चित्तौड़गढ़ का बायण माता मंदिर, जहां मां बिरवड़ी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं राजवंश

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Published : Sep 30, 2022, 6:27 AM IST

Bayan Mata Temple in Chittorgarh Fort

चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर स्थित बायण माता का मंदिर (Bayan Mata Temple in Chittorgarh Fort) मेवाड़ के महाराणा की कुलदेवी के मंदिर के रूप (Bayan Mata is the Kuldevi of Mewar) विख्यात है. मेवाड़ के महाराणा बप्पारावल ने इस मंदिर में बायण माता की प्रतिमा स्थापना की थी. ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में यहां माता के दर्शन से श्रद्धालुओं के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं...

चित्तौड़गढ़: चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर मेवाड़ के महाराणा की कुलदेवी के रूप में माता बायण का मंदिर (Bayan Mata is the Kuldevi of Mewar) स्थित है, जहां नवरात्रि के दौरान गोहिल वंशीय क्षत्रियों (Gohil dynasty Kshatriya) के साथ ही देश के अन्य क्षेत्रों से लोग माता की पूजा व दर्शन को आते हैं. मेवाड़ के महाराणा रहे बप्पारावल ने सातवीं शताब्दी में इस मंदिर में बायण माता की प्रतिमा स्थापना की (Maharana Bappa Rawal of Mewar) थी, जो दमन दीव में उनके विवाह के बाद वहां से लाई गई थी.

यहां मंदिर में बायण माता के साथ ही अन्नपूर्णा माता और राघव देवजी की भी दो और (Temple of Annapurna Mata and Raghav Devji) प्रतिमाएं हैं, लेकिन बायण माता की प्रतिमा के खंडित होने के बाद महाराणा सज्जन सिंह ने इस मंदिर में माता की नई प्रतिमा स्थापित की थी. तभी से यहां क्षत्रिय वंश खासकर गोहिल वंशी राजपूत समाज के लोग नवरात्रि के दौरान अपनी कुलदेवी के दर्शन व पूजन को आते हैं.

चित्तौड़गढ़ का बायण माता मंदिर

माना जाता है कि यहां स्थित दोनों ही मंदिर मौर्यकालीन है, जहां बप्पारावल ने छठी शताब्दी में अपनी कुलदेवी के रूप में मां बायण की प्रतिमा स्थापित की थी. इसके बाद से ही मेवाड़ राजवंश की आस्था का यह प्रमुख केंद्र बन गया. करीब 700 साल बाद मंदिर परिसर में ही राणा हमीर ने मां बिरवड़ी की मूर्ति स्थापित (Rana Hamir installed the idol of Mother Birwadi) करवाई थी, जो कि धीरे-धीरे इष्ट देवी के रूप में ख्यात होती गई.

हताश होकर राणा हमीर जा रहे थे द्वारिका धाम तभी... वहीं, दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (Sultan Alauddin Khilji) ने विक्रम संवत 1360 में आक्रमण कर चित्तौड़गढ़ को जीत लिया था और उसका नाम चित्तौड़गढ़ से बदलकर खिजराबाद कर दिया था. इधर, चित्तौड़गढ़ से शासन खत्म होने के बाद गोहिल राजवंश हताश हो गया था. ऐसे में राजसमंद के नाथद्वारा के पास सिसोदा गांव स्थित गोहिल वंश की एक छोटी सी शाखा को देख राणा हमीर की आस जगी.

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माता ने दिया राणा को हमले का आदेश: दरअसल, हताश भाव से राणा हमीर अपने शुभचिंतकों के साथ द्वारिकापुरी जा रहे थे. इस दौरान उनके साथ परिवार के अलावा पूरा दलबल था. रास्ते में गुजरात के कच्छ में रात्रि विश्राम के लिए राणा ने पड़ाव डाला. भताऊ तहसील के खोड गांव में तब चारणों की जागीर थी, जहां चखड़ा जी चारण की पुत्री बिरवड़ी के चमत्कार व सिद्धि प्राप्ति के वृत्तांत को सुनकर राणा उनके दर्शन के लिए पहुंचे. इस दौरान बिरवड़ी माता ने उन्हें 500 अश्व की सहायता देते हुए फिर से चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया.

राणा ने सुल्तान को बनाया 3 महीने तक बंदी: माता के आशीर्वाद से राणा हमीर ने नए उत्साह के साथ मेहता मोजी राम की मदद से दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद तुगलक के सामंत मालदेव सोनगरा को युद्ध में पराजित कर दिया. इसके बाद 1326 में चित्तौड़गढ़ पर एक बार फिर से राणा का कब्जा हो गया. यह सुनकर मोहम्मद तुगलक अपने दल बल के साथ फिर से चित्तौड़गढ़ पहुंचा, जिसे राणा हमीर ने 3 महीने तक बंधक बनाकर रखा था.

वीर विनोद में मिलता है इसका जिक्र: कविराज श्यामदास दधि वाडिया ने दोहों के रूप में अपनी पुस्तक वीर विनोद में इसका जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि राणा हमीर ने मां बिरवड़ी को चित्तौड़गढ़ बुलाया था और पूरे आदर सत्कार के साथ उनको चित्तौड़गढ़ में ही रखा. साथ ही उनकी स्मृति में मंदिर भी बनवाया, जिसे आज हम अन्नपूर्णा मंदिर के रूप में जानते हैं.

देवस्थान विभाग के अधीन है मंदिर: बता दें कि रियासतकाल के खत्म होने के साथ ही यह मंदिर देवस्थान विभाग के अधीन आ गया. विभाग की ओर से यहां पूजा-अर्चना करवाई जाती है और इसके लिए पुजारी भी नियुक्त है. दुर्ग परिसर वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल है, सो यह पुरातत्व विभाग के अधीन है.

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