ट्रिब्यूनल को परमादेश जारी करने और सरकार को सलाह देने का नहीं है क्षेत्राधिकार : हाईकोर्ट

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Published : Sep 23, 2021, 9:33 PM IST

Rajasthan High Court, Rajasthan Civil Services Appellate Tribunal

राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan HC) ने कहा कि राजस्थान सिविल सर्विसेज अपीलेट ट्रिब्यूनल कानून में प्रदत्त अधिकारों और कर्तव्य से बाहर जाकर आदेश नहीं कर सकती है.

जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश दिनेश मेहता की एकलपीठ ने महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कहा कि राजस्थान सिविल सर्विसेज अपीलेट ट्रिब्यूनल (Rajasthan Civil Services Appellate Tribunal) कानून में प्रदत्त अधिकारों और कर्तव्य से बाहर जाकर आदेश नहीं कर सकती है. साथ ही ट्रिब्यूनल को अपील में प्रस्तुत तथ्यों, विषय विवाद और वर्णित आधारों के अनुरूप ही अपील को निर्णीत करने का अधिकार है.

कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल को परमादेश जारी करने और सरकार को सलाह देने का क्षेत्राधिकार नहीं है. ट्रिब्यूनल की ओर से 26.12.2017 को पारित आदेश को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता डॉ. अजय चौधरी की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने रिट याचिकाए पेश किया. जिसमें बताया कि याची वर्तमान में सीएमएचओ सीकर पद पर पदस्थापित है और ऑल राजस्थान सेवारत चिकित्सक संघ/अरिसदा का अध्यक्ष है.

उसने सीएमएचओ चुरू पद पर रहते हुए उनका स्थानांतरण चुरू से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हिंडौन सिटी जिला करौली कर देने पर याची की ओर से ट्रिब्यूनल के समक्ष उपस्थित होकर 21 दिसंबर 2017 को प्रार्थना पत्र पेश कर ट्रांसफर आदेश पर रोक लगाने की प्रार्थना की लेकिन ट्रिब्यूनल ने अपनी अधिकारिता से बाहर जाकर 26 दिसंबर 2017 को निर्णय देते हुऐ आदेशित किया था.

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याची अपीलार्थी स्थानांतरित जगह पर 29 दिसंबर से पहले पहले ज्वॉइन करें. ज्वॉइन नहीं करने की स्थिति में राज्य सरकार उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करे. राज्य सरकार सेवा नियमों को संशोधित करते हुए यह नियम बनाए कि हड़ताल के दौरान स्वेच्छा से अनुपस्थित होने पर उसे राज्य सेवा से इस्तीफा माने. हड़ताल के दौरान ड्युटी से अनुपस्थित रहने के कारण अस्पतालों में हुई मरीजों की मौत के लिए चिकित्सकों के विरूद्ध सदोष मानव हत्या/गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए.

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हड़ताल के दौरान ड्यूटी से अनुपस्थित रहने के लिए उकसाने हेतू याची के विरूद्ध सदोष मानव हत्या/गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए. याची के ऊपर रुपए 02 लाख का जुर्माना लगाते हुए छह महीने के भीतर सैलरी से वसूल करने के आदेश दिए. साथ ही छह माह के भीतर उक्त आदेश की पालना के लिए राज्य सरकार को निर्देशित किया गया.

याची ने ट्रिब्यूनल के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट न्यायाधीश मेहता ने यह प्रतिपादित किया कि ट्रिब्यूनल को अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए कानून में प्रदत्त कर्तव्य के अनुरूप अपील का निस्तारण नियमानुसार करना चाहिए जो रिकॉर्ड पर उपलब्ध तथ्यों, आधारों और विषय वस्तु पर हो. साथ ही प्रतिपादित किया कि राज्य सरकार को सलाह देने का काम ट्रिब्यूनल का नहीं है और न ही सेवा नियमों में बदलाव के लिए निर्देश दे सकती है. ट्रिब्युनल की ओर से लगाई गई रुपए दो लाख की कॉस्ट सहित ट्रिब्युनल के अन्य निर्देशों को निरस्त करते हुऐ रिट याचिका स्वीकार की गईं.

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