UP Assembly Election 2022: प्रशांत से अशांत कांग्रेस, कहा- राहुल गांधी ने UP में नहीं बनने दिया था प्रियंका को चेहरा और अब...

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Published : Oct 16, 2021, 8:55 AM IST

प्रशांत से अशांत कांग्रेस

इन दिनों यूपी में टीएमसी के सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस के लिए चुनौती बन गए हैं. उनके बयानों का असर केवल कांग्रेस के बड़े नेताओं पर ही नहीं, बल्कि जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं पर भी पड़ने लगा है. हाल ही में उन्होंने कांग्रेस नेता व सांसद राहुल गांधी और पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी को लेकर एक ऐसा बयान दे दिया, जिसकी आज चौतरफा चर्चा हो रही है.

लखनऊ: बोलने का तरीका हो या फिर त्वरित निर्णय का अंदाज. पहनावे से लेकर पैरों के चाल तक में वही समानता. दरअसल, हम बात कर रहे हैं कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) की. प्रियंका हूबहू अपनी दादी व पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरह पेश आती हैं. और तो और आम लोगों को भी उनमें प्रबल नेतृत्व की क्षमता दिखती है, लेकिन शायद प्रियंका के इन्हीं गुणों से उनके सांसद भाई राहुल गांधी (MP Rahul Gandhi) को डर लगता है. तभी तो उन्होंने 2017 में उन्हें उत्तर प्रदेश का चेहरा नहीं बनने दिया था. खैर, ये बातें हम नहीं, बल्कि सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Political Strategist Prashant Kishor) ने कही हैं. कम और ठोस संवाद को जाने जाने वाले सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने उक्त बातें अपने एक साक्षात्कार के दौरान कहीं.

प्रशांत किशोर ने बताया कि 2017 के यूपी चुनाव से पहले उन्होंने प्रियंका गांधी को कांग्रेस का चेहरा बनाने के लिए कहा था, लेकिन कांग्रेस नेता खासकर राहुल गांधी इसके लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी से उनकी पहली मुलाकात पटना में हुई थी. वहीं, राहुल गांधी ने उन्हें यूपी चुनाव में कांग्रेस के लिए काम करने का ऑफर दिया था. हालांकि, तब सूबे में सियासी हालात बहुत अच्छे नहीं थे और खासकर कांग्रेस के लिए तो एकदम विपरीत परिस्थितियां थीं.

ऐसे में पहले तो वे इस ऑफर को लेकर थोड़ा कंफ्यूज थे. लेकिन अपने साथियों से बात करने के बाद उन्होंने काम करने का मन बनाया. इस दौरान लगातार तीन महीनों तक यूपी में रहकर उन्होंने पार्टी के लिए प्लान भी बनाए. प्रशांत बताते हैं कि शुरुआत में राहुल गांधी कुछ चीजों को लेकर तैयार नहीं हुए थे. पहली बार जब पूरा प्लान उनके सामने रखा तो उनके हिसाब से कुछ बातें आपत्तिजनक थीं और इसमें मुख्य तौर पर प्रियंका गांधी को पार्टी का चेहरा बनाना और सोनिया गांधी से पूरा कैंपेन लॉन्च करवाना उन्हें एकदम से रास नहीं आया.

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लेकिन तीन महीने तक चले चर्चा के सिलसिले के बाद जून में उन्होंने मेरी बात मान ली. आगे फिर कैंपेन की शुरुआत हुई और इसका प्रमाण यह हुआ कि जमीन पर कांग्रेस की अच्छी खासी हवा बन गई थी. लेकिन समाजवादी पार्टी से अचानक गठबंधन ने सारी तैयारियों पर पानी फेरने का काम किया. प्रशांत बताते हैं कि वे इसके पक्ष में नहीं थे, क्योंकि जमीनी हालात को वे अच्छे से समझ रहे थे. लेकिन कांग्रेस के नेताओं को लगा कि पार्टी अगर समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरेगी तो उसे लाभ होगा. खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ.

