जयपुर. चुनावों में सरकार बनाने और गिराने में राज्य कर्मचारियों की अहम भूमिका रहती है. यदि कर्मचारी खुश हैं तो सरकार रिपीट होने के और नाराजगी पर सरकार की विदाई की संभावना रहती है. यही कारण है गहलोत सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) लागू करने की घोषणा कर लाखों कर्मचारियों को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है. लेकिन तीनों डिस्कॉम कर्मचारियों की 22 साल पुरानी मांग अब तक अधूरी है.
हम बात कर रहे हैं 'इंटर डिस्कॉम ट्रांसफर पॉलिसी' की जिसकी मांग वर्ष 2000 से लगातार डिस्कॉम कर्मचारी कर रहे हैं. बकायदा इसको लेकर कर्मचारियों ने सड़क पर उतरकर प्रदर्शन भी किया, तो वहीं मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री से मुलाकात कर इसके समाधान की गुजारिश भी (Inter Discom transfer demand) की. लेकिन मांग है जो अब तक यथावत है और सरकार फिलहाल इस पर मौन है. आलम यह है कि कर्मचारी इस मांग को लेकर जयपुर में कई बड़े विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं, लेकिन हर बार आश्वासन के अलावा इन्हें कुछ भी नहीं मिल पाया.
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पहले राजस्थान सर्विस इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड था फिर बनी अलग-अलग कंपनियां: राजस्थान में साल 2000 से पहले तक क्षेत्र में एक ही बोर्ड हुआ करता था जिसका नाम था राजस्थान सर्विस इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड या संक्षेप में कहें आरएसईबी. लेकिन साल 2000 में सरकार ने इसका विघटन कर पांच अलग-अलग कंपनियां बना दीं. जिनमें तीन कंपनी विद्युत वितरण के क्षेत्र में जयपुर, अजमेर और जोधपुर डिस्कॉम बनाई गई.
वहीं एक कंपनी बिजली उत्पादन निगम और एक अन्य कंपनी विद्युत प्रसारण निगम के रूप में बनाई गई. आरएसईबी के विघटन और नई कंपनियों के गठन के दौरान सरकार ने इन कंपनियों में जो कर्मचारी समायोजित गए, उनके तबादलों को लेकर कोई नियम नहीं बनाए. ऐसे में जो कर्मचारी जिस डिस्कॉम के अंतर्गत कार्यरत हैं, वो अन्य डिस्कॉम के क्षेत्र में अपना तबादला नहीं करवा सकता. इससे डिस्कॉम के अलग-अलग कंपनियों में काम करने वाले हजारों कर्मचारी प्रभावित हैं.
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मौजूदा सरकार में भी समाधान नहीं: राजस्थान में पहले 'राजस्थान सर्विस इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड' ही काम करता था जिसके अधीन पूरे राजस्थान में बिजली वितरण, उत्पादन और प्रसारण की जिम्मेदारी थी. लेकिन वर्ष 2000 में इसका विघटन हुआ और अलग-अलग कंपनियां बना दी गईं. तब प्रदेश में तत्कालीन सरकार भी अशोक गहलोत की थी और अब राजस्थान में अशोक गहलोत की तीसरी सरकार है. लेकिन कर्मचारियों की 22 साल पुरानी इस मांग पर आश्वासनों के अलावा और कुछ नहीं मिल पाया. कर्मचारी भी इस बात से नाराज हैं कि जो गलती तत्कालिक पहली गहलोत सरकार के कार्यकाल में हुई थी उसमें सुधार मौजूदा गहलोत सरकार आखिर क्यों नहीं करना चाहती.
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कर्मचारियों को चुनाव का इंतजार: वही ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी बार-बार कर्मचारियों की मांग पर उचित समाधान करवाने का आश्वासन देते नजर आते हैं. यहां तक कि जब इंटर डिस्कॉम ट्रांसफर नीति का विरोध चल रहा था, तब राज्यसभा सांसद डॉ किरोड़ी लाल मीणा ने भी जयपुर में इन कर्मचारियों के प्रदर्शन को सपोर्ट किया था. इसके बाद उच्च स्तरीय कमेटी का भी गठन हुआ जिस की बैठक में भी हुई.
लेकिन जो तथ्यात्मक जानकारी दी गई उसमें यही हवाला दिया गया कि जब इन कंपनियों का गठन हुआ था, उस दौरान कर्मचारियों के इंटर कंपनी तबादलों को लेकर कोई प्रावधान नहीं किया गया. इसलिए फिलहाल आगे कोई कार्रवाई संभव नहीं है. इंटर डिस्कॉम कर्मचारी संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष रामकेश मीणा के अनुसार जो गलती साल 2000 में तत्कालिक गहलोत सरकार के समय हुई, उसमें सुधार के लिए ही बार-बार विरोध प्रदर्शन और आग्रह किया जा रहा है. लेकिन सरकार केवल आश्वासन ही दे रही है. ऐसे में अब कर्मचारियों को चुनावी वर्ष का इंतजार है. जब वोट की ताकत से अपना काम करवाएंगे.
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ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी का यह है तर्क: उधर ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि कर्मचारियों की मांगों पर डिस्कॉम प्रबंधन विभाग के स्तर पर मंथन चल रहा (Discom management on inter Discom transfer) है. उनके अनुसार सरकार की मंशा कर्मचारियों को राहत देने की है. हालांकि राहत कब तक मिलेगी, इसको लेकर कोई खुलासा ना तो डिस्कॉम प्रबंधन कर रहा है और ना ही सरकार के प्रतिनिधि.