Rajasthan High Court : फेसबुक पोस्ट लिखने पर अधिवक्ता के खिलाफ जज की अवमानना याचिका खारिज

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Published : Jan 12, 2022, 9:50 PM IST

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एक आपराधिक मामले में लगातार तारीख पर तारीख मिलने पर अधिवक्ता गोवर्धन सिंह की ओर से फेसबुक पर लिखी गई पोस्ट को आपत्तिजनक बताते हुए न्यायिक अधिकारी की ओर से दर्ज करवाए गए अवमानना के मामले को राजस्थान हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.

जोधपुर. एक आपराधिक मामले में लगातार तारीख पर तारीख मिलने पर अधिवक्ता गोवर्धन सिंह की ओर से फेसबुक पर लिखी गई पोस्ट को आपत्तिजनक बताते हुए न्यायिक अधिकारी की ओर से दर्ज करवाए गए अवमानना के मामले को राजस्थान हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी और न्यायाधीश रेखा बोराणा की खण्डपीठ ने कहा कि इस मामले में लिखी गई पोस्ट में ऐसा कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है, जो कि अदालत की अवमानना के दायरे में आता हो. इसलिए प्रतिवादी अधिवक्ता के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता.

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मामले के अनुसार पाली जिले के सोजत कस्बे में परिवादी सत्यप्रकाश माली की ओर से अधिवक्ता गोवर्धन सिंह ने एक आपराधिक मामले में परिवाद पेश किया था. जिस पर कोर्ट ने लगभग 25 बार तारीखें दी, जिस पर अधिवक्ता ने फेसबुक पर पोस्ट लिखी थी. जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि न्याय मांगने पर उनको केवल तारीखें मिली. उनकी पोस्ट पर कई अपरिचित लोगों ने कमेंट्स भी किए. जिस पर तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोजत गरिमा सौदा ने अधिवक्ता गोवर्धन सिंह व अन्य कमेंट्स करने वाले लोगों के खिलाफ न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की.

इस पर पूर्व में सुनवाई के दौरान खण्डपीठ ने नोटिस जारी किए थे. मुख्य न्यायाधीश कुरैशी की खण्डपीठ में इस पर सुनवाई हुई तो प्रतिवादी के रूप में अधिवक्ता गोवर्धन सिंह ने स्वयं अपना पक्ष रखते हुए न्यायालय को मामले की पृष्ठभूमि से अवगत करवाया. उन्होंने कहा कि कोर्ट के सामने केवल इतना ही प्रश्न था कि परिवादी की शिकायत को पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए भेजना है अथवा नहीं. इसमें 25 बार स्थगन दिया गया. बाद में मामले की सुनवाई अन्य अदालत में स्थानांतरित की गई तब 26वीं तारीख पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए.

सुनवाई के बाद खण्डपीठ ने कहा कि हमारी राय में प्रतिवादी नंबर 1 की कार्रवाई किसी भी तरह से अदालत की अवमानना नहीं है. आपराधिक अवमानना को न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) में परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है किसी भी मामले का प्रकाशन या कोई अन्य कार्य करना, जो किसी को भी बदनाम करता है या कम करता है. किसी भी न्यायालय का अधिकार या पूर्वाग्रह या किसी न्यायिक कार्यवाही के नियत समय में हस्तक्षेप या हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति या किसी अन्य तरीके से न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करता है या बाधा डालता है.

प्रतिवादी की टिप्पणी यह कहने की प्रकृति में थी कि एक विशेष कार्यवाही न्यायालय के समक्ष अनुचित रूप से लंबे समय तक चली थी. यह अपने आप में अलगाव में अवमानना के रूप में नहीं देखा जा सकता है. इस पोस्ट के जवाब में कई अन्य लोगों की टिप्पणियों का संदर्भ जो अत्यधिक आपत्तिजनक हो सकता है, वर्तमान प्रतिवादी की कार्रवाई को अवमानना नहीं करेगा, जब तक कि एक विशिष्ट डिजाइन या योजना अस्तित्व में नहीं दिखाई जाती है. इन परिस्थितियों में हम इन अवमानना कार्यवाही को आगे बढ़ाने का कोई कारण नहीं देखते हैं.

राजस्थान हाईकोर्ट में ई लाईब्रेरी का उद्घाटन

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ई लाईब्रेरी का उद्घाटन

राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर मुख्यपीठ में ई लाईब्रेरी एवं एआईआर कैफे का उद्घाटन बुधवार को मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी व प्रशासनिक न्यायाधीश संदीप मेहता ने किया. राजस्थान हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन जोधपुर, राजस्थान हाईकोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन जोधपुर और एआईआर के संयुक्त तत्वाधान में उद्घाटन कार्यक्रम आयोजित किया गया. हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं के लिए ई लाईब्रेरी तैयार की गई जिसमें पिछले 122 साल तक के विभिन्न अदालतों के प्रमुख फैसले उपलब्ध हो सकेंगे.

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