महंत दिग्विजयनाथ की प्रतिमा का आज होगा अनावरण, सीएम योगी के साथ केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान रहेंगे मौजूद

author img

By

Published : Sep 23, 2021, 1:29 PM IST

गोरखपुर में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और सीएम योगी महंत दिग्विजयनाथ की प्रतिमा का आज यानि गुरुवार को अनावरण करेंगे. महंत दिग्विजयनाथ पार्क के स्थायी मंच का भी लोकार्पण होगा.

गोरखपुर: ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की स्मृतियों के जीवंत होने और उसे जानने का गुरुवार 23 सितंबर बड़ा अवसर बनेगा. उनकी प्रतिमा का सीएम योगी और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जब शाम 4 बजे लोकार्पण करेंगे तो कई तरह के संदेश दूर तक जाएंगे. उन्हें युगपुरुष कहा जाता है. महंत जी न केवल गोरखनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप के शिल्पी रहे, बल्कि उनका पूरा जीवन राष्ट्र, धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, शिक्षा व समाजसेवा के जरिए लोक कल्याण को समर्पित रहा.

तरुणाई से ही वह देश की आजादी की लड़ाई में जोरदार भागीदारी निभाते रहे तो देश के स्वतंत्र होने के बाद सामाजिक एकता और उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे. इसके लिए शैक्षिक जागरण पर उनका सर्वाधिक जोर रहा. महंत दिग्विजयनाथ का जन्म वर्ष 1894 में वैशाख पूर्णिमा के दिन चित्तौड़, मेवाड़ ठिकाना ककरहवां (राजस्थान) में हुआ था. उनके बचपन का नाम नान्हू सिंह था. पांच वर्ष की उम्र में 1899 में इनका आगमन गोरखपुर के नाथपीठ में हुआ. उनकी जन्मभूमि मेवाड़ की माटी थी. बचपन से ही उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति और स्वाभिमान से समझौता न करने की प्रवृत्ति कूट कूटकर भरी हुई थी. उनकी शिक्षा गोरखपुर में ही हुई और उन्हें खेलों से भी गहरा लगाव था.

ब्रह्मलीन महंत ने किराए के कमरे में जलाई थी शिक्षा की ज्योति
15 अगस्त 1933 को गोरखनाथ मंदिर में उनकी योग दीक्षा हुई और 15 अगस्त 1935 को वह इस पीठ के पीठाधीश्वर बने. वह अपने जीवन के तरुणकाल से ही आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेते रहे. देश को स्वतंत्र देखने का उनका जुनून था कि उन्होंने 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन के समर्थन में स्कूल छोड़ दिया. उन पर लगातार आरोप लगते थे कि वह क्रांतिकारियों को संरक्षण और सहयोग देते हैं. 1922 के चौरीचौरा के घटनाक्रम में भी उनका नाम आया, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता के सामने ब्रिटिश हुकूमत को झुकना पड़ा और उन्हें रिहा कर दिया गया.

अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर के निर्माण को लेकर हुए आंदोलनों में गोरक्षपीठ की महती भूमिका से सभी वाकिफ हैं. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ इस आंदोलन में नींव के पत्थर हैं. 1934 से 1949 तक उन्होंने लगातार अभियान चलाकर आंदोलन को न केवल नई ऊंचाई दी, बल्कि 1949 में वह श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के नेतृत्वकर्ता भी रहे. पांच सौ वर्षों के इंतजार के बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है. ऐसे में जब भी मंदिर का जिक्र होगा, ब्रह्मलीन महंत लोगों को याद आते रहेंगे.

