जयपुर. राजस्थान हाइकोर्ट ने वर्ष 2018 में झालावाड़ जिले में सात साल की बच्ची से दुष्कर्म के बाद (commented on the functioning of the police) उसकी हत्या करने के मामले में निर्दोष युवक को फंसाने को लेकर पुलिस की कार्यप्रणाली पर मौखिक टिप्पणी की है. अदालत ने पुलिस अधीक्षक को कहा कि पहले केस में सिर्फ नौ दिन में अनुसंधान पूरा कर आरोप पत्र पेश कर दिया गया, लेकिन अब अदालती आदेश के बावजूद चार माह में भी जांच पूरी नहीं हो रही है. साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई 31 अक्टूबर को तय की है. जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस अनूप ढंड ने यह आदेश दिए.
मामले की सुनवाई के दौरान अदालती आदेश की पालना में झालावाड़ एसपी अदालत में पेश हुई. उन्होंने अदालत को बताया कि प्रकरण में पूछताछ जारी है. वहीं करीब बीस संदिग्ध लोगों के डीएनए लेकर एफएसएल में भिजवाए गए हैं. ऐसे में अनुसंधान पूरा करने के लिए समय दिया जाए. एसपी के जवाब से संतुष्ट नहीं होकर अदालत ने कहा कि चार माह में अब तक जांच पूरी नहीं हुई, जबकि पहले नौ दिन में ही अनुसंधान पूरा कर आरोप पत्र भी पेश किया गया था.
इस पर एसपी ने कहा कि उन्होंने हाल ही में पदभार संभाला है. अधिवक्ता नितिन जैन ने बताया कि अदालत ने 11 मई 2022 को कहा था कि हम बड़े ही भारी हृदय और न्याय की उम्मीद के साथ ऐसे अपराध के आरोपी को आजीवन कारावास में भेज रहे हैं, जो उसने किया ही नहीं है. इसके साथ ही अदालत ने झालावाड़ एसपी को आदेश दिए थे कि वह केस का दो माह में पुन: अनुसंधान करे और जिन अफसरों ने केस में असक्षम युवा को फंसाया है, उन अफसरों पर कार्रवाई भी करें.
हाईकोर्ट के सामने आई रिपोर्ट से पता चला था कि दो अन्य लोगों का डीएनए पीड़िता के कपड़ों पर मिला था. इसके बावजूद करीब पांच महीने बाद भी ना तो अग्रिम अनुसंधान किया है और ना ही दोषियों पर कार्रवाई की गई है. पुलिस की कार्यप्रणाली के कारण एक निर्दोष व्यक्ति जेल में बंद है. इस पर अदालत ने झालावाड़ एसपी को 19 सितंबर को हाजिर होकर स्पष्टीकरण देने को कहा था. गौरतलब है कि झालावाड़ के कामखेड़ा थाना इलाके में 28 जुलाई 2018 को सात साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या हो गई थी. पुलिस ने (rape and murder of a seven year old girl) मामले में कोमल लोढ़ा को गिरफ्तार करते हुए घटना के 9 दिन में ही में आरोप पत्र पेश कर दिया.
वहीं पॉक्सो कोर्ट ने भी उसे 23 फरवरी 2019 को फांसी की सजा सुना दी. मामला हाईकोर्ट में आने पर पूर्व में अदालत ने फांसी को आजीवन कारावास में बदला था. इस पर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण हाईकोर्ट को रिमांड करते हुए फांसी या आजीवन कारावास के संबंध में फैसला लेने का निर्देश दिया था. इस पर हाईकोर्ट ने कोमल को बेगुनाह मानते हुए उसे आजीवन कारावास में भेजते हुए झालावाड़ एसपी को केस रीओपन करने और दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने को कहा था.