Special : 10 साल की बच्ची की जिद से 40 साल बाद रौशन हुई जोधपुर की गुजराती बस्ती

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Published : Oct 10, 2021, 8:08 PM IST

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जोधपुर की एक बस्ती में 40 साल से बिजली नहीं थी लेकिन इस दीपावली (Diwali 2021) पहली बार ये बस्ती रौशन रहेगी. एक दस साल की बच्ची की जिद ने इस 100 परिवार वाले बस्ती और यहां के लोगों की जिंदगी को गुलजार कर दिया है.

जोधपुर. शहर में कई कच्ची बस्तियां हैं, जो शाम होते ही अंधेरे में डूब जाती है. ऐसी ही एक गुजराती बस्ती है, जहां पिछले 40 साल से लोग अंधेरे में जीने को मजबूर थे. बिजली घर से सटी इस बस्ती में एक स्ट्रीट लाइट भी नहीं है लेकिन एक दिन एक बच्ची यहां से गुजरी तो 100 परिवारों की जिंदगी रौशन कर गई.

बिना रोशनी के जिंदगी की कल्पना करना हमारे लिए मुश्किल है. शाम होते ही हम घरों में लाइट जला लेते हैं. दो मिनट लाइट चली जाए तो लगता है, जिंदगी थम गई. कल्पना कीजिए उस बस्ती का जहां के लोग 40 साल से बिना बिजली के जिंदगी गुजारने पर मजबूर थे. चुनाव आते ही बस्तियों वालों को सुविधाओं के सब्जबाग दिखाकर नेता वोट बंटोरकर चले जाते थे. ऐसे में यहां के लोगों की जिंदगी भी अंधेरे के गर्त में थी. बच्चे रात को पढ़ाई तक नहीं कर पाते. महिलाएं शाम से पहले ही खाना बना लेती थी. पिछले 40 साल से बस्ती में जीवन शाम के बाद मानो थम सा जाता था लेकिन एक शाम उनकी बस्ती से 10 साल की बच्ची गुजरी और बस्ती गुलजार कर गई.

जोधपुर की गुजराती बस्ती में आई रौशनी

बच्ची ने पकड़ी जिद तो घर हुए रौशन

कुछ दिनों पहले शहर की अफजा अली अपने पिता गुलजार अली के साथ रात को यहां से निकल रही थी. अचानक गाड़ी की रोशनी देख बड़ी संख्या में बच्चे सामने आ गए. अफजा ने अपने पिता से पूछा यह कौन है क्यों आए? गुलजार अली ने कहा कि शायद कुछ मिलने की उम्मीद में आए थे. बेटी ने फिर पूछा कि यहां लाइट क्यों नहीं है? बिना लाईट यह कैसे पढ़ते होंगे. पिता ने कुछ जवाब नहीं दिया और घर चले गए लेकिन अफजा के मन में यह बात चलती रही. वह लगातार कहती रही कि पापा वहां लाईट लगवा दो. उन बच्चों की पढ़ाई हो सकेगी.

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अफजा ने यहां तक कहा कि उसके जन्मदिन पर गिफ्ट खरीदने के बजाय यहां लाईट लगवा दो. बेटी की जिद के चलते आखिरकार गुलजार अली को लगा कि अब मानना ही पड़ेगा. उन्होंने बस्ती का सर्वे किया और यहां काम शुरू करवा दिया. सौ से ज्यादा झोपड़ियों के लिए सौलर पैनल उन्होंने लगावाया.

100 घरों के लिए लगाए पैनल और इन्वरर्टर

गुलजार अली कहते हैं कि बेटी ने मोटिवेट किया तो मैंने तय कर लिया कि यहां रोशनी लानी है. जब पहली बार आकर बात की तो यहां के लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया. क्योंकि ज्यादातर लोग यहां आते हैं और बातें कर निकल जाते हैं. लेकिन चार दिन बाद जब काम होने लगा तो सब खुश हो गए. गुलजार अली अभी भी अपनी टीम के साथ लगे हुए हैं. रात को खुद बस्ती में आकर देखते हैं कि कहीं कोई लाईट बंद तो नहीं है. सुबह उसे दुरुस्त करवाते हैं.

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कटौती में भी नहीं जाएगी लाईट

गुलजार अली का कहना है कि घरों में बिजली की कटौती शुरू हो गई है लेकिन इस बस्ती में लाईट नहीं जाएगी. पूरे दिन सूरज की गर्मी से पैनल चार्ज होने के दौरान भी बिजली मिलेगी और रात को चार्ज बैटरी से यहां रोशनी रहेगी.

बस्ती में रहने वाली शंकूबेन कहती है कि वह 18 साल से यहां रह रही है. यहां कोई सुविधा नहीं है. मोबाइल भी दस रुपए देकर चार्ज करवाते थे. अंधेरे में ही शाम का खाना बनता था लेकिन एक बच्ची के कारण हमारी बस्ती में रौशनी आबाद हो गई. अब हर घर में शाम को रोशनी रहती है. वह बताती है कि यूं तो बहुत परेशानियां है लेकिन इस रोशनी के आगे सब हलकी लगती है.

छोटी उम्र में अपने पिता के साथ खिलाने बेचने के लिए यहां आई रमिला आज अपने बच्चों के साथ यहां रहती है. वह कहती है कि रात की रोशनी मिलने से हम धन्य हो गए. बहुत परेशानियां है लेकिन उम्मीद है कि वह भी खत्म होगी. पांचवी में पढने वाले प्रिंस का कहना है कि अब हम रात को भी पढ़ सकते हैं. पहले स्कूल का काम शाम को पूरा करना होता था. देर होती तो मोबाइल की लाइट में होता था. नहीं तो सुबह जल्दी उठकर करते थे. अब आराम से रात को भी पढ़ सकते हैं.

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