Mahendra Bhati Murder Case : आरोपी करण पाल यादव कोर्ट से रिहा

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Published : Nov 25, 2021, 6:02 PM IST

नैनीताल हाईकोर्ट

नैनीताल हाईकोर्ट ने गाजियाबाद के विधायक रहे महेंद्र भाटी की हत्या मामले में तीसरे आरोपी करण पाल यादव को भी बरी कर दिया है. इससे पहले हाईकोर्ट बाहुबली नेता डीपी यादव सहित दो आरोपियों को बरी कर चुका है.

नैनीताल/गाजियाबाद: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने साल 1992 में गाजियाबाद के दादरी विधायक महेंद्र भाटी की हत्या में दोषी करार दिए गये करन पाल यादव की अपील पर फैसला सुनाते हुए बरी कर दिया है. आज मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ ने देहरादून सीबीआई अदालत के आदेश को निरस्त कर करते हुए ठोस सबूत न मिलने पर करण पाल यादव को रिहा करने के आदेश दिए हैं. हाईकोर्ट दो अभियुक्तों डीपी यादव और पाल सिंह उर्फ लक्कड़ पाला उर्फ हरपाल सिंह को पहले ही बरी कर चुका है.

नैनीताल हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ट्रायल के दौरान सीबीआई इनके खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाने में असमर्थ रही. जो भी सबूत जुटाए गए थे, उनमें भी विरोधाभास था. इस पर इनको रिहा करने के आदेश दिए हैं. इस मामले का मुख्य आरोपी पूर्व सांसद डीपी यादव 10 नवंबर, 2021 को पहले ही बरी हो चुका है. मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने मंगलवार को यह अहम आदेश पारित किया.

ये है पूरा मामलाः 13 सितंबर 1992 को गाजियाबाद के दादरी रेलवे क्रॉसिंग पर तत्कालीन विधायक महेंद्र भाटी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. दरअसल, 13 सितंबर, 1992 को गाजियाबाद में तत्कालीन विधायक भाटी अपने समर्थकों के साथ बंद रेलवे फाटक के खुलने का इंतजार कर रहे थे. इस दौरान एक वाहन में सवार हथियारबंद बदमाशों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. इसमें भाटी व उनके साथी उदय प्रकाश की मौत हो गई थी. कुछ लोग घायल हुए थे.

पढ़ें- महेंद्र भाटी हत्याकांड: नैनीताल HC ने डीपी यादव के साथी पाल सिंह को भी किया बरी

जांच के दौरान इस हत्याकांड में यूपी के बाहुबली नेता व पूर्व सांसद डीपी यादव, परनीत भाटी, करन यादव व पाला उर्फ लक्कड़ पाल के नाम सामने आए. पुलिस ने हत्या के दौरान इस्तेमाल की गई गाड़ी भी बरामद की थी. 15 फरवरी, 2015 को देहरादून की सीबीआई कोर्ट ने चारों को आजीवन कारावास की सजा सुनवाई थी. इस आदेश को चारों अभियुक्तों ने फिर हाईकोर्ट में चुनौती दी.

तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से विधायक महेंद्र भाटी की हत्या के मामले को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को ट्रांसफर किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस केस को साल 2000 में सीबीआई को सौंप दिया था. सुप्रीम कोर्ट को आशंका थी कि डीपी यादव यूपी का बाहुबली और बड़ा नेता है, ऐसे में यूपी में उसके खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई नहीं हो पाएगी. केस को उत्तराखंड ट्रांसफर किया गया.

आतंक का दूसरा नाम डीपी यादव: बाहुबली व धनबली के रूप में कुख्यात डीपी यादव कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आतंक का दूसरा नाम था. कभी जिला गाजियाबाद में नोएडा सेक्टर-18 के पास शरफाबाद गांव में डेयरी चलाने वाले धर्मपाल यादव 1970 के दशक में शराब माफिया किंग बाबू किशन लाल के संपर्क में आया. यही शख्स धर्मपाल यादव से धीरे-धीरे डीपी यादव के रूप में कुख्यात होता चला गया. शराब माफिया किशन लाल, डीपी यादव को एक दबंग गुंडे की तरह इस्तेमाल करता था. डीपी शराब की तस्करी में अहम भूमिका निभाता था. डीपी यादव कुछ समय बाद ही किशन लाल का पार्टनर बन गया.

इन दोनों का गिरोह जोधपुर से कच्ची शराब लाता था और पैकिंग के बाद अपना लेबल लगा कर उस शराब को आसपास के राज्यों में बेचता था. जगदीश पहलवान, कालू मेंटल, परमानंद यादव, श्याम सिंह, प्रकाश पहलवान, शूटर चुन्ना पंडित, सत्यवीर यादव, मुकेश पंडित और स्वराज यादव वगैरह डीपी के गिरोह के खास गुर्गे थे.

जहरीली शराब से हरियाणा में ली थी 350 लोगों की जान: 1990 के आसपास डीपी यादव की कच्ची शराब पीने से हरियाणा में साढ़े तीन सौ लोग मर गए. इस मामले में जांच के बाद दोषी मानते हुये हरियाणा पुलिस ने डीपी यादव के विरुद्ध चार्जशीट भी दाखिल की थी. पैसा, पहुंच और दबंगई के बल पर धीरे-धीरे डीपी यादव अपराध की दुनिया का स्वयं-भू बादशाह हो गया. दो दर्जन से अधिक आपराधिक मुकदमों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध होने लगा, तो 1991 में इस पर एनएसए के तहत भी कार्रवाई हुई.

1992 में विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या के बाद डीपी यादव के विरुद्ध सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया. इस हत्या के बाद गैंगवार शुरू हुई. डीपी के गुर्गों ने कई लोगों को मारा. डीपी के पारिवारिक सदस्यों के साथ उसके कई खास लोगों की जान गई.

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