इस खेती से कम लागत में मिलेगा गांरटी के साथ चार गुना रिटर्न

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Published : Aug 31, 2021, 6:18 PM IST

Updated : Aug 31, 2021, 6:54 PM IST

बांस की खेते के बारे में किसान सुरेश चंद्र वर्मा से जानें.

यूपी के लखीमपुर खीरी में एक किसान परंपरागत खेती से हटकर बांस की खेती कर रहे हैं. बांस की खेती किसानों के लिए कितना फायदेमंद है, इस बारे में सकेथू गांव के किसान सुरेश चंद्र वर्मा से जानें.

लखीमपुर खीरीः अब बैंक में आपका पैसा 7 साल में भी दूना नहीं होता लेकिन जिले के रहने वाले एक किसान ने 7 साल में बैंक से चार गुना पैसा अपने खेत में पैदा करने का तरीका खोज निकाला है. ये किसान अपने खेत में बम्बू फार्मिंग यानी बांस की खेती कर रहे है. किसान का मानना है कि बड़े किसानों के लिए ये बैंक में एफडी करने जैसा फार्मूला है.

बांस की खेते के बारे में किसान सुरेश चंद्र वर्मा से जानें.

जिला मुख्यालय से करीब 23 किलोमीटर दूर नीमगांव के पास सकेथू गांव के रहने वाले सुरेश चंद्र वर्मा पढ़े लिखे किसान हैं. बीए एलएलबी किए सुरेश चंद्र वर्मा को खेती- किसानी विरासत में मिली है. 65 साल की उम्र में भी सुरेश का खेती में नए प्रयोग करने का जुनून कम नहीं हुआ है. गन्ने, धान और गेहूं की पारंपरिक खेती से अलग कुछ कर गुजरने की उनकी चाहत ने उनको बागवानी का उस्ताद बना दिया है. सुरेश चंद्र वर्मा आम, आंवला, लीची और नींबू के बागान लगाने के साथ अन्तर्वेती खेती और सहफसली भी खूब करते हैं. गन्ने के साथ उन्होंने बांस की खेती का नया प्रयोग शुरू किया है. अब उनका बांस खेत में लहलहा रहा है.

गन्ने में शुरू की बांस की खेती
सुरेश चंद्र वर्मा बताते हैं कि उन्होंने गन्ने के खेत में बांस की खेती शुरू की थी. करीब डेढ़ एकड़ खेत में उन्होंने बांस लगाने की शुरुआत की. तीन सालों तक गन्ने की खेती भी बांस की पौध के साथ-साथ होती रही. लेकिन चौथे साल से सिर्फ बांस ही खेत में रह गया. सुरेश चंद वर्मा बताते हैं कि अभी वह बांस में अंतर्वर्ती खेती के अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं. बांस बड़ा हो जाने के बाद इसमें हल्दी,अदरक आज की खेती भी हो सकती है.

ये है बांस की खेती का गणित
किसान सुरेश चंद्र वर्मा कहते हैं कि दो से साल तक गन्ने के साथ बांस की खेती हो सकती है. तीन साल बाद बांस की छाया में होने वाली फसलें ली जा सकती हैं, जैसे अदरक और हल्दी आदि. उन्होंने बताया कि डेढ़ एकड़ खेत में बांस लगाया है. उन्होंने बताया कि बांस सात से आठ साल में तैयार होने वाली फसल है. वर्मा बताते हैं कि अगर आपके पास ज्यादा खेती है तो बांस की खेती आपको अच्छा रिटर्न देने की गारंटीड स्कीम है. वर्मा ने बताया कि उन्होंने पंतनगर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से 25 रुपये का एक पौधा लाकर एक एकड़ बीस डिसिमिल में 234 पौधे लगाया है. उन्होंने बताया कि चार साल में एक पौधे में बीस से 22 बांस तैयार हो चुके हैं. अभी तेजी से इन बाँसों में टिलरिंग हो रही है. उम्मीद है एक एक बांस के पौधे में 40 से 50 बांस हो जाएँगे. सुरेश चंद्र शर्मा ने बताया कि एक बांस 150 रुपये में गांव में ही बिक जाता है. इस तरह अगर 234 पौधों में अगर 50-50 बांस निकल आए तो 11700 बांस हो जाएंगे. अगर 150 रुपये प्रति बांस रेट मिल जाए तो 17.55 लाख हो जाता है. अब रेट कुछ ज्यादा मिल गया तो इससे बढ़ भी सकता है. कम हो जाए तो 100 से कम बिकेगा नहीं, तो हो गई न बैंक की एफडी से बढ़िया रिटर्न.

