शातिर गिरोह का पर्दाफाश, फर्जी दस्तावेज बनाकर बैंक से लोन लेकर खरीदते थे गाड़ी

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Published : Nov 30, 2021, 5:33 PM IST

पुलिस अधीक्षक अर्पित विजयवर्गीय.

यूपी के मुजफ्फरनगर में पुलिस ने शातिर गिरोह का पर्दाफाश किया है. इस गिरोह के लोग फर्जी दस्तावेज के आधार पर बैंक से लोन लेकर गाड़ी खरीदते थे और फिर दूसरों को बेच देते थे.

मुजफ्फरनगरः जिले में पुलिस ने एक ऐसे शातिर गिरोह को गिरफ्तार किया है, जो पहले फर्जी दस्तावेज के आधार पर लोन लेकर गाड़ी खरीदते थे. इसके बाद नई गाड़ी को कम कीमत में दूसरे को बेच देते थे. पुलिस ने चार आरोपियों को गिरफ्तार किया है. आरोपियों के निशानदेही पर पुलिस ने 4 गाड़ियों को बरामद किया है.

पुलिस अधीक्षक अर्पित विजयवर्गीय.

पुलिस अधीक्षक अर्पित विजयवर्गीय ने बताया कि गांधी कॉलोनी निवासी संदीप कुमार ने थाना नई मंडी में शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में बताया था कि अज्ञात व्यक्तियों द्वारा फर्जी आधार कार्ड, पैन कार्ड में छेड़खानी कर एक्सिस बैंक कोर्ट रोड मुजफ्फरनगर में एक अकाउंट खुलवा कर 1,19,556 का क्रेडिट कॉर्ड व 17,50,253 रुपये का एक ऑटो लोन लिया. इसके बाद टाटा हैरियर गाड़ी खरीदी गई थी. पुलिस ने आरोपियों को पकड़ने के लिए टीम गठित की थी.

इसके बाद मुखबिर की सूचना पर अभियुक्त अंकुश त्यागी (24) को भोपा पुल से मेरठ की ओर सर्विस रोड पर करीब 100 कदम की दूरी पर काले रंग की गाड़ी टाटा हैरियर कार के साथ सोमवार को समय शाम 5:00 बजे गिरफ्तार कर लिया. अभियुक्त अंकुश की निशानदेही पर गाड़ी किआ सेल्टोस, हुंडई वेन्यू तथा सफेद रंग की क्रेटा गाड़ी बरामद कर अभियुक्त संदीप कुमार, आलोक त्यागी और सुधीर कुमार थाना नई मंडी ने गिरफ्तार कर लिया.

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पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पुलिस इन आरोपियों का अपराधिक इतिहास खंगालने में लगी हुई है. इस गैंग के अन्य सदस्यों को भी तलाश की जा रही है. यह गैंग फर्जी आधार कार्ड, पैन कार्ड, फर्जी फोटो बनाकर बैंक में कागज देते हैं, जिससे बैंक वाले लोन पास करा कर गाड़ी कंपनी से खरीद लेते हैं. यह गैंग अब तक करीब 15 गाड़ियों का फर्जी फाइनेंस करा चुका है. एक गाड़ी के लिए गाड़ी की कीमत का 20% बैंक में जमा कराते थे. फर्जी पता होने के कारण बैंक उसे ट्रेस नहीं कर पाता था और यह गाड़ी आगे जो गाड़ी खरीदने बेचने का काम करते हैं, उनको पूरे रेट में बेच देते थे.

पुलिस अधीक्षक ने बताया कि इस गैंग में प्रत्येक सदस्य आपस में पैसे बांट लेते है. इस गैंग का एक फाइनेंसर होता है और दो-तीन लोग फर्जी दस्तावेज तैयार करते हैं. इस गैंग की बैंक कर्मियों से मिलीभगत भी रहती थे, जिससे यह लोग गाड़ियां कंपनी से निकालते थे और आगे पूरे रेट पर बेच देते थे.

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