हरा-भरा राजस्थान : कोटा में पांच सालों में 30 लाख पौधे रोपे गए...लेकिन 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बन पाए पेड़

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Published : Jul 1, 2019, 7:51 PM IST

वेस्टर्न राजस्थान में वन विभाग के पौधारोपण मॉडल के तहत पौधों को बचाने के लिए वाटरिंग का भी प्रावधान होता है लेकिन ईस्टर्न राजस्थान में ऐसा नहीं है. ऐसे में वन विभाग बारिश के सीजन में पौधरोपण करता है और उसके बाद यह पौधे प्राकृतिक बारिश पर ही निर्भर रहते हैं.

कोटा. वन विभाग की ओर से कोटा में पिछले 5 सालों में करीब 30 लाख पौधे रोपित किए हैं लेकिन हालात यह हैं कि उनमें से 15 लाख पौधे भी पेड़ नहीं बन पाए हैं. वन विभाग ने पिछले 5 साल में 8,763 हेक्टेयर में पौधरोपण किया था. जिनके अंदर यह पौधे लगाए गए थे. वन विभाग की तरफ से लगाए गए 30 लाख पौधों में 10 फ़ीसदी छायादार और फलदार थे. वहीं बाकी अन्य स्थानीय प्रजाति के पौधे थे. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्लानिंग टारगेट का 60 फीसदी पौधे ही सरवाइव कर पाते हैं.

लेकिन जब ईटीवी भारत ने प्लानिंग की जगह स्मृति वन और कर्णेश्वर महादेव के आसपास के 1 क्षेत्रों में जाकर जांच की तो सामने आया कि आधे से ज्यादा पौधे भी पेड़ नहीं बन पाए हैं. कुछ पौधे तो ऐसे हैं. जो सूख ढूंढे के रूप में ही खड़े हुए हैं.

प्लांटेशन उजाड़ कर कर लिया अतिक्रमण
वन विभाग की ऐसी भी कई जमीन है. जहां पर अवैध कॉलोनियां बस गई है, इन कॉलोनियों पर अवैध कब्जा करने वाले लोगों ने वन विभाग के प्लांटेशन को भी उखाड़ फेंका है. हालात यह है कि अभी भी लगातार अतिक्रमण हो रहे हैं. यह लोग लगातार वन विभाग के प्लांटेशन को उजाड़ते से जा रहे हैं, लेकिन वन विभाग के अधिकारी उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि वन विभाग के पास इतना फोर्स नहीं है कि वह स्वयं जाकर कार्रवाई कर ले. साथ ही जिन जगह पर यह अतिक्रमण लोगों ने किए हैं, वहां पर हजारों की संख्या में लोग रहते हैं. जो कार्रवाई का विरोध करते हुए हंगामा कर देते हैं.

जानवर कर जाते हैं नुकसान
वन विभाग ने पिछले कुछ सालों में जिन जगह पर प्लांटेशन किए हैं. वहां पर पौधे पनपने लगे हैं और वह दो 2 फीट के हो गए हैं, लेकिन सड़क पर घूमने वाले आवारा जानवर पेड़ बनने की क्रम में आगे बढ़ रहे पौधों को बर्बाद कर रहे हैं. वहीं स्थानीय नागरिक भी अपनी जानवरों को वन विभाग के क्षेत्र में छोड़ देते हैं. जिसका नुकसान इन पौधों को उठाना पड़ता है. जानवर एक साथ झुंड में आते हैं और पूरे पौधों को नुकसान पहुंचा कर चले जाते हैं. जब वन विभाग के अधिकारी इन पर सख्ती बरतते हैं तो लड़ाई झगड़े भी शुरू हो जाते हैं.

कोटा में पांच सालों में 30 लाख पौधे रोपे गए...लेकिन 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बन पाए पेड़

प्लांटेशन के मॉडल में नहीं वाटरिंग का प्रावधान
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए प्लांटेशन मॉडल भी जिम्मेदार है. क्योंकि वेस्टर्न राजस्थान में जहां प्लांटेशन मॉडल के साथ वाटरिंग का भी प्रावधान रहता है, लेकिन ईस्टर्न राजस्थान जहां पर कोटा आता है. वहां पर केवल प्लांटेशन ही वन विभाग को करना होता है. उनके मॉडल में वाटरिंग का प्रावधान नहीं होता है. ऐसे में यह पौधे प्राकृतिक बारिश पर ही निर्भर करते हैं. प्लांटेशन के कुछ दिनों बाद ही अच्छी बारिश नहीं हो तो भी पौधों को नुकसान हो जाता है. वहीं तेज बारिश होने पर भी यह पौधे वह जाते हैं.

