International Widows Day: अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस पर जानिए अपनों से ठुकराई विधवा महिलाओं की दास्तान

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Published : Jun 23, 2022, 5:58 AM IST

etv bharat

वाराणसी के दुर्गाकुंड स्थित राजकीय वृद्धा विधवा आश्रम में 19 विधवा माताएं रहती है. जो अलग-अलग जिलों और जगहों से हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानते हैं वृद्ध विधवा माताओं की दास्तान...

वाराणसी: 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस (International Widows Day) देश और प्रदेश में मनाया जाएगा. समाज के लिए इस दिन का क्या महत्व है. यह जानने के लिए ETV BHARAT की टीम वाराणसी के दुर्गाकुंड स्थित राजकीय वृद्धा विधवा आश्रम (Government Old Age Widow Ashram) पहुंची. यहां वृद्ध विधवा महिलाओं की कहानी सुन आप अपने खून के रिश्तों पर सवाल खड़ा करेंगे. क्या बुढ़ापा व विधवा होना श्राप है? क्या किसी विधवा दिवस के मायने सोशल साइट्स पर फोटो लगाने तक ही सीमित हैं? ऐसे कई सवाल हैं. आइए जानते हैं अपनों से दूर इस मोक्ष नगरी में मोक्ष की लालसा लिए वृद्ध विधवा महिलाएं कैसे जी रही हैं?

राजकीय वृद्धा विधवा आश्रम में रहने वाली माताओं से बात

गौरतलब है कि दुर्गाकुंड स्थित राजकीय वृद्धा विधवा आश्रम में कुल 19 विधवा महिलाएं आश्रय ली हुई है. जो प्रत्येक दिन अपने दिनचर्या में अपने दर्द को छुपाने में लगी रहती हैं. सुबह पूजा से शुरू हुआ इनका दिन शाम को भजन करने के साथ खत्म हो जाता है. लेकिन, इस बीच उनके मन में सिर्फ एक ही लालसा रहती है कि अंतिम सांस शिव की नगरी काशी में लें.

रायबरेली की अम्मा ने बताया कि '12 वर्ष की उम्र में ही वह विधवा हो गई थी. ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया, जिसके बाद पिता का सहारा मिला. लेकिन, उम्र ढलने के साथ है पिताजी भी गुजर गए. अब परिवार में मतभेद होने लगे. इसकी वजह से वह काशी में आकर इस आश्रम में रहने लगी.' उन्होंने बताया कि 'अब अंतिम समय में उन्हें इस नगरी में मोक्ष पाने की लालसा है. दो वक्त की रोटी बहुत आराम से मिल जाती है.' लेकिन, उनको दर्द इस बात का है कि उनके अपनों ने ही उनका दर्द को नहीं समझा.

वहीं, बिहार नालंदा की रहने वाले कौशल्या देवी ने बताया कि 'कम उम्र में ही विधवा होने के बाद वह मानसिक रोगी हो गई, ससुराल वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया. इसके बाद वह खुद-ब-खुद काशी नगरी आ गई. यहां पुलिस के जरिए उन्हें इस आश्रम में भेजा गया. अब वह प्रतिदिन महादेव की पूजा-पाठ करने के साथ मोक्ष की कामना कर रही हैं.'


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राजकीय विधवा आश्रम बना सहारा: महिलाओं की ये दर्द भरी दास्तान सुनकर इंसानियत पर सवाल खड़े होते हैं कि कैसे कोई अपनों को दूर कर सकता है? क्या किसी एक इंसान को दो वक्त की रोटी खिलाना भी अपनों को मुनासिब नहीं हो पाता? इन सवालों के जवाब इन महिलाओं को देखकर मिलते हैं कि आज के आधुनिक जीवन में भी घर के वृद्ध या फिर विधवा महिलाएं कैसे परिवार के ऊपर एक बोझ साबित होने लगती हैं. लेकिन, विधवा माताओं के दर्द को भरने का काम राजकीय आश्रम कर रहा है. जहां आश्रम माताओं के जीवन में हर दिन उत्साह को भर रहा है. खाने-पीने से लेकर पूजा-पाठ दवाई तक का पूरा इंतजाम राजकीय आश्रम महिलाओं के लिए करता है. इससे इनको घर जैसा माहौल मिलता है. लेकिन, इस बात की ठेस इन्हें जरूर है कि वह घर नहीं हैं.

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