LINAC In Kota: धारीवाल की 'न' फिर बिरला की 'हां' से बन गई बात, CSR से फंडिग फाइनल...MBS अस्पताल में कैंसर मरीजों का संभव होगा इलाज
Updated on: Aug 3, 2022, 10:58 AM IST

LINAC In Kota: धारीवाल की 'न' फिर बिरला की 'हां' से बन गई बात, CSR से फंडिग फाइनल...MBS अस्पताल में कैंसर मरीजों का संभव होगा इलाज
Updated on: Aug 3, 2022, 10:58 AM IST
हाड़ौती संभाग के कैंसर मरीजों को लीनियर एक्सीलेटर मशीन का इंतजार 13 सालों से था (LINAC In Kota). ऐसा नहीं है कि प्रयास नहीं किए जा रहे थे. चिकित्सक, अस्पताल, जनप्रतिनिधि सभी चाहते थे कि सहूलियत मिले लेकिन बजट आड़े आ गया. इस बीच प्रदेश के यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने मशीन लगवाने से इनकार किया (Minister Dhariwal NO) तो लोकसभा स्पीकर और सांसद ओम बिरला ने पॉजिटिव पहल की और बात बन गई. क्या है पूरा मामला? और कैसे बदला रुका हुआ फैसला! आइए जानते हैं...
कोटा. साल 2021 में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने स्मार्ट सिटी से लीनियर एक्सीलेटर के लिए बजट जारी करवाने की घोषणा की थी. मशीन के लिए करीब 25 करोड़ रुपए चाहिए थे लेकिन घोषणा अट्ठारह करोड़ की हुई (LINAC In Kota). जरूरत और घोषित बजट के बीच अंतर 13 करोड़ का था. इस परेशानी का हल मंत्री जी ने बजट रोक कर निकाला. इस सबके बाद अब लोकसभा स्पीकर ओम बिरला तक बात पहुंची और वो एक्शन में आए. अपने कद और पद का सकारात्मक इस्तेमाल किया, मध्यस्थता की और बात बन गई! अब टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई की कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) के तहत मशीन स्थापित होगी. 13 करोड़ रुपए कोटा जिले की डिस्ट्रिक्ट मिनिरल फाउंडेशन ट्रस्ट के जरिए दिए जाएंगे.
बिरला -सचिव बैठक: डीएमएफटी फंड से 13 करोड़ रुपए जारी किए गए थे. इसके बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधन राज्य सरकार से बजट के लिए प्रयासरत थी. इस बीच लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने दिल्ली में इस संबंध में एक बैठक ली. स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव के साथ हुई बैठक में कोटा में लीनियर एक्सीलेटर मशीन लगाने को लेकर चर्चा हुई. जिसमें उन्होंने स्वीकृति दे दी. इसके तहत सीएसआर फंड से टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई इसमें मदद करेगा. मेडिकल कॉलेज कोटा के प्राचार्य डॉ विजय सरदाना का कहना है कि टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई की टीम 10 अगस्त को कोटा आएगी और वो अस्पताल विजिट करेगी.
स्मार्ट सिटी ने 'अटकाया था काम': कोटा में हजारों करोड़ के विकास कार्य स्मार्ट सिटी के तहत चल रहे हैं. इसके अलावा राज्य सरकार नगर विकास न्यास के तहत बिक गई करोड़ों के काम करवा रही है. जिसमें मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों का भी सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है. बीते 13 सालों से लीनियर एक्सीलेटर मशीन लगाने के लिए समीकरण बनते और बिगड़ते रहे लेकिन मशीन की लागत करोड़ों में होने के चलते यह नहीं लग पाई. 2021 में ही स्मार्ट सिटी के तहत इस मशीन को लगाने के लिए 18 करोड़ रुपए की फंडिंग फाइनल थी. बजट तो जारी हो गया लेकिन जरूरत इससे ज्यादा की थी. कुल 25 करोड़ रुपए चाहिए थे. आवश्यकता और देय राशि के बीच गैप को पाटने की मनाही (यानी शेष बजट देने से इनकार) से थोड़ा ब्रेक लगा. बची हुई राशि एकत्रित कराने की जिम्मेदारी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन के कांधों पर आई. लेकिन बचे हुए 7 करोड़ रुपए का इंतजाम करने में उसने भी असमर्थता जता दी. जिसके बाद स्मार्ट सिटी ने घोषित राशि को भी Disburse करने से इनकार दिया और इस तरह ये पूरी स्कीम ठंडे बस्ते में चली गई.
फर्म छोड़ गई थी अधूरा काम: साल 2008 में एमबीएस अस्पताल में पीपीपी मोड पर मशीन लगाने के लिए टेंडर जारी किया था. वर्क आर्डर जारी हो गए और फर्म ने स्ट्रक्चर भी तैयार करवाना शुरू किया, लेकिन बाद में काम छोड़ दिया. फर्म ने करीब 80 लाख रुपए इंवेस्ट किए थे. बाद में सिक्योरिटी की राशि भी एमबीएस प्रबंधन ने जप्त कर ली और ये मशीन नहीं लग पाई. इसके बाद पीपीपी मोड पर आगे के काम को बढ़ाने के लिए 2 से 3 बार टेंडर किए गए, लेकिन रुका हुआ काम आगे नहीं बढ़ पाया यानी मशीन नहीं लग पाई.
इसलिए कम पड़ा था बजट: लीनियर एक्सीलेटर मशीन की कीमत करीब 16 करोड़ रुपए है. इसके अलावा उसके साथ लगने वाली अन्य मशीनें करीब 9 करोड़ रुपए की हैं. ऐसे में बिल्डिंग और अन्य सुविधाओं के लिए भी खर्च होगा. मशीनें विदेश से इंपोर्ट की जाएगी। ऐसे में लागत कस्टम, जीएसटी, इंपोर्ट और एक्साइज ड्यूटी लगेगी. इसी के चलते मशीन की लागत बढ़ गई है.
क्या है खासियत LINAC की?: लीनियर एक्सीलेटर मशीन के जरिए कैंसर के मरीजों के प्रभावित एरिया पर रेडियो तरंगों से सिकाई की जाती है (LINAC In Kota). मेडिकल कॉलेज के कैंसर रोग विभागाध्यक्ष डॉ. आरके तंवर के अनुसार इस मशीन में सीटी स्कैन की गाइडेंस से रेडिएशन दिया जाता है. अमूमन जब सिकाई में रेडियो तरंगे कैंसर प्रभावित क्षेत्र में छोड़ी जाती है, तो मरीज की त्वचा जल जाती है. नई तकनीक की मदद से उन किरणों पर अधिक फोकस किया जा सकेगा और मरीज की त्वचा भी नहीं जलेगी. इसमें मरीजों के दूसरे टिश्यू खराब नहीं होते, केवल कैंसर के सेल्स पर रेडिएशन होता है. जबकि एमबीएस अस्पताल के कैंसर विभाग में वर्षों पुराने मैथड कोबाल्ट थैरेपी से कैंसर मरीजों को रेडिएशन दिया जा रहा है.
