जानिए...छोटे से गांव में पैदा होने वाला बालक कैसे बन गया राजा महेंद्र प्रताप सिंह

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Published : Sep 14, 2021, 9:17 AM IST

Updated : Sep 14, 2021, 10:34 AM IST

राजा महेंद्र प्रताप सिंह

अलीगढ़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय का शिलान्यास करेंगे. आइए जानते है कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) कौन थे और आखिर उनके नाम पर विश्वविद्यालय क्यों बन रहा है. उनकी देश के प्रति क्या भूमिका रही, जिसकी वजह से आज उनका नाम चर्चा में है. पढ़िए ये खबर...

मथुरा: अलीगढ़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) राज्य विश्वविद्यालय का शिलान्यास करेंगे. महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, शिक्षाविद एवं समाज सुधारक राजा महेंद्र प्रताप सिंह की स्मृति और सम्मान में प्रदेश सरकार अलीगढ़ में राज्य विश्वविद्यालय स्थापित कर रही है. इस विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में अलीगढ़ मंडल के चारों जनपद अलीगढ़, कासगंज, हाथरस और एटा शामिल हैं.

हाथरस के छोटे से गांव मुरशान में जन्मे राजा महेंद्र प्रताप सिंह लेखक, क्रांतिकारी, समाजसेवी और दानवीर के नाम से विख्यात हुए. कड़ी प्रतिज्ञा लेने के बाद राजा साहब ने 32 वर्षों बाद 9 अगस्त 1946 को भारत की मातृ भूमि पर कदम रखा. 15 अगस्त 1945 को देश आजाद होने के बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह मथुरा के वृन्दावन यमुना नदी किनारे केसी घाट पर प्रेम महाविद्यालय इंटर कॉलेज के परिसर में एक कोठरी में 32 वर्षों तक रहे. 29 अप्रैल 1979 दिल्ली के एम्स अस्पताल में राजा महेंद्र प्रताप सिंह का स्वर्गवास हो गया. आज उस कोठी में राजा महेंद्र प्रताप सिंह का सामान लकड़ी की कुर्सी, टेबल ओर एक संदूक रखी है. पूरा परिसर जर्जर हालत में है.

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का इतिहास.

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म जाट परिवार में 1 दिसंबर 1886 को हाथरस के मुरसान में हुआ था. तीन वर्ष की आयु में राजा हर नारायण सिंह ने उन्हें गोद ले लिया. क्योंकि राजा हर नारायण सिंह के कोई पुत्र नहीं था. राजा हर नारायण सिंह की पत्नी रानी साहब कुमारी हाथरस छोड़कर वृंदावन के महल में आकर महेंद्र प्रताप सिंह के साथ रहने लगीं. अलीगढ़ के सय्यद खा द्वारा स्थापित स्कूल में बीए तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद महेंद्र प्रताप सिंह का विवाह राजकुमारी संगरुर के साथ हुआ था.

महेंद्र प्रताप सिंह ने अफगानिस्तान में बनाई सरकार

1 दिसंबर 1915 को 28 वर्ष की आयु में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अफगानिस्तान में निर्वाचित सरकार का गठन किया था. राजा महेंद्र प्रताप सिंह राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए थे. भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जर्मनी, तुर्की, अफगानिस्तान के शासकों को पत्र लिखकर स्वतंत्रता संग्राम में सहायता करने का आग्रह किया था.

राजा महेंद्र प्रताप सिंह
राजा महेंद्र प्रताप सिंह

राजा महेंद्र प्रताप सिंह की कड़ी प्रतिज्ञा

युवा अवस्था में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अंग्रेजी हुकुमत के अत्याचारों को देखते हुए कड़ी प्रतिज्ञा ली. जब तक अंग्रेजी हुकुमत हिंदुस्तान से चली नहीं जाती, तब तक भारत की मातृ भूमि पर कदम नहीं रखूंगा. राजा महेंद्र प्रताप सिंह अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ विदेशों में रहकर रणनीति तैयार किया करते थे. अंग्रेजी शासक भारत छोड़ने की घोषणा होने के बाद 9 अगस्त 1946 को 32 वर्ष का वनवास काटने के बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भारत की मातृ भूमि पर कदम रखा.

राजा साहब ने अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव में हराया

राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने मथुरा से 1952 में पहला लोकसभा चुनाव निर्दलीय लड़ा था, लेकिन हार गए थे. दूसरी बार राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 1957 में मथुरा लोकसभा सीट के चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कराई. उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ प्रत्यासी थे. कांग्रेस प्रत्यासी चौधरी दिगंबर सिंह सहित दोनों प्रत्याशियों को हराया था. राजा महेंद्र प्रताप सिंह 1957 से 1962 तक मथुरा सीट से लोकसभा सदस्य रहे.

राजा महेंद्र प्रताप सिंह
राजा महेंद्र प्रताप सिंह

32 वर्षों तक रहे इस कोठरी में

वृन्दावन यमुना नदी किनारे प्रेम महाविद्यालय इंटर कॉलेज के परिसर में तीसरी मंजिल पर दो कमरों की कोठरी बनी हुई है. इस कोठरी मैं राजा महेंद्र प्रताप सिंह 32 वर्षों तक अपने सेवायतों के साथ रहे थे. आज यह स्थान जर्जर हालत में है. कोठरी मैं राजा महेंद्र प्रताप सिंह की लकडी की कुर्सियां, टेबल और एक संदूक रखी हुई है. वर्षों से इस स्थान पर कोई भी नहीं आया. कॉलेज प्रबंधन द्वारा कोठरी को ताला बंद करके रखा हुआ है.

राजा महेंद्र प्रताप सिंह
राजा महेंद्र प्रताप सिंह

डॉक्टर देव प्रकाश प्रधानाचार्य ने बताया कि 1914 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह कड़ी प्रतिज्ञा लेने के बाद भारत छोड़कर विदेश चले गए और संकल्प लिया कि मैं तब तक हिंदुस्तान नहीं जाऊंगा, जब तक अंग्रेजों को वहां से भगा नहीं दूंगा. 1946 में घोषणा हो जाती है कि अंग्रेज भारत छोड़कर जा रहे हैं. महात्मा गांधी ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह को भारत वापस बुला लिया और राजा साहब ने भारत माता की मातृभूमि पर 32 वर्षों बाद कदम रखा.

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1946 में गुजरात के वर्धा गांधी आश्रम में पहुंचकर राजा साहब ने अभिवादन किया. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद होने के बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह वृंदावन के प्रेम महाविद्यालय इंटर कॉलेज के परिसर में तीसरी मंजिल पर बनी एक कोठरी में रहने लगे. 32 वर्षों तक इस कोठरी में रहे राजा महेंद्र प्रताप सिंह का एक अतिथि कक्ष और दूसरा सैन्य कक्ष बना हुआ है. आज भी इस कोठरी में राजा साहब की लकड़ी की कुर्सी, टेबल और सामान रखा हुआ है. यह कोठरी जर्जर हालत में है. कॉलेज प्रबंधन ने इस कोठरी को ताला बंद करके सुरक्षित रखा है. 29 अप्रैल 1979 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह का दिल्ली के एम्स में स्वर्गवास हो गया था. राजा साहब के बेटे का नाम प्रेम और बेटी का नाम भक्ति था.

Last Updated :Sep 14, 2021, 10:34 AM IST
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