रॉ मैटेरियल की कमी से जूझ रहा एशिया का सबसे बड़ा क्रिकेट उत्पादों का बाजार, विलो ने बढ़ाईं दुश्वारियां, पढ़िए डिटेल

रॉ मैटेरियल की कमी से जूझ रहा एशिया का सबसे बड़ा क्रिकेट उत्पादों का बाजार, विलो ने बढ़ाईं दुश्वारियां, पढ़िए डिटेल
मेरठ से देश के अलावा विदेशों में भी क्रिकेट के उत्पादों की सप्लाई (Meerut cricket product manufacturing problem) की जाती है. यहां के बने बैट की काफी डिमांड रहती है, लेकिन इसमें इस्तेमाल होने वाली खास तरह की लकड़ी की कमी से समस्या खड़ी हो गई है.
मेरठ : वर्ल्ड कप की खुमारी लोगों पर छाई हुई है. पूरी दुनिया में इस खेल के प्रति खासा रुझान है. वहीं 99 सालों से बैट समेत अन्य उत्पाद तैयार करने वाली बीडीएम कंपनी विलो (बैट तैयार करने में इस्तेमाल होने वाली विशेष प्रकार की लकड़ी) पर पाबंदी से परेशान है. इसकी वजह से जिस बैट से बल्लेबाज चौके-छक्के लगाते हैं, उसकी कीमतों में इजाफा होता चला जा रहा है. मेरठ में मांग के अनुसार बैट तैयार नहीं हो पा रहे हैं. कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश महाजन ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कई दुश्वारियों को साझा किया.
मेरठ की कई इकाइयों में बनाया जाता है बल्ला : मेरठ को स्पोर्ट्स सिटी माना जाता है. यहां पर स्थापित कई इकाइयों में बैट (बल्ला) बनाया जाता है. बीडीएम कंपनी कई सालों से यह काम करती चली आ रही है. यह देश की जानी-मानी कंपनी है. अब कंपनी के समक्ष कई परेशानियां आने लगी हैं. कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश महाजन ने बताया कि बैट के लिए खास लकड़ी विलो का उत्पादन कश्मीर में होता है. सरकार ने अनुच्छेद 370 कश्मीर से हटा रखा है, लेकिन वहां से विलो लाने पर प्रतिबंध है. ऐसे में कश्मीर से विलो नहीं मिल पाती है. UK से इंग्लिश विलो आती है, लेकिन वह काफी महंगी होती है. इससे बैट की कीमतों में भी इजाफा हो रहा है.
डिमांड के अनुसार नहीं हो पा रहा निर्माण : मैनेजिंग डायरेक्टर ने बताया कि स्पोर्ट्स सिटी में स्थापित इकाइयों में क्रिकेट के बल्ले उस संख्या में तैयार नहीं हो पा रहे हैं, जितनी डिमांड रहती है. इंडिया में विलो की बहुत कमी है. यह बात अब तक समझ में नहीं आई कि जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 हट गया तो विलो पर पाबंदी क्यों है. पूरे देश से रॉ मैटेरियल वहां जाता है, लेकिन वहां से आ नहीं सकता है. कश्मीर में बैट भी नहीं बनता है. उनके पास बैट के हैंडल भी नहीं होता. विलो को लेकर हर बैट निर्माता के पास बड़ी चुनौती है. हमारे पास रॉ मैटेरियल ही नहीं हैं. जम्मू कश्मीर के अफसर विलो के एवज में घूसखोरी करते हैं. वहां से विलो तो आ ही नहीं पा रही है. गैर कानूनी तरीके से वह एक ट्रक विलो निकालने के लिए लाखों रुपये की रिश्वत लेते हैं.
सर्बिया की विलो नहीं टिकाऊ : राकेश महाजन ने बताया कि विलो के ऑप्शन काफी सीमित हैं. सर्बिया से भी विलो आती है, लेकिन उसमें न तेल होता है, और न मॉइश्चर. इसकी वजह से बैट टूट जाता है. बहुत से लोग धोखे में रखकर इसे इंग्लिश विलो बताकर बेच भी रहे हैं. मेरठ में बैट और क्रिकेट के तमाम उत्पाद बनाने वाली प्रमुख कंपनियों का नाम लेते हुए वह कहते हैं कि सभी का काम अच्छा है. ICC ने अब 58 और देशों को जोड़ने का निर्णय लिया है.
मेरठ से दूसरे देशों में जाते हैं बैट : मैनेजिंग डायरेक्टर ने बताया कि कई देशों में क्रिकेट खेला जा रहा है. मेरठ से ऐसे सभी देशों में बैट आदि भेजे जाते हैं. इससे बाजार भी बड़ा हो गया है, हम निर्यात ठीक से नहीं कर पा रहे हैं. विलो की कमी इसमें बाधा बन रही है. कश्मीर से विलो न आ पाने से सरकार को जीएसटी का नुकसान है, एक्सपोर्ट का भी लॉस है. अब अमेरिका, चीन, ब्राजील समेत और भी देश ICC के टेस्ट क्रिकेट फॉर्मेट से खेलती हुई नजर आएंगी. अमेरिका से काफी डिमांड बैट समेत अन्य प्रोडक्ट की आ रहा है. कनाडा में भी क्रिकेट के प्रति लोगों में दीवानगी है. इन दोनों देशों में एशियन अधिक हैं. वे वहां क्रिकेट खेल रहे हैं. उनकी डिमांड हम पूरी नहीं कर पा रहे हैं. विदेशी विलो सप्लायर ने विलो की कीमत 30 प्रतिशत तक बढ़ दी है. ये फैक्ट्री में आते-आते 50 प्रतिशत तक महंगे हो जाते हैं.
महंगाई से बढ़ गई लागत : राकेश महाजन बताते हैं कि अगर इंग्लिश विलो बैट की बात करें तो कम से कम 5 हजार रुपये का बैट मार्केट में उपलब्ध है, जबकि एक लाख रुपये तक की रेंज के बैट उपलब्ध हैं. रॉ मैटेरियल पर महंगाई से लागत भी बढ़ गई है. बच्चों को मोटिवेट किया जाना चाहिए कि वे कश्मीरी विलो के बैट से ही क्रिकेट खेलें. अगर वर्ल्डवाइड बात करें तो इंग्लिश विलो के 1000 बैट बिकते हैं, वहीं कश्मीरी विलो के बैट 5000 में बिकते हैं. अगर कश्मीरी विलो उद्यमियों को मिल जाए तो हमें काफी राहत मिलेगी. अभी वर्तमान में दुनिया भर में 100 से अधिक देश क्रिकेट खेल रहे हैं. 12 देश ही अभी तक आधिकारिक तौर पर ICC की मान्यता से खेलते हैं. इसमें भारत समेत ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, न्यूजीलैंड, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, वेस्टइंडीज, आयरलैंड और जिम्बाब्वे हैं. इन देशों की टीमों पर पहले ही टेस्ट क्रिकेट फॉर्मेट खेलने का दर्जा प्राप्त है जबकि अब और भी देश इसमें शामिल होंगे तो उत्पादों की डिमांड भी बढ़ेगी.
