पितृ पक्ष 2021 : भारत ही नहीं दुनिया के इन देशों में भी दिया जाता है पितरों को तर्पण

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Published : Sep 22, 2021, 6:06 AM IST

विदेशों में पितृ पक्ष.

भारत में पितृ पक्ष का काफी महत्व है. इस दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और पितृ ऋण से मुक्ति के लिए पिंडदान और दान पुण्य करते हैं. इस 2021 का पितृ पक्ष 16 दिनों का होगा. जानकर हैरानी होगी की भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में पितरों के तर्पण के लिए पर्व मनाएं जाते हैं.

हैदराबादः श्राद्ध पक्ष 21 सितंबर से शुरू हो गया है. भारत में पितरों की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण होते हैं. भारत ही नहीं दुनिया के और भी ऐसे देश हैं, जहां पितृ शांति के लिए पिंडदान और विभिन्न कार्यक्रम किए जाते हैं. इनमें चीन, जर्मनी, सिंगापुर, मलेशिया और थाईलैंड जैसे कई देशों में मृत आत्माओं की शांति के लिए खास त्योहार मनाए जाते हैं.

जर्मनी

ऑल सेंट्स डे नामक फेस्टिवल जर्मनी में हर साल 1 नवंबर को मनाया जाता है. यह दिन अलग-अलग धार्मिक समूहों में शोक मनाने के लिए तय है. लोग ठंड के दिनों में अपने पूर्वजों की शांति के लिए मोमबत्तियां जलाते हैं. साथ ही खाना खाने से पहले उनकी मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं.

चीन

चीन में चिंग-मिंग नाम का फेस्टिवल मनाया जाता है. यह त्योहार हर साल 4-5 अप्रैल को मनाया जाता है. इस दिन लोग कब्रिस्तान जाकर अपने पूर्वजों की कब्र की सफाई करते हैं और पूजा करने के बाद कब्र की तीन बार परिक्रमा भी करते हैं. माना जाता है कि, यह परंपरा 2000 साल पूरानी है. इस दिन यहां पूर्वजों को ठंडा खाना खिलाने की परंपरा है. साथ ही लोग खुद भी ठंडा खाना खाते हैं. इस कारण इसे ठंडे भोजन का दिन भी कहते हैं.

जापान

जापान में बॉन फेस्टिवल मनाया जाता है. जापानी कैलेंडर के मुताबिक यह 7वें महीने के 10वें दिन से शुरु होता है. इस त्योहार में लोग अपने पितरों की कब्रों पर जाकर श्रद्धांजलि देते हैं. साथ ही घरों में रोशनी करते हैं. लोग अपने पूर्वजों के गांव जाते हैं. मान्याता है कि, पूर्वज एक दिन के लिए अपने परिवार और दोस्तों से मिलने आते हैं. इस त्योहार पर लोग पारंपरिक नाच-गाना भी करते हैं. पूर्वजों को वापस भेजने के लिए उनके नाम के दीये जलाकर नदियों में बहाते हैं.

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कम्बोडिया और लाओस

सितंबर-अक्टूबर के बीच पिक्म बेन नामक त्योहार मानते हैं. यह तीन दिनों तक चलता है. मान्यता है कि यमराज प्रेत योनी की आत्माओं के लिए इस दिन दरवाजा खोल देते हैं. इसमें अच्छे कर्म करने वाली आत्माएं मुक्त हो जाती हैं. इस दिन चावल के पिंडों का दान किया जाता है. साथ ही पूर्वजों को जल अर्पित कर के बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराया जाता है.

मैक्सिको

हर साल 2 नवंबर को मैक्सिको में डे ऑफ डेथ के नाम से त्योहार मनाया जाता है. इस दिन पितरों को याद किया जाता है. मान्यता है कि पूर्वजों की आत्माएं एक दिन के लिए परिवार के साथ रहने आती हैं. इस त्योहार पर आत्माओं के लिए अच्छा खाना तैयार किया जाता है. जिसे लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

दक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया में हर साल सितंबर-अक्टूबर के बीच चुसेओक त्योहार मनाया जाता है. यह त्योहार अच्छी फसल के लिए मृतकों को धन्यवाद देने के लिए मानाया जाता है. यह तीन दिन तक चलता है. इसमें लोग सुबह ताजे कटे हुए चावल की डिश बनाते हैं और इसे पुरखों की कब्र पर रखते हैं. पूरे दिन चावल से बनी चीजें खाई जाती हैं. यह त्योहार चाइनीज लूनर कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है.

हंगरी घोस्ट फेस्टिवल

यह त्योहार बौद्ध और टोइस्टि धर्म मानने वाले एशियाई देश सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड और श्रीलंका में मनाया जाता है. यह त्योहार 7वें महीने की 15वीं रात को होता है. मान्यता है कि इस दिन नर्क के दरवाजे खुलते हैं और पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर भोजन करने आती हैं. ऐसा कहा जाता है कि, आत्माओं को नर्क में बिना भोजन के भेज दिया जाता है.

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फ्रांस

1 नवंबर को फ्रांस में पुरखों की याद में 'ला टेसेंट' नामक त्योहार मनाते हैं. इस दिन परिवार के सभी सदस्य मनमुटाव को भूलकर इकट्ठा होते हैं. पूर्वजों की कब्र साफ कर फूल गुलदस्ते चढ़ाते हैं. आत्मा की संतुष्टि के लिए मोमबत्तियां जलाई जाती हैं. प्रार्थना कर परिवार एक साथ खाना खाते हैं. इस दिन सरकारी छुट्टी भी होती है.

नेपाल

नेपाल में गायजात्रा के नाम से अगस्त और सितंबर में त्योहार मनाते हैं. इसे गाय का त्योहार भी कहते हैं. इस त्योहार पर गायों का झुंड शहर के बीच से निकलता है और इसके पीछे वो लोग चलते हैं, जिनके परिजनों का निधन हो चुका होता है. अगर किसी परिवार के पास गाय नहीं होती तो परिवार का कोई बच्चा गाय का रूप लेता है. मान्याता है कि इससे मृतकों को शांति मिलती है.

मेडागास्कर

इस देश में फामाडिहाना नाम से उत्सव मनाते हैं. यहां लोग सर्दियों में इकट्ठा होते हैं और मृतकों की कब्र को खोलकर शव बाहर निकाल लेते हैं. इसके बाद नए कपड़े पहनाकर गाजे-बाजे के साथ घुमाया जाता है. मान्यता है कि, जब तक मृतक का मांस गलकर कंकाल में नहीं बदल जाता, तब तक उसे दूसरा जन्म नहीं मिलता. इसी वजह से हर सात साल से मृत शरीर को कब्र से बाहर निकाला जाता है. उत्सव मनाने के बाद फिर से कब्र में दफना दिया जाता है.

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