विधानसभा क्षेत्र अच्छा-खासा प्रभावित रहा. इस क्षेत्र के दर्जनों गांव आज भी दंगा प्रभावित हैं.

जातिगत समीकरण

मुजफ्फरनगर की बुढाना सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम, दलित, जाट और कश्यप वोटर हैं. यहां 1 लाख 40 हजार मुस्लिम, 61 हजार दलित, 63 हजार जाट और 30 हजार कश्यप हैं. वहीं सैनी, त्यागी, पाल, ब्राह्मण, वाल्मीकि, प्रजापति और राजपूतों के अलावा कई अन्य जाति वर्ग के लोग भी रहते हैं.

बुढाना विधानसभा.
बुढाना विधानसभा.

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2017 में बीजेपी ने मारी थी बाजी

2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उमेश मलिक ने इस सीट पर 97,781 वोट के साथ जीत दर्ज की थी. इस दौरान सपा के प्रमोद त्यागी 35.08 फीसदी वोट के साथ दूसरे और बसपा की सईदा बेगम 12 फीसदी वोट के साथ तीसरे स्थान पर रही थीं. पहले दो स्थान वाले उम्मीदवारों के बीच वोट डिफरेंस 5.47 फीसदी का रहा था. 2012 विधानसभा चुनाव में सपा के नवाजिश आलम ने 10588 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. उन्हें 68,210 और रालोद के राजपाल बालियान को 57,622 वोट मिले थे.

18 अक्टूबर को सपा प्रमुख आएंगे बुढाना

बुढाना विधानसभा सीट को लेकर सपा ने तैयारी शुरू कर दी है और आने वाले 2022 के चुनाव में दोबारा से बुढाना सीट को जीतने का प्रयास करेगी. इसी के मद्देनजर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बुढाना के डीएवी इंटर कॉलेज में कश्यप समाज के सम्मेलन को संबोधित करेंगे. वर्ष 2014, 2017 के चुनावों से सबक लेते हुए एसपी ने 2022 के चुनाव को लेकर अपनी रणनीति पूरी तरह बदल दी है. पार्टी ने वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव के चेहरे के इर्द गिर्द ही लड़ने की रूपरेखा तैयार की है. इसके साथ ही अखिलेश का पूरा फोकस ओबीसी वोट बैंक पर ही है.

Last Updated :Oct 17, 2021, 1:32 PM IST
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