40,000 Ghost Flights : यात्रियों के बिना उड़ानें भर रहीं फ्लाइट्स, जानें वजह

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Published : Sep 29, 2022, 9:27 PM IST

Updated : Sep 29, 2022, 10:14 PM IST

ghost flights

घोस्ट उड़ानें यानि जिन फ्लाइट्स पर या तो यात्री नहीं होते हैं या फिर उनकी संख्या बहुत कम होती है. अंतरराष्ट्रीय उड़ान की सेवा देने वाली विमान कंपनियों को एक स्लॉट दिया जाता है. यदि वे स्लॉट के दौरान सेवा जारी रखती हैं, तो उनका स्लॉट कैंसिल नहीं होता है. लेकिन किसी भी कारणवश उन्होंने स्लॉट मिस किया, तो यह स्लॉट उनकी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को दे दिया जाता है. इसलिए विमान कंपनियां बिना यात्री के भी उड़ानें जारी रखते हैं. सिविल एविएशन ऑथोरिटी, ब्रिटेन, ने इस संबंध में एक आंकड़ा जारी किया है. flights without passengers. Ghost Flights.

लंदन : सिविल एविएशन ऑथोरिटी के ये आंकड़े आपको चौंका देंगे. ये आंकड़े ब्रिटेन के हैं. इसके मुताबिक 2019 के बाद से 35 हजार से अधिक उड़ानों में 10 फीसदी से भी कम यात्रियों ने सफर किया है. 5000 उड़ानें ऐसी थीं, जब विमान पर एक भी यात्री सवार नहीं थे. यही वजह है कि इन 40 हजार उड़ानों को 'घोस्ट' उड़ान या 'भूत' उड़ान कहा जा रहा है. lights without passengers. Ghost Flights.

उदाहरण के लिए, एक तिमाही में ल्यूटन हवाई अड्डे से पोलैंड के लिए 62 विमानों ने बिना किसी यात्री के ही उड़ानें भरीं. इसी अवधि में अमेरिका से हीथ्रो आने और जाने वाले 662 विमानों पर नाम-मात्र के ही यात्री सवार थे. ये सभी आंकड़े कोविड काल के हैं.

क्लाइमेट एडवोकेट्स ने इस पर चिंता जताई है. दरअसल, फ्लाइट्स अपनी उड़ानों के दौरान बहुद ही अधिक मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन करते हैं. यूके सरकार ने घोस्ट फ्लाइट्स को पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक बताया है. क्योंकि यह किसी भी अन्य उपभोक्ता गतिविधि की तुलना में प्रति घंटे अधिक कार्बन उत्सर्जन पैदा करता है. उन्होंने हवाईअड्डा विकास योजनाओं और जेट ईंधन पर लेवी की आवश्यकता को उठाया है.

घोस्ट फ्लाइट्स एक रहस्य बनी हुई है. इसकी क्या वजह रही, एयरलाइंस कंपनियां इसे बेहतर तरीके से जानती हैं. ये अलग बात है कि कंपनियां इन जानकारियों को सार्वजनिक नहीं करना चाहती हैं. दरअसल, कुछेक लोगों का मानना है कि फ्लाइट टाइम या स्लॉट का आवंटन कोई भी कंपनी नहीं खोना चाहती हैं, इसलिए वे अपने फ्लाइट की सेवा जारी रखते हैं. फिर चाहे यात्री हों या न हों. इस टर्म को 'यूज इन या लूज इट' भी कहा जाता है. वैसे, कोविड महामारी के दौर में इसकी जरूरत नहीं थी. तब नियमों में ढील दी गई थी. ये अलग बात है कि आधिकारिक रूप से कंपनियों ने इसे स्वीकार नहीं किया.

इससे पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के आंकड़े आते रहे हैं, लेकिन देश के स्तर पर ये आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाते हैं. यह संभवतः पहला ऐसा डेटा होगा, जहां एक देश के भी आकंड़े सामने आए हैं. ब्रिटेन की तस्वीर सामने आई है. सीएए बहुत संभव है आगे भी इन आंकड़ों को जारी करेगा.

2019 के बाद से, डेटा दिखाता है कि हर महीने औसतन 130 उड़ानें पूरी तरह से खाली रहीं हैं. इसका कोविड से कोई लेना देना नहीं है. क्योंकि इसी साल यानी 2022 के दूसरे क्वार्टर में भी इतनी ही उड़ानें खाली पाई गईं. यानि यह कहा जा सकता है कि कोविड के प्रभाव से इसका कोई लेना देना नहीं है.

यूरोपीय संघ के एक नियमन जो 1993 से पहले के हैं, उनके लिए यूरोपीय एयरलाइनों को अपने टेक-ऑफ और लैंडिंग स्लॉट को बनाए रखने के लिए खाली या लगभग-खाली उड़ानों को बनाए रखने की आवश्यकता होती है. यह स्लॉट अन्य एयरलाइनों को सौंपे जाने से बचने के लिए किया जाता है जो प्रतिस्पर्धी या नए बाजार में प्रवेश कर सकते हैं. आमतौर पर, इन एयरलाइनों को उन्हें सुरक्षित करने के लिए अपने 80 प्रतिशत तक स्लॉट का उपयोग करने की आवश्यकता होती है. महामारी के कारण, यह सीमा अस्थायी रूप से बुक की गई उड़ानों के 50 प्रतिशत तक कम कर दी गई थी, लेकिन जैसे ही सर्दी मार्च 2022 में समाप्त हुई, इसे बढ़ाकर 64 प्रतिशत कर दिया गया. अनिवार्य रूप से, एयरलाइन ऑपरेटरों को यह साबित करना होगा कि उनके पास पर्याप्त बाजार मांग है जो उनकी होल्डिंग को सही ठहराती है.

Last Updated :Sep 29, 2022, 10:14 PM IST
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