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गन्ने से लागत भी कम और रिटर्न चार गुना
सुरेश चंद्र वर्मा बताते हैं कि आम किसान एक एकड़ की गन्ने की फसल से साल में एक लाख रुपये नहीं निकाल सकता है. अगर निकाल भी लिया तो इसमें 50 फीसदी से ज्यादा लागत लग जाती है. जबकि बांस में लेबर साल में मुश्किल से पांच हजार रुपये खर्च आता है. अगर फर्टिलाइजर डालेंगे तो बी साल में अधिकतम चार हजार रुपये खर्च होता है. उन्होंने बताया कि बांस को शुरुआत में पानी की थोड़ा जरूरत पड़ती है. लेकिन एक बार बांस बढ़ जाए तो पानी की लागत भी बहुत कम हो जाती है. कुक मिलाकर गन्ने से बांस में लागत 10 फीसदी भी नहीं है और गारन्टीड रिटर्न सात साल में पक्का है.


पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी बांस की खेती उपयोगी
सुरेश चंद्र वर्मा ने बताया कि उनके पास 20 एकड़ जमीन है. इनमें से 18 एकड़ में इस वक्त बागवानी है. आम, लीची, कटहल, आँवला, नींबू के अलावा डेढ़ एकड़ के करीब बांस की खेती की है. उन्होंने बताया कि बांस की खेती प्रकृति के करीब हमें ले जाती है. इसके पत्ते गिरकर जमीन को आर्गेनिक मैटेरियल उपलब्ध कराते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है. केंचुए और अन्य माइक्रो मित्र कीट खेत और मिट्टी में बढ़ते हैं. जिससे हम सीधे प्रकृति की सुरक्षा करते और पर्यावरण को दूषित होने से बचाने में भी सहयोग करते हैं.

शुभ माना जाता है बांस
बता दें कि बांस भारतीय संस्कृति का एक बहुत महत्वपूर्ण पौधा है. शादी हो या अन्य मांगलिक कार्य बांस हमेशा मनुष्य के साथ रहता है. जीवन के चलने का नाम भी बांस माना जाता. इसीलिए बांस की खेती पुरातन काल से चलती चली आ रही है. अब बांस के फर्नीचर से लेकर आभूषण तक बनने लगे हैं. जिसकी वजह से बांस की खूब मांग बढ़ी है. ऐसे में बांस अब किसानों की इनकम डबल ट्रिपल करने का भी अच्छा साधन बन गया है.

सरकार भी दे रही बांस खेती को बढ़ावा
केंद्र सरकार भी राष्ट्रीय बंबू मिशन के तहत बांस की खेती को बढ़ावा दे रही है. मोदी सरकार ने बांस की खेती के बढ़ावे के लिए 2018 में बांस को पेड़ की कैटेगरी से अलग कर दिया. पहले बांस काटने के लिए भी वन विभाग की परमिशन लेनी पड़ती थी. लेकिन अब बांस काटने में वन विभाग की परमिशन और ट्रांजिट परमिशन लेने की जरूरत नहीं है. जबकि वन विभाग की जमीन पर ये नियम लागू नहीं होगा. राष्ट्रीय बैम्बू मिशन में सरकार हर बांस के पौधे पर 120 रुपये की सरकारी सहायता भी दे रही है. उद्यान विभाग या कृषि विभाग से किसान बांस की खेती के लिए सम्पर्क कर सकते हैं.

Last Updated :Aug 31, 2021, 6:54 PM IST
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