Independence Day: ये कैसा आजादी का अमृत महोत्सव, स्वतंत्रता सेनानी की निधि से बने हिन्दी भवन पर लोगों का डेरा, कैसे होगा सपना पूरा

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Published : Aug 15, 2022, 9:20 AM IST

Azadi ka Amrit Mahotsav

आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. लेकिन आजादी की धरोहर और देश प्रेम की निशानियों के लिए प्रशासन की अनदेखी उसकी मंशा पर सवाल उठाती है. मध्यप्रदेश के विदिशा में 99 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी रघुवीर चरण शर्मा ने अपनी सम्मान निधि में मिले लाखों रुपए देश सेवा में खर्च कर डाले. लेकिन प्रशासन सेनानी के जीते जी भी उनके सपनों का मान तक नहीं रख पा रहा है.Azadi ka Amrit Mahotsav, Raghuveer Sharma Dream is Incomplete

विदिशा।आजकल लोग भोग, विलास और सुख सुविधाओं की जिंदगी जीते है. जिसके लिए उनकी कमाई या तनख्वाह भी कम पड़ जाती है. फिर वह भ्रष्टाचार का रास्ता अपनाते हैं. लेकिन मध्यप्रदेश के विदिशा में 99 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी रघुवीर चरण शर्मा ने अपनी सम्मान निधि में मिले लाखों रुपए नगर में महापुरुषों की मूर्तियों को स्थापित करने, शहीदों की याद में शहीद ज्योति स्तंभ का निर्माण कराने और हिंदी सहित देश की अन्य भाषाओं के प्रचार प्रसार और उनके शोध के लिए हिंदी भवन बनाने में दान कर डाले. लेकिन शासन प्रशासन लापरवाही देखिये 2016 में स्वीकृत हिंदी भवन जिसका निर्माण कार्य प्रारंभ तो हुआ लेकिन 2017 में नगर पालिका ने बीच में ही