राष्ट्र, धर्म, शिक्षा व सेवा को आजीवन समर्पित रहे महंत दिग्विजयनाथ
महंत दिग्विजयनाथ ने गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों के लिए शिक्षा की जो ज्योति जलाई, उससे आज पूरा अंचल प्रकाशित हो रहा है. शिक्षा क्रांति के लिए उन्होंने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की. एक किराए के मकान में परिषद के अंतर्गत महाराणा प्रताप क्षत्रिय स्कूल शुरू हुआ. 1935 में इसे जूनियर हाईस्कूल की मान्यता मिली और 1936 में हाईस्कूल की भी पढ़ाई शुरू हुई. नाम 'महाराणा प्रताप हाई स्कूल' हो गया. इसी बीच महंत दिग्विजयनाथ के प्रयास से गोरखपुर के सिविल लाइन्स में पांच एकड़ भूमि महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद को प्राप्त हो गई और महाराणा प्रताप हाईस्कूल का केन्द्र सिविल लाइन्स हो गया और देश के आजाद होते समय यह विद्यालय महाराणा प्रताप इन्टरमीडिएट कॉलेज के रुप में प्रतिष्ठित हुआ.

1949-50 में इसी परिसर में महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज की स्थापना महंतजी की अगुवाई में हुई. शिक्षा को लेकर उनकी सोच दूरदर्शी और निजी हित से परे थी. यही वजह थी कि उन्होंने 1958 में अपनी संस्था महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज को गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु दान में दिया. बाद में परिषद की तरफ से उनकी स्मृति में दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना की. महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा वर्तमान में करीब चार दर्जन शिक्षण संस्थाएं गोरखपुर क्षेत्र में संचालित हो रही हैं. इनमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों 28 अगस्त को लोकार्पित महायोगी गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय सबसे नवीन है. महंत दिग्विजयनाथ ने राजनीति में भी गोरक्षपीठ की लोक कल्याण की परंपरा को ही ध्येय बनाया.

इसे भी पढ़ें-चुनाव आता देख महंत नरेंद्र गिरि के पार्थिव शरीर को नमन करने गए अखिलेशः श्रीराम चौहान

1937 में वह हिन्दू महासभा में शामिल होकर उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की विधिवत शुरुआत की. महंत ने 1944 में हिन्दू महासभा के प्रांतीय अधिवेशन का ऐतिहासिक आयोजन गोरखपुर में कराया. महासभा के राजनीतिज्ञ होने के कारण 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के मिथ्यारोप में उन्हें बंदी बना लिया गया, लेकिन सरकार को 1949 में दस माह बाद ससम्मान बरी करना पड़ा. राष्ट्र के हित में उन्होंने 1956 में पृथक पंजाबी राज्य के लिए मास्टर तारा सिंह के आमरण अनशन को सूझबूझ से समाप्त कराया. वह 1961 में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष (हिन्दू राष्ट्रपति के रूप में) निर्वाचित हुए. धर्म व सामाजिक एकता के क्षेत्र में भी उनका योगदान अतुलनीय है. 1939 में अखिल भारतीय अवधूत भेष बारहपंथ योगी महासभा की स्थापना कर पूरे देश के संत समाज को लोक कल्याण व राष्ट्रहित के लिए एकजुट करने के लिए भी उन्हें याद किया जाता है.

1960 में हरिद्वार में अखिल भारतीय षडदर्शन सभा सम्मेलन की अध्यक्षता, 1961 में दिल्ली में अखिल भारतीय हिन्दू सम्मेलन का आयोजन व 1965 में दिल्ली में अखिल विश्व हिन्दू सम्मेलन का आयोजन भी उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों में शामिल हैं. 1967 में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए महंतश्री 1969 में ब्रह्मलीन हुए, लेकिन उनके व्यक्तित्व व कृतित्व की अमरता अहर्निश बनी हुई है. ब्रह्मलीन महंत की पावन स्मृति को इस बार गोरखपुर एक विशेष आयोजन से नमन करने जा रहा है. रामगढ़ताल के समीप बने स्मृति पार्क में स्थापित महंत दिग्विजयनाथ की साढ़े बारह फीट ऊंची प्रतिमा उनके यशस्वी व्यक्तित्व व कृतित्व की याद दिलाकर लोगों को प्रेरित करेगी. इस प्रतिमा का अनावरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान करेंगे. ब्रह्मलीन महंत के नाम को समर्पित इस पार्क में प्रतिमा अनावरण के साथ दीवारों पर उकेरी गई म्यूरल पेंटिंग उनके जीवन यात्रा का दर्शन कराती है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.