Agra News: सर्जन व तकनीकी कमी के कारण देश की 50% जनता को नहीं मिल पाती सर्जिकल मदद
Published: Mar 18, 2023, 6:34 PM


Agra News: सर्जन व तकनीकी कमी के कारण देश की 50% जनता को नहीं मिल पाती सर्जिकल मदद
Published: Mar 18, 2023, 6:34 PM
आगरा में एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार जैन के मुताबिक, सर्जन और तकनीकों की कमी के चलते देश में 50 फीसदी लोगों को इलाज के दौरान सर्जीकल मदद नहीं मिल पाती है.
आगरा: देश की 50 फीसदी जनता (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र) को इलाज के दौरान सर्जीकल मदद नहीं मिल पाती है. देश में सर्जन की कमी के साथ नई तकनीकों से ट्रेंड सर्जन्स की भी कमी है. आगरा में एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार जैन ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि, आगरा में एसोसिएशन ऑफ मिनिमल एक्सेस सर्जरी की ओर से 88वां अमासी स्किल कोर्स एंड एफएमएएस एग्जामिनेशन किया जा रहा है. जिसमें 200 से अधिक सर्जन एंडो ट्रेनर पर ट्रैनिंग ले रहे हैं. परीक्षा में केरल, चैन्नई, श्रीनगर, पटना, कलकत्ता, हैदराबाद, सूरत, भोपाल, लखनऊ, पटियाला सहित लगभग सभी प्रांतों के सर्जन शामिल हैं.
एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. संजय कुमार जैन बताया कि भारत में रोबोटिक सर्जरी का प्रयोग काफी तेजी से बढ़ रहा है. जटिल ऑपरेशन में जहां हम ओपन और लैप्रोस्कोपिक तकनीक से नहीं पहुंच पाते हैं. रोबोटिक सर्जरी ने ऐसे ऑपरेशन की दिशा बदल दी है. जल्दी ही यह सर्जरी भी आम जन सुलभ होने के साथ कम कीमत में उपलब्ध होगी.
अमासी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. वर्गीज सीजे ने बताया कि एसोसिएशन द्वारा सर्जन्स को आधुनिक तकनीकों से ट्रेंड कर देश के हर कोने में जरूरतमंद मरीजों के लिए बेतरह सुविधाएं उपलब्ध कराना उद्देश्य है. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस ओर ज्यादा काम किया जा रहा है. सर्जरी के क्षेत्र में प्रत्येक 10 वर्षों में कुछ न कुछ नयी तकनीके विकसित हुईं हैं. जरूरी है कि, सर्जन इन तकनीकों को सीखें और खुद को अपडेट रखें. जिससे देश के हर मरीज तक इसका लाभ पहुंच सके.
अमासी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. तमोनास चौधरी ने बताया कि मेडिकल स्टूडेंस के समय जो तकनीकें विशेषज्ञों ने सीखीं. प्रैक्टिस के दौरान नयी तकनीकें विकसित हो जाती है. इसलिए सर्जन्स को अपडेट रखने के लिए इस तरह के कोर्स बहुत जरूरी हैं, जिससे देश के हर नागरिक को बेहतर सर्जीकल सुविधाएं उपलब्ध हो सकें. भारत में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी बहुत जरूरी है. क्योंकि, 70 फीसदी लोग शारीरिक श्रम वाले कामों से जुड़े हैं. जिसमें जल्दी से जल्दी काम पर लौटना होता है.
गर्भाशय कैंसर में मात्र 15-20 फीसदी हो रही प्रैप्रोस्कोपिक सर्जरी
दिल्ली के डॉ. विक्रांत शर्मा ने बताया कि बच्चेदानी के कैंसर में लैप्रोस्कोपिक सर्जरी काफी कारगर है. जिसमें कम दर्द और इंजरी और जल्दी रिकवरी होने के साथ आवश्यकता होने पर मात्र 10-12 दिन बाद कीमो दी जा सकती है. जबकि, ओपन सर्जरी में कीमों देने के लिए 4-6 हफ्तों का लम्बा तजार करना पड़ता है. इसके बावजूद भारत में 15-20 फीसदी सर्जन ही लैप्रोस्कोपिक सर्जरी कर रहे है.
लैप्रोस्कोपिक ट्रीटमेंट से रोके जा सकते है 70 फीसदी आईवीएफ के मामले
दिल्ली से आईं डॉ. निकिता त्रेहान ने बताया कि बदलती जीवनशैली, खान-पान और देर से विवाह के कारण आईवीएफ के मामलों में भी इजाफा हो रहा है. इसके लिए दूरबीन विधि से अंडाशय में स्टैम सेल डालकर अंडों को स्ट्रांग कर दिया जाता है. जिससे अधिक उम्र में गर्भधारण करने की सम्भावना बढ़ जाती है. आईवीएफ के मामलों में 70 फीसदी तक कमी लाई जा सकती है. वहीं, डॉ. दिव्या जैन ने बताया डायग्नोस्टिक लैप्रोस्कोपी का बी प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है. जिसमें सर्जरी करने के साथ बीमारी का पता लगाने के लिए भी प्रयोग किया जा रहा है.
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