देशी इंजीनियर : पंक्चर जोड़ने वाले 6 दोस्तों ने तैयार किया हवा से चलने वाला इंजन...दुनिया का ऐसा पहला इंजन होने का दावा

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Published : Nov 24, 2021, 10:10 PM IST

Updated : Nov 27, 2021, 10:00 PM IST

air powered engine

कम पढ़े लिखे 6 दोस्तों ने मिलकर 14 साल की अथक मेहनत के बाद ऐसा कारनाम कर दिखाया है, जो दुनिया में बेमिसाल है. इन दोस्तों ने हवा से संचालित होने वाला इंजन तैयार कर दिया है. इसका अंतरराष्ट्रीय पेटेंट भी अंतिम चरण में है.

भरतपुर. आगरा हाईवे पर पंक्चर की दुकान करने वाले त्रिलोकी को एक दिन पंक्चर जोड़ते -जोड़ते अचानक से हवा की ताकत का एहसास हुआ और 6 दोस्तों की मदद से 14 साल के अथक प्रयास के बाद त्रिलोकी ने हवा से चलने वाला इंजन तैयार कर दिया.

इस इंजन को संचालित करने के लिए न तो डीजल की जरूरत पड़ती है और न ही किसी अन्य ईंधन की. इस इंजन का ईंधन मुफ्त की हवा है. हवा से इंजन तैयार करने वाले देसी इंजीनियर का अब दावा है कि यह दुनिया का पहला और एकमात्र ऐसा इंजन है जो हवा से संचालित होता है. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट की प्रक्रिया भी अंतिम चरण में है. वहीं देसी इंजीनियर त्रिलोकी का दावा है कि यदि उनकी इस तकनीक को सरकार की मदद मिले तो भविष्य में मोटरसाइकिल, कार, बस, ट्रक जैसे भारी भरकम वाहन भी हवा से संचालित किए जा सकते हैं.

6 दोस्तों ने मिलकर बना दिया हवा का इंजन

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी क्षेत्र निवासी त्रिलोकी, रामप्रकाश, चंद्रभान, संतोष चाहर, रामकुमार, रामधनी और भरतपुर जिले के अर्जुन सिंह जिगरी दोस्त हैं. त्रिलोकी भरतपुर आगरा हाईवे पर वर्ष 2005 में पंचर जोड़ने का काम करता था. इसी दौरान एक दिन हवा भरने वाले कंप्रेसर का वॉल्व कट गया और इंजन हवा के दबाव से ही दौड़ने लगा. तब एहसास हुआ कि हवा में काफी ताकत होती है. इससे इंजन भी चलाया जा सकता है. उसके बाद वर्ष 2007 से त्रिलोकी ने हवा से इंजन संचालित करने के लिए काम शुरू कर दिया. इसके बाद एक के बाद एक सभी दोस्त त्रिलोकी की इस अनूठी देसी रिसर्च में जुड़ते चले गए.

14 साल में सैकड़ों बार असफल हुए

त्रिलोकी के सहयोगी राम प्रकाश ने बताया कि हवा से संचालित होने वाला इंजन तैयार करने में 14 साल का वक्त लगा. इस दौरान सैकड़ों बार असफलता का भी मुंह देखना पड़ा. सहयोगी अर्जुन सिंह ने बताया कि त्रिलोकी के नेतृत्व में सभी साथियों ने पूरे दिल से काम किया. जिस किसी को जो कोई कार्य करने की जरूरत पड़ी वही कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ा रहा. सहयोगी रामधनी ने बताया कि उन्होंने इस देसी आविष्कार को पूरा करने के लिए त्रिलोकी के नेतृत्व में इंजन के अलग-अलग प्रकार के कलपुर्जे तैयार करना, वेल्डिंग करना, उनकी सेटिंग करना आदि कार्य सैकड़ों बार किए. कई बार तो दिन रात इंजन के काम में जुटे रहते.

हवा से चलने वाला इंजन
हवा से चलने वाला इंजन

जुनून के लिए बेच दी जमीन

इस काम को पूरा करने के लिए देसी इंजीनियर त्रिलोकी का जुनून इस कदर था कि उन्होंने अपना एक भूखंड और ढाई बीघा कृषि भूमि भी भेज दी. वहीं अन्य छह दोस्तों ने भी अपनी गाढ़ी कमाई के लाखों रुपए खर्च कर दिए और आखिर में 14 साल के अथक प्रयास के बाद सभी की मेहनत रंग लाई.

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दुनिया का पहला इंजन होने का दावा

सहयोगी संतोष चाहर ने बताया कि अपने प्रकार के इस अनूठे इंजन को तैयार करने के बाद 13 सितंबर 2019 को पेटेंट के लिए आवेदन किया, जिसके बाद 27 मार्च 2020 को पब्लिकेशन हुआ. 26 सितंबर 2020 को दावे की अवधि समाप्त हो गई. इस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे इस अनूठे आविष्कार को कहीं से कोई दावा प्राप्त नहीं हुआ. ऐसे में अब हमारी यह खोज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट के आखिरी चरण में है.

हवा से चलने वाला इंजन
अब होगा पेटेंट

20 गुना अधिक ताकत से संचालित हो सकता है

त्रिलोकी ने बताया कि यह इंजन फिलहाल कम ताकत से संचालित हो रहा है. यदि इसको सही संसाधनों के साथ डिज़ाइन किया जाएगा तो यह इंजन 20 गुना अधिक ताकत से संचालित होगा. इतनी ताकत पर इस तकनीक से मोटरसाइकिल, कार, बस,ट्रक जैसे भारी भरकम वाहन भी संचालित किए जा सकेंगे.

हवा से चलने वाला इंजन
दोस्तों का आविष्कार

ठुकरा दिया साढ़े 3 लाख प्रति माह का ऑफर

त्रिलोकी ने बताया कि जिस समय हवा से संचालित होने वाले इंजन पर काम किया जा रहा था उसी दौरान देश की एक मानी हुई कंपनी ने उन्हें नौकरी का ऑफर दिया था. उन्होंने इस आविष्कार पर कंपनी के साथ मिलकर काम करने के लिए साढ़े 3 लाख रुपए प्रतिमाह वेतन, गाड़ी और आवास का ऑफर दिया था. लेकिन त्रिलोकी और उनके दोस्तों की जिद थी कि यह इंजन किसी कंपनी में नहीं बल्कि हाईवे के किनारे एक झोपड़ी के नीचे ही शुरू किया जाएगा.

Last Updated :Nov 27, 2021, 10:00 PM IST
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