Intro:वेस्टर्न राजस्थान में वन विभाग के पौधारोपण मॉडल के तहत पौधों को बचाने के लिए वाटरिंग का भी प्रावधान होता है, लेकिन ईस्टर्न राजस्थान में ऐसा नहीं है. ऐसे में वन विभाग बारिश के सीजन में पौधरोपण करता है और उसके बाद यह पौधे प्राकृतिक बारिश पर ही निर्भर रहते हैं.


Body:कोटा.
वन विभाग की ओर से कोटा में पिछले 5 सालों में करीब 30 लाख पौधे रोपित किए हैं, लेकिन हालात यह हैं कि उनमें से 15 लाख पौधे भी पेड़ नहीं बन पाए हैं. वन विभाग ने पिछले 5 साल में 8763 हेक्टेयर में पौधरोपण किया था, जिनके अंदर यह पौधे लगाए गए थे. वन विभाग की तरफ से लगाए गए 30 लाख पौधों में 10 फ़ीसदी छायादार और फलदार थे. वही बाकी अन्य स्थानीय प्रजाति के पौधे थे. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्लानिंग टारगेट का 60 फीसदी पौधे ही सरवाइव कर पाते हैं, लेकिन जब ईटीवी भारत ने प्लानिंग की जगह स्मृति वन और कर्णेश्वर महादेव के आसपास के 1 क्षेत्रों में जाकर जांच की तो सामने आया कि आधे से ज्यादा पौधे भी पेड़ नहीं बन पाए हैं. कुछ पौधे तो ऐसे हैं. जो सुख ढूंढे के रूप में ही खड़े हुए हैं.

प्लांटेशन उजाड़ कर कर लिया अतिक्रमण
वन विभाग की ऐसी भी कई जमीन है. जहां पर अवैध कॉलोनियां बस गई है, इन कॉलोनियों पर अवैध कब्जा करने वाले लोगों ने वन विभाग के प्लांटेशन को भी उखाड़ फेंका है. हालात यह है कि अभी भी लगातार अतिक्रमण हो रहे हैं. यह लोग लगातार वन विभाग के प्लांटेशन को उजाड़ते से जा रहे हैं, लेकिन वन विभाग के अधिकारी उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि वन विभाग के पास इतना फोर्स नहीं है कि वह स्वयं जाकर कार्रवाई कर ले. साथ ही जिन जगह पर यह अतिक्रमण लोगों ने किए हैं, वहां पर हजारों की संख्या में लोग रहते हैं. जो कार्रवाई का विरोध करते हुए हंगामा कर देते हैं.

जानवर कर जाते हैं नुकसान
वन विभाग ने पिछले कुछ सालों में जिन जगह पर प्लांटेशन किए हैं. वहां पर पौधे पनपने लगे हैं और वह दो 2 फीट के हो गए हैं, लेकिन सड़क पर घूमने वाले आवारा जानवर पेड़ बनने की क्रम में आगे बढ़ रहे पौधों को बर्बाद कर रहे हैं. वहीं स्थानीय नागरिक भी अपनी जानवरों को वन विभाग के क्षेत्र में छोड़ देते हैं. जिसका नुकसान इन पौधों को उठाना पड़ता है. जानवर एक साथ झुंड में आते हैं और पूरे पौधों को नुकसान पहुंचा कर चले जाते हैं. जब वन विभाग के अधिकारी इन पर सख्ती बरतते हैं तो लड़ाई झगड़े भी शुरू हो जाते हैं.


Conclusion:प्लांटेशन के मॉडल में नहीं वाटरिंग का प्रावधान
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए प्लांटेशन मॉडल भी जिम्मेदार है. क्योंकि वेस्टर्न राजस्थान में जहां प्लांटेशन मॉडल के साथ वाटरिंग का भी प्रावधान रहता है, लेकिन स्टन राजस्थान जहां पर कोटा आता है. वहां पर केवल प्लांटेशन ही वन विभाग को करना होता है. उनके मॉडल में वाटरिंग का प्रावधान नहीं होता है. ऐसे में यह पौधे प्राकृतिक बारिश पर ही निर्भर करते हैं. प्लांटेशन के कुछ दिनों बाद ही अच्छी बारिश नहीं हो तो भी पौधों को नुकसान हो जाता है. वहीं तेज बारिश होने पर भी यह पौधे वह जाते हैं.



बाइट-- तरुण मेहरा, एसीएफ, कोटा
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