UP Assembly Election 2022: इस कारण विकास की दौड़ में पिछड़ गया बदायूं का सहसवान विधानसभा

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Published : Sep 28, 2021, 12:38 PM IST

इस कारण विकास की दौड़ में पिछड़ गया बदायूं का सहसवान विधानसभा

बदायूं सहसवान विधानसभा क्षेत्र (Sahaswan Assembly) पर पिछले लंबे समय से समाजवादी पार्टी का कब्जा है. साथ ही समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव (Samajwadi Party chief Mulayam Singh Yadav) भी इस सीट से 1996 में चुनाव जीत चुके हैं और तो और इस सीट की सियासी समीकरण को समझना है तो इसी से समझा जा सकता है कि 2017 की मोदी लहर में भी यहां से समाजवादी पार्टी के ओमकार सिंह यादव विजयी हुए. हालांकि, 2022 का चुनाव यहां राजनैतिक रूप से बड़ा उलट-फेर कर सकता है, क्योंकि कद्दावर नेता डी पी यादव का क्षेत्र के यादव मतदाताओं पर प्रभाव है. साथ ही बसपा,कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी यहां किसी का भी खेल बना और बिगाड़ सकते हैं.

बदायूं: बदायूं जिला अंतर्गत आने वाले सहसवान विधानसभा (Sahaswan Assembly) (113) क्षेत्र हमेशा से समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है. समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव (Samajwadi Party chief Mulayam Singh Yadav) भी इस सीट से 1996 में चुनाव जीत चुके हैं. और तो और 2017 की मोदी लहर में भी यहां से समाजवादी पार्टी के ओमकार सिंह यादव विजयी हुए. बदायूं जिले में यूं तो 6 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें से 5 सीटों पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है. लेकिन एक मात्र सहसवान विधानसभा सीट ही ऐसी है, जिस पर 2017 में मोदी लहर के बाबजूद भी समाजवादी पार्टी का कब्जा बहाल रहा.

इस कारण विकास की दौड़ में पिछड़ गया बदायूं का सहसवान विधानसभा

यूं तो सहसवान का इतिहास बहुत ही प्राचीन है. यह नगर 1802 से लेकर 1836 तक जिला मुख्यालय रहा. इसके बाद बदायूं को जिला घोषित कर सहसवान को उसका उपनगर बना दिया गया. कहा जाता है कि यहां सहस्त्रबाहु नाम के राजा थे, जिन्होंने इस नगर को बसाया था.

बाद में इसका नाम बदलकर सहसवान कर दिया गया. सहसवान एक ऐसा क्षेत्र है, जो आज भी कौमी एकता की मिसाल कायम करता है. यहां पर प्राचीन तीर्थ स्थल सरसोता है, जहां एक विशाल कुंड लोगों की धार्मिक आस्था का प्रतीक है.

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सहसवान विधानसभा सीट जनपद की यादव बहुल सीट है. यही कारण है कि भाजपा इस सीट पर 2017 में जीत दर्ज करने में कामयाब नहीं हो सकी. वहीं, क्षेत्र में यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण ही यहां सपा की जीत सुनिश्चित होते रही है.

इधर, अगर कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद की बात की जाए यानी 1990 के बाद कि तो यहां यादव जाति का ही प्रतिनिधि चुना जीतता रहा है. वर्तमान में समाजवादी पार्टी के ओंकार सिंह यादव यहां से विधायक हैं और वे चार बार यहां से विधायक चुने जा चुके हैं. 2007 में प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव ने भी राष्ट्रीय परिवर्तन दल से यहां से विधानसभा का सफर तय किया था.

उसके बाद 2012 तथा 2017 में सपा के ओमकार सिंह यहां से विधायक बने, यहां के यादव वोटरों में विधानसभा चुनावों को लेकर एक अलग उत्साह रहता है, जिसका लाभ यहां सपा प्रत्याशी को मिलता रहा है.

मुलायम सिंह यादव भी यहां से लड़ चुके हैं चुनाव

बता दें कि सहसवान विधानसभा सीट से 1996 में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़े थे, जिन्होंने भाजपा प्रत्याशी महेश चंद्र गुप्ता को करीब 54000 मतों से शिकस्त दी थी. 2022 के विधानसभा चुनाव की अगर बात करें तो इस सीट पर इस बार भी सपा और भाजपा का सीधा मुकाबला होने की संभावना है. इस बार देखा जाए तो इस क्षेत्र में डीपी यादव का परिवार भी भारतीय जनता पार्टी की झंडा बरदारी करता नजर आ रहा है.

सहसवान विधानसभा (113) क्षेत्र में अगर वोटरों की संख्या की बात की जाए तो यहां लगभग 2,21,922 पुरुष मतदाता हैं तो वहीं 1,90,760 महिला मतदाता हैं. कुल वोटरों की संख्या यहां लगभग 4,12,698 है.

विकास को तरसते क्षेत्रवासी

सहसवान विधानसभा क्षेत्र विकास की दौड़ में जिले के अन्य विधानसभा क्षेत्रों से पिछड़ता नजर आता है. यूं तो यह नगर दिल्ली हाई-वे पर बसा हुआ है. लेकिन चुने गए जनप्रतिनिधि का सत्ताधारी पार्टी में न होना कही न कहीं इस क्षेत्र के विकास में भी बाधक रहा है. इस क्षेत्र से गुजरने वाले दिल्ली हाई-वे पर सैकड़ों की संख्या में गोवंश को सड़क पर बैठा देखा जा सकता है, जो अक्सर हादसों का सबब भी बनता है.

2022 का चुनाव यहां राजनैतिक रूप से बड़ा उलट फेर कर सकता है. क्योंकि कद्दावर नेता डी पी यादव का क्षेत्र के यादव मतदाताओं पर प्रभाव है. साथ ही बसपा,कांग्रेस और आम आदमी पार्टी यहां किसी का भी खेल बना और बिगाड़ सकते हैं.

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