जालौन के लंका मीनार में की जाती है 180 फीट नाग और 95 फीट नागिन की पूजा

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Published : Aug 13, 2021, 11:44 AM IST

जालौन के लंका मीनार

जालौन के लंका मीनार में आज नागपंचमी के दिन 180 फीट नाग और 95 फीट नागिन की पूजा की जाती है. हर साल नागपंचमी के दिन यहां बहुत बड़ा मेले का आयोजन किया जाता था, लेकिन पिछले बार की तरह इस बार भी कोरोना के चलते यहां मेले का आयोजन स्थगित कर दिया गया है.

जालौन: आज 13 अगस्त को नागपंचमी का त्योहार है और आज के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में सापों को देवता के रूप में पूजा जाता है. नाग शिव के गले का आभूषण भी है ऐसे में सावन के समय सांपों की पूजा करने से नाग देवता के साथ साथ भगवान शिव की भी कृपा प्राप्त होती है. जिले के कालपी में लंका मीनार परिसर में लगने वाला मेला इस बार भी कोरोना के चलते स्थगित कर दिया गया है. लंका मीनार में नागपंचमी पर 180 फीट के नागदेवता और 95 फीट की नागिन के पूजन अर्जन करने का विशेष महत्व है और हर साल यहां मेले का आयोजन किया जाता रहा है, लेकिन कोविड प्रोटोकॉल के कारण इस साल भी स्थगित कर दिया गया है.


जिले के उरई मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर कालपी कस्बा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नगरी के रूप में विख्यात है. इसे बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. इस नगर में ऐतिहासिक धरोहरों में मौजूद लंका मीनार के परिसर में डेढ़ सौ वर्षों से नाग पंचमी के दिन मेला और दंगल का आयोजन होता था. जिस कारण यहां कानपुर देहात, हमीरपुर, औरैया, महोबा और जालौन जिले के सभी क्षेत्रों से आकर लोग यहां नाग पंचमी के दिन पूजा और अर्चना करते हैं, लेकिन कोरोना काल के चलते कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया है. आयोजकों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए परिसर में बने नाग और नागिन का विधि विधान से पूजन और अर्चन किया.

बता दें इस लंका मीनार का निर्माण बाबू मथुरा प्रसाद ने सन 1875 में इसका निर्माण कराया था. इस लंका मीनार को बनने में 25 वर्षों का समय लगा था और इसकी लंबाई लगभग 30 मीटर है. लंका मीनार के गेट के अंदर प्रवेश करते ही लंका प्रांगण में पहुंचते ही 180 फीट के नागदेवता और 95 फीट की नागिन स्थापित है. नाग पंचमी के दिन निगम परिवार इनकी पूजा अर्चना करता है. सबसे पहले लोगों को नाग नागिन के ही दर्शन होते हैं. बाद में लंका प्रांगण के अंदर जा सकते हैं.

कालपी कस्बे रावगंज मोहल्ले के रहने वाले मुकेश निगम ने बताया उनके दादाजी ने नाग पंचमी के दिन लंका मीनार पर मेले और दंगल का आयोजन शुरू किया था जो पिछले 200 वर्षों से निरंतर चल रहा था लेकिन कोरोना का की वजह से यह कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा. दंगल के आयोजन की ख्याति देश के कोने कोने में फैलने से पहलवान अपने दांव पेच दिखाने हर राज्य से आते थे परंतु पिछले दो सालों से मेला और दंगल का आयोजन नहीं हो पाया है

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हमारे पुराणों में अनादिकाल से ही देवताओं के साथ नागों के अस्तित्व के प्रमाण हैं. पुराणों में नागों के सम्बन्ध में बहुतायात सामग्री उपलब्ध है. यहां तक कि नागों के संसार को नागलोक की संज्ञा दी गयी है. पुराणों में वर्णित है कि समुद्र मंथन के महान कार्य में नागराज वासुकि ने अपना शरीर रस्सी के रूप में समर्पित किया था. देवताओं की माता अदिति की सगी बहन कद्रू के पुत्र होने से नाग, देवताओं के छोटे भाई के समान हैं.

नागपंचमी के आरम्भिक इतिहास के बारे में श्रीवाराह पुराण में लिखा है सृजन शक्ति के अधिष्ठाता ब्रह्मा जी ने शेषनाग को अलंकृत किया और समस्त मानवों ने उनके इस कार्य की प्रशंसा की. कहा जाता है कि तभी से इस पर्व को इस जाति के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने का प्रतीक मान लिया गया है. यजुर्वेद में भी नागों के पूजन का उल्लेख मिलता है. इस व्रत का भी विधान है व्रत का माहात्म्य पढ़ने और सुनने मात्र से भी समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं.

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