इतना ही नहीं वे इस बात को भी स्वीकारते हैं कि उन्हें उसी समय कांग्रेस से अलग हो जाना चाहिए था, जब बिना उनसे बातचीत किए पार्टी ने सूबे में समाजवादी पार्टी से गठजोड़ कर लिया था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करके अपना नुकसान किया था.

बता दें कि 2017 में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा था और इस चुनाव में कांग्रेस को 7 और समाजवादी पार्टी को 47 सीटें मिली थी. वहीं, भाजपा को सूबे में 300 से अधिक सीटों पर जीत मिली थी. भले ही तब प्रशांत कांग्रेस के साथ थे और हो सकता है कि कांग्रेस के साथ रहना तब उनकी मजबूरी रही हो, लेकिन आज प्रशांत टीएमसी के रणनीतिकार हैं और वर्तमान में उत्तर प्रदेश में पार्टी की जड़ मजबूत करने को कांग्रेस को एक के बाद एक झटके दे रहे हैं.

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एक ओर जहां टीएमसी सुप्रीम ममता बनर्जी उनसे प्रसन्न हैं तो वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस की नाराजगी का आलम यह है कि पार्टी के नेता उनपर यूपी कांग्रेस में फूंट डाल नेताओं को तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं. खैर, यह भी सच है कि सियासत में न तो कोई परमानेंट दोस्त होता है और न ही दुश्मन. और रही बात प्रशांत किशोर की तो वे तो सियासी रणनीतिकार हैं न कि दलीय नेता. ऐसे में उनके लिए क्लाइंट सर्वोपरि है और आज टीएमसी उनकी पहली प्राथमिकता है.

तृणमूल और कांग्रेस में तकरार

तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कांग्रेस को निशाने पर लेना शुरू कर दिया है और दीदी ने इसके लिए सोशल मीडिया को चुना है. वहीं, दीदी की मुहिम को धार देने का काम पार्टी के सियासी रणनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर कर रहे हैं और उनके एक ट्वीट ने जहां अपने क्लाइंट को सियासी तौर पर मजबूत करने का काम किया है तो वहीं, कांग्रेस खेमे में उनको लेकर जबर्दस्त आक्रोश है. यही कारण है कि कांग्रेस नेता अब खुलकर उनके खिलाफ बयान दे रहे हैं.

इधर, यूपी के लखीमपुर में हुई हिंसा के बाद से ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके सांसद भाई राहुल गांधी कुछ ज्यादा ही उत्साहित दिखे. यहां तक कि प्रियंका ने खीरी घटना के बाद वाराणसी में प्रस्तावित अपनी रैली का नाम प्रतिज्ञा की जगह किसान न्याय रैली कर दिया था.

लेकिन सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कांग्रेस के उत्साह पर तंज कसते हुए कहा- 'लखीमपुर खीरी की घटना के आधार पर देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेतृत्व में जो खड़े हो जाने की उम्मीद कर रहे हैं, निराश हो सकते हैं. अफसोस की बात है कि सबसे पुरानी पार्टी में व्याप्त समस्याओं और कमजोरियों का कोई त्वरित समाधान नहीं है.'

हालांकि, उनके इस बयान के बाद कांग्रेस की ओर से भूपेश बघेल ने अपनी प्रतिक्रिया में प्रशांत किशोर और ममता बनर्जी का नाम लिए बिना सख्त लहजे में जवाब दिया. उसके बाद कांग्रेस प्रवक्त रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तो यहां तक कह दिया कि वो सलाहकार की टिप्पणी पर रिएक्ट नहीं करना चाहते.

दरअसल, प्रशांत किशोर के कुछ दिनों से कांग्रेस में शामिल होने की संभावनाएं जताई जा रही थी, लेकिन अभी तक तृणमूल कांग्रेस के लिए काम करना वो छोड़े नहीं हैं. इधर, प्रशांत के कीरीबियों की मानें तो अब स्वयं ही वे कांग्रेस में शामिल नहीं होना चाहते हैं.

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