Explainer:भारत की खुदरा मुद्रास्फीति क्यों बढ़ रही है?

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Published : Apr 13, 2022, 6:58 AM IST

Updated : Apr 13, 2022, 7:05 AM IST

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मार्च 2022 के अंत से ईंधन की कीमतों में हुई क्रमिक वृद्धि का मार्च 2022 की मुद्रास्फीति पर प्रभाव कम पड़ा. लेकिन भविष्य में अर्थात चालू वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2022) में संरचनात्मक स्वास्थ्य मुद्रास्फीति, उच्च कमोडिटी की कीमतें और कमजोर मुद्रा मुद्रास्फीति दर ऊंचा रखेगी. विस्तार से जानने के लिए पढ़ें नेशनल ब्यूरो की रिपोर्ट

नई दिल्ली: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा मापी गई भारत की खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में 6.95% थी, जो कि लगातार तीसरा महीना रिज़र्व बैंक द्वारा तय मानक से ऊपर थी. आरबीआई के अनुसार खुदरा मुद्रास्फीति छह प्रतिशत से नीचे रखना अनिवार्य है. मार्च में उपभोक्ता मूल्य आधारित मुद्रास्फीति 17 महीने के उच्चतम स्तर पहुंची. पिछले एक साल से अधिक समय में अधिकांश कमोडिटी समूह रिकॉर्ड स्तर पर थे. उदाहरण के लिए, अनाज और उत्पाद इस साल मार्च में 19 महीने के उच्च स्तर पर थे. इसी तरह दूध और डेयरी उत्पाद 16 महीने के उच्चतम स्तर पर थे यहां तक की सब्जियां भी 16 महीने के उच्चतम स्तर पर थी. कुछ अन्य वस्तुओं के दाम ने भी मार्च में उच्च रिकॉर्ड स्तर को छुआ. उदाहरण के लिए कपड़ों की वस्तुएं पिछले 100 महीनों में अपने उच्चतम स्तर पर थीं. चप्पल व जूते के दाम पिछले 111 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए, घरेलू सामान और सेवाओं ने 102 महीनों के रिकॉर्ड उच्च स्तर को छुआ. जबकि पर्सनल केयर आइटम 13 महीने के उच्च स्तर पर थे और फूड इंडेक्स पिछले 16 महीनों में अपने उच्चतम स्तर पर था.

स्वास्थ्य महंगाई चिंता का विषय: इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के प्रमुख अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा का कहना है कि उनकी एजेंसी इस ओर इशारा कर रही है कि स्वास्थ्य और घरेलू सामान और सेवाओं की मुद्रास्फीति संरचनात्मक हो रही है क्योंकि पिछले 15 महीनों में स्वास्थ्य मुद्रास्फीति 6% से अधिक रही है और घरेलू सामान और सेवाएं पिछले 10 महीनों में मुद्रास्फीति 5% से अधिक थी. संरचनात्मक मुद्रास्फीति का अर्थ है कि मुद्रास्फीति ने अपनी मौसमी प्रकृति के मुकाबले कुछ हद तक स्थायी रही है, जो खाद्य पदार्थों के कीमतों के रूप में देखी जा सकती है, खास कर सब्जियों और फलों के दामों में हम देख सकते हैं कि नई फसलों के आगमन के साथ भाव नॉर्मल हो जाती है.

सिन्हा का कहना है कि इस साल अप्रैल से आवश्यक दवाओं की कीमतों में इजाफा के साथ, स्वास्थ्य मुद्रास्फीति से खुदरा मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ने की संभावना है. चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2022 की अवधि) में खुदरा मुद्रास्फीति चार तिमाहियों के अंतराल के बाद 6% के निशान को क्रॉस कर गई क्योंकि इस अवधि के दौरान यह 6.34% थी. पिछले वित्त वर्ष (अप्रैल-मार्च 2021) में वार्षिक मुद्रास्फीति 5.5% थी. वित्त वर्ष 2020-21 की अवधि के लिए वार्षिक मुद्रास्फीति 6.2% के उच्च स्तर पर रही थी. यह आंकड़े वार्षिक मुद्रास्फीति की पूरी तस्वीर पेश करने के लिए काफी है. मासिक मुद्रास्फीति सितंबर 2021 में घटकर 4.35% हो गई जबकि मई 2021 में यह 6.30% थी. हालांकि अक्टूबर 2021 से यह लगातार बढ़ रही है. इसी साल मार्च में 'कोर मुद्रास्फीति' भी 10 महीने के उच्च स्तर 6.29% पर पहुंच गई. फरवरी में यह 5.96% जबकि मार्च 2021 में 6.0% थी.

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से महंगाई और बढ़ेगी: “मार्च 2022 के अंत से पेट्रोल व डीजल की कीमतों में क्रमिक वृद्धि का मार्च 2022 की मुद्रास्फीति पर सीमित प्रभाव पड़ा. लेकिन भविष्य में यह संरचनात्मक स्वास्थ्य मुद्रास्फीति, उच्च कमोडिटी की कीमतें और कमजोर मुद्रा मुद्रास्फीति दर को कम से कम अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2022 की अवधि) में ऊंचा रखेगी. ईटीवी भारत को भेजे एक बयान में सिन्हा नें कहा है कि उनकी एजेंसी का मानना ​​​​है कि पिछले सप्ताह घोषित मौद्रिक नीति ने पहले तरलता सामान्यीकरण और उसके बाद नीतिगत रुख और नीतिगत दरों के बीजारोपण किया है. हमें वित्त वर्ष 2023 में नीतिगत दरों में 50 प्वाइंट की बढ़ोतरी की उम्मीद है. हालांकि दर वृद्धि का समय डेटा पर निर्भर होगा.

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Last Updated :Apr 13, 2022, 7:05 AM IST
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