माटी पर उकेरी जा रही कानपुर की क्रांति की गौरव गाथा

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Published : May 24, 2023, 10:13 AM IST

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सीएसजेएमयू में आयोजित एक कार्यशाला की थीम इस बार कानपुर की क्रांति है. इस कार्यशाला में कई राज्यों के कलाकर जुटे हैं. चलिए जानते हैं इस बारे में.

कानपुर: शहर के क्रांतिकारियों के पराक्रम को अब मूर्तिकला के जरिए नमन करने की तैयारी हो रही है. दरअसल, छत्रपति शाहू जी महाराज विवि में कुछ ऐसा अनूठा काम हो रहा है. विवि के स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स विभाग की ओर से आठ दिवसीय फाइबर मूर्तिशिल्प कार्यशाला आयोजित की गई है जिसकी थीम कानपुर के क्रांतिकारी रखी गई थी. यहां पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों से आए कलाकारों ने एक से बढ़कर एक कलाकृतियों को अपने हुनर से तैयार किया है.

सीएसजेएमयू में जुटे कई राज्यों के मूर्तिकार.

कई कलाकृतियां तो ऐसी हैं, मानो जैसे वह जीवंत हों उठी हों. विवि के कुलपति प्रो.विनय पाठक ने कहा, कि विवि की इस कवायद को जिसने जाना वह आश्चर्यचकित है. उन्होंने सभी प्रतिभागियों की प्रतिभाओं को सराहा है. उन्होंने उम्मीद जताई कि विश्वविद्यालय की यह पहल कानपुर की क्रांति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में काफी कारगर साबित होगी.

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सीएसजेएमयू में मूर्तिशल्प की कार्यशाला.


विवि के स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स विभाग के छात्रों को इस सत्र के प्रैक्टिकल वर्क में भी एक रोमांचक टास्क दिया गया है. विवि कैम्पस की जो दीवारें हैं, वहां उक्त विभाग के छात्र अपने हुनर से दीवारों पर आकर्षक तस्वीरें उकेरेंगे. छात्रों के इस प्रदर्शन के आधार पर उन्हें प्रायोगिक परीक्षा के अंक दिए जाएंगे. छात्रों ने विवि की दीवारों को रंगना भी शुरू कर दिया है. स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स के प्रो.जेबी यादव ने बताया कि छात्रों के लिए यह व्यवस्था उनकी स्किल को बेहतर करने में बहुत उपयोगी साबित होगी.

कानपुर की क्रांति पर एक नजर
1857 को मेरठ में क्रांति की शुरुआत होने के बाद कानपुर की क्रांति का बिगुल मराठा साम्राज्य के 14वें पेशवा नानाराव राव के नेतृत्व में फूंका गया. तात्या टोपे उनके सेनापति थे. उन्होंने मराठा सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेजों की सेना के दांत खट्टे कर दिए थे. 27 जून को सत्तीचौरा घाट से मैस्कर घाट के बीच गंगा में कई अंग्रेजों की जलसमाधि बन गई थी. मैस्कर घाट अभी भी इसका गवाह है. इसी का बदला लेने के लिए कंपनी बाग के बूढ़े बरगद के पेड़ पर 133 क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने सरेआम फांसी दे दी थी. यह नहीं नानाराव पेशवा के पुतले को कई बार फांसी पर लटकाया गया था. इसके निशान अभी भी कानपुर में देखने को मिलते हैं.


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