चार सप्ताह में पूरा करें स्मारक घोटाला मामले की विवेचना: हाईकोर्ट

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Published : Aug 31, 2021, 9:46 PM IST

हाईकोर्ट

स्मारक घोटाला मामले में आज यानी मंगलवार को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि चार सप्ताह में मामले की विवेचना पूरी की जाए. कोर्ट ने सात साल से विवेचना के लम्बित रहने पर आज संज्ञान लिया.

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 1400 करोड़ रुपये के चर्चित स्मारक घोटाला मामले की विवेचना चार सप्ताह में पूरा करने के आदेश दिए हैं. वहीं बसपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा के इस मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इंकार कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने बाबू सिंह कुशवाहा की याचिका को निस्तारित करते हुए पारित किया.

याचिका में स्मारक घोटाले में वर्ष 2014 में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी गई थी. याची के अधिवक्ता की दलील थी कि विवेचना पिछले लगभग सात सालों से चल रही है, लेकिन अब तक याची के खिलाफ कोई भी महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं मिला है. इस आधार पर एफआईआर रद्द करने की मांग की गई. वहीं याचिका का विरोध करते हुए, अपर शासकीय अधिवक्ता ने दलील दी कि उक्त एफआईआर लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट आने के बाद वर्ष 2014 में दर्ज की गई थी, जिसमें कुशवाहा के अलावा अन्य कई बड़े लोग जांच के घेरे में हैं.

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सरकारी वकील ने स्वीकार किया कि विवेचना अब भी चल रही है, हालांकि उन्होंने बताया कि याची के खिलाफ प्रथम दृष्टया काफी साक्ष्य मिले हैं. वहीं दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने कहा कि तथ्यों को देखने पर यह पता चलता है कि याची के खिलाफ एफआईआर व विवेचना में प्रथम दृष्टया काफी साक्ष्य हैं, लिहाजा एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती है. वहीं न्यायालय ने सात साल से विवेचना के लम्बित होने पर संज्ञान लेते हुए, इसे चार सप्ताह में पूरा करने का आदेश दिया है.

जानिए कब क्या हुआ ?

बसपा सुप्रीमो मायावती ने साल 2007 से 2012 तक के अपने कार्यकाल में लखनऊ-नोएडा में आम्बेडकर स्मारक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, गौतमबुद्ध उपवन, ईको पार्क, नोएडा का आम्बेडकर पार्क, रमाबाई आम्बेडकर मैदान और स्मृति उपवन समेत पत्थरों के कई स्मारक तैयार कराए थे. इन स्मारकों पर सरकारी खजाने से 41 अरब 48 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. आरोप लगा था कि इन स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर घोटाला कर सरकारी रकम का दुरूपयोग किया गया है. सत्ता परिवर्तन के बाद इस मामले की जांच यूपी के तत्कालीन उपायुक्त एनके मेहरोत्रा को सौंपी गई थी. लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में 14 अरब, 10 करोड़, 83 लाख, 43 हजार का घोटाला होने की बात कही थी.

  • लोकायुक्त की रिपोर्ट में कहा गया था कि सबसे बड़ा घोटाला पत्थर ढोने और उन्हें तराशने के काम में हुआ है. जांच में कई ट्रकों के नंबर दो पहिया वाहनों के निकले थे. इसके अलावा फर्जी कंपनियों के नाम पर भी करोड़ों रुपये डकारे गए.
  • लोकायुक्त ने 14 अरब 10 करोड़ रूपये से ज़्यादा की सरकारी रकम का दुरूपयोग पाए जाने की बात कहते हुए डिटेल्स जांच सीबीआई या एसआईटी से कराए जाने की सिफारिश की थी. सीबीआई या एसआईटी से जांच कराए जाने की सिफारिश के साथ ही बारह अन्य संस्तुतियां भी की गईं थीं.
  • लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी माना गया था. इनमे मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के साथ ही कई विधायक और तमाम विभागों के बड़े अफसर शामिल थे.
  • पूर्व की अखिलेश सरकार ने लोकायुक्त द्वारा इस मामले में सीबीआई या एसआईटी जांच कराए जाने की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए जांच सूबे के विजिलेंस डिपार्टमेंट को सौंप दी थी.
  • विजिलेंस ने एक जनवरी साल 2014 को गोमती नगर थाने में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत उन्नीस नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर अपनी जांच शुरू की. क्राइम नंबर 1/2014 पर दर्ज हुई एफआईआर में आईपीसी की धारा 120 B और 409 के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू की गई.
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