Republic Day 2023 : देश की आजादी में लखनऊ का खास योगदान, यहां के कई स्थानों पर बनी अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति
Updated on: Jan 26, 2023, 6:25 AM IST

Republic Day 2023 : देश की आजादी में लखनऊ का खास योगदान, यहां के कई स्थानों पर बनी अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति
Updated on: Jan 26, 2023, 6:25 AM IST
राजधानी के अमीनाबाद स्थित झंडे वाला पार्क का अपना एक अलग इतिहास है. देश की आजादी में इस शहर का खास योगदान रहा. आइए जानते हैं लखनऊ के झंडे वाला पार्क के बारे में कुछ खास बातें...
लखनऊ : देश को अंग्रेजों से मुक्ति यूं ही नहीं मिल गई. इसके लिए हमारे देश के न जाने कितने ही लोगों को जान की कुर्बानी देनी पड़ी. देश की आजादी में लखनऊ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. यहां पर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तैयार करने के लिए तमाम सारे सम्मेलन हुए. लखनऊ के कई स्थान इसके गवाह हैं. जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी लखनऊ सम्मेलन में हिस्सा लेने लखनऊ पहुंचे तो चारबाग रेलवे स्टेशन पर पंडित जवाहरलाल नेहरु से उनकी पहली मुलाकात हुई, जिसका गवाह चारबाग रेलवे स्टेशन बना. आज भी उन यादों को यहां पर संजोया गया है. इसके बाद अमीनाबाद का झंडेवाला पार्क इस बात का गवाह है. यहां पर कई बार अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के लिए रणनीति तैयार हुई, सम्मेलन आयोजित हुए. क्रांतिकारियों की क्रांति से देश स्वतंत्र हुआ और उसके बाद साल 1950 में 26 जनवरी को देश में गणतंत्र लागू हुआ.
लखनऊ के झंडे वाला पार्क का अपना एक अलग इतिहास है. 92 साल पहले स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्नों में दर्ज लखनऊ के अमीनाबाद स्थित झंडे वाला पार्क में 18 अप्रैल 1930 को स्वतंत्रता आंदोलन के समय आजादी के दीवानों ने अंग्रेजी हुकूमत के नमक कानून को तोड़कर नमक बनाया था. अगस्त 1935 को क्रांतिकारी गुलाब सिंह लोधी भी उस जुलूस में शामिल हुए. वे पार्क में झंडा फहराना चाहते थे, लेकिन झंडारोहण से नाराज अंग्रेजी सैनिकों ने चारों तरफ से पार्क को घेर लिया था.
शहर के इस पार्क का आजादी में अनोखा इतिहास
: 1928 में इसी पार्क में तिरंगा लहराया गया था. मोतीलाल नेहरू और गोविंद वल्लभ भाई पटेल इस सभा में उपस्थित थे.
: चार जनवरी 1931 को यहां पर बारदोली दिवस मनाया गया
: 12 जनवरी 1931 को चंद्र भानु गुप्त, परमेश्वरी दयाल और कैलाशपति वर्मा की गिरफ्तारी हुई. उन्हें कारावास के साथ ही आर्थिक दंड भी दिया गया.
: 26 जनवरी 1931 को लाख बाधाओं के बावजूद यहां स्वतंत्रता दिवस मनाया गया
: जनवरी 1934 में महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय झंडारोहण एवं विशाल जनसभा को संबोधित किया
: 28 दिसंबर 1935 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की स्वर्ण जयंती का आयोजन और तिरंगा ध्वजारोहण हुआ
: 26 जनवरी 1936 को स्वतंत्रता दिवस समारोह में झंडा अभिवादन हुआ.
: साल 1936 में बाबा के नेतृत्व में यहां से जुलूस उठा और नारे लगाए गए. सन 57 जिंदाबाद, तात्या टोपे जिंदाबाद, मौलवी अहमदुल्लाह शाह जिंदाबाद
: साल 1938 में खादी और ग्रामोद्योग प्रदर्शनी का नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उद्घाटन किया और आचार्य नरेंद्र देव का यहां पर संबोधन हुआ.
: 26 जनवरी 1940 को स्वतंत्रता दिवस समारोह और प्रभात फेरियों का आयोजन किया गया.
: 14 नवंबर 1941 जवाहर दिवस पर शिवराजवती नेहरू ने महिला विद्यालय में हड़ताल कराकर पार्क में सामूहिक झंडारोहण किया. ब्रिटिश पुलिस की तरफ से गिरफ्तारी हुई.
: 12 सितंबर 1942 को मोहनलाल सक्सेना यहीं पर नजरबंद हुए.
: 21 सितंबर 1942 को धारा 129 तोड़ने पर क्रांतिकारी आशालता की गिरफ्तारी हुई.
: 9 अगस्त 1943 को भारत छोड़ो दिवस का आयोजन किया गया.
: 1945 में पंडित शिवनारायण द्विवेदी गुप्त स्वतंत्रता अभियान के बाद यहीं प्रकट हुए.
: 15 अगस्त 1947 झंडा वाला पार्क में नागरिकों ने उत्साह पूर्वक स्वतंत्रता दिवस मनाया.
यह शहर गवाह है देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पहली ऐतिहासिक मुलाकात का. शायद कम ही लोग यह जानते होंगे कि गांधी-नेहरू की छोटी सी ही सही, पर पहली मुलाकात लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने हुई थी. मौका था कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन का. साल था 1916. राष्ट्रपिता गांधी लखनऊ करीब एक दर्जन बार आए थे, लेकिन जवाहरलाल नेहरू से उनकी मुलाकात रेलवे स्टेशन पर पहली बार हुई. 26 दिसम्बर 1916 को लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन था. इसमें जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद से अपने पिता पंडित मोतीलाल नेहरू के साथ यहां पर पहुंचे थे. यहीं पर पहली बार गांधी से नेहरू का परिचय हुआ था. इसके बाद चाचा नेहरू राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से इस कदर प्रभावित हुए कि उनके बताए रास्ते पर ही चलने लगे. इतिहास के जानकार बताते हैं कि 'महात्मा गांधी जिस अधिवेशन में शामिल होने के लिए आए थे दरअसल, वह अधिवेशन लखनऊ के बजाय फैजाबाद में आयोजित हुआ था, लेकिन फैजाबाद छोटी जगह थी, नाम प्रसिद्ध नहीं था, इस वजह से इसे लखनऊ अधिवेशन का नाम दिया गया था.'
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