बाल विवाह का दंश: राजस्थान में स्कूल जाने की उम्र में मां बन रही बेटियां, सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े

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Published : Oct 1, 2022, 6:09 PM IST

child marriage in Rajasthan

सदियों पुराने बाल विवाह का दंश आज आजादी के 75 साल बाद भी खत्म नहीं हो पा ( child marriage in Rajasthan) आया है. बाल विवाह के रोकथाम को भले ही सख्त कानून बना दिए गए (child marriage prevention law) हो, लेकिन यह कुप्रथा आज भी बदस्तूर जारी है. वहीं, राजस्थान में बाल विवाह के मामलों में इजाफा दर्ज किया गया है.

जयपुर. राजस्थान को वीरों की भूमि के रूप में जाना (Rajasthan the land of heroes) जाता है. बावजूद इसके आज भी इस धरा पर बाल विवाह जैसी कुरीतियां खत्म (Child marriage in Rajasthan) होने का नाम नहीं ले रही हैं. जहां एक ओर हर क्षेत्र में बेटियां कामयाबी की मिसाल गढ़ रही हैं तो वहीं, दूसरी ओर आधुनिकता व शिक्षा के इस दौर में भी मासूम बच्चियों की कम उम्र में ही शादी कर दी जा रही है. ताजा आंकड़ों की मानें तो राजस्थान में हर चौथी लाडो को बाल विवाह के बंधन में बांध दिया जाता (Cases of child marriage increased in Rajasthan) है. साल 2019 से 21 के बीच 25.4% महिलाओं का बाल विवाह किया गया. शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 15.1% व ग्रामीण क्षेत्रों में 28.3% रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय है.

आंकड़ों पर नजर: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (National Family Health Survey) की ओर से एक रिपोर्ट जारी किया गया है. यह रिपोर्ट 2019-21 के मध्य की है. रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 2019-21 के मध्य 25.4% महिलाओं का बाल विवाह हुआ था यानी विवाह के समय उनकी उम्र 18 साल से कम थी. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि शहर की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति अधिक खराब है. शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 15.1% और ग्रामीण क्षेत्रों में 28.3% के करीब रहा है. इन सब के बीच सबसे गंभीर बात यह है कि बाल विवाह के बाद 3.7% लड़कियां 15 से 19 साल की उम्र में ही मां बन जाती है. शहरी क्षेत्र में 1.8% लड़कियां 15 से 19 साल के बीच मां बनती हैं तो ग्रामीण इलाकों में 4.2% लड़कियां 15 से 19 साल में मां बनने को विवश है.

राजस्थान में बाल विवाह का दंश

मुकदमे नहीं होते दर्ज: बच्चों को लेकर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल ने बताया कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के ताजा आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि प्रदेश में आज भी बाल विवाह नही रुक पा रहा है. सर्वे के अनुसार देश में 20 से 24 साल की उम्र की 25.4% महिलाएं ऐसी हैं, जिनका बाल विवाह हुआ है. वहीं, राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार प्रदेश में साल 2019 में 20, साल 2020 में तीन और साल 2021 में 11 मामले बाल विवाह के दर्ज किए गए हैं. जिससे यह साफ होता है कि बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई के प्रति लोग आंखें मूंदकर बैठे हैं. जब तक आम व्यक्ति इसको लेकर जागरूक नहीं होगा, तब तक इसे रोकना मुश्किल है.

विशेष अभियान की तैयारी: कैलाश सत्यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन के प्रतिनिधि राजीव भारद्वाज ने कहा कि अगर हम वास्तव में राजस्थान को बाल विवाह मुक्त बनाना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है. साथ ही इस मसले से जुड़े सभी पक्षों को एक साथ काम करना होगा. अभिभावकों को समझाना होगा कि बाल विवाह के केवल दुष्‍परिणाम ही होते हैं. ऐसा करके ही हम बाल विवाह को समाप्त कर सकते हैं.

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वहीं, लोगों को जागरूक करने के लिए फाउंडेशन की ओर से आगामी 16 अक्टूबर से प्रदेश के 5 हजार गांवों में अभियान चलाए जाने की जानकारी दी गई. साथ ही बताया गया कि प्रत्येक गांव में 10 महिलाओं को भेजा जाएगा, जो घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करेंगी. बाल विवाह से बच्चों के खराब होते जीवन पर नुकड़ नाटकों का आयोजन किया जाएगा.

टॉप पर चित्तौडगढ़: देश में 1600 से अधिक बाल विवाह को रुकवाने वाली सारथी ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ. कृति भारती ने बताया कि बाल विवाह के आंकड़ों को लेकर सरकार भ्रम बना रही है. सरकारी आंकड़ों में भले ही 100 में से 25 बालिकाएं 15 साल की उम्र से पहले ब्याही जा रही है. मगर असल में बाल विवाह के आंकड़े काफी अधिक है.

उन्होंने आगे कहा कि ज्यादातर मामलों की रिपोर्टिंग ही नहीं होती है. सूचना मिलने पर पुलिस प्रशासन मौके पर पहुंचकर महज समझाइश कराकर मामले से दूरी बना लेती है. इसके बाद बाल विवाह संपन्न हो जाता है. लॉकडाउन के दौरान सबसे अधिक बाल विवाह हुए. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में चित्तौडगढ़ बाल विवाह के मामले में (42.6%) टॉप पर है.

इसके बाद 41.8% के साथ भीलवाड़ा दूसरे और 37.8% के साथ झालावाड़ तीसरे स्थान पर है. इसी क्रम में टोंक, सवाईमाधोपुर, बूंदी, भरतपुर, बीकानेर, अलवर, प्रतापगढ़, धौलपुर, जैसलमेर, नागौर, जोधपुर और चूरू है. बात अगर सीएम के जिले जोधपुर की करें तो बाल विवाह के मामले में जोधपुर (28.1%) 14वें पायदान पर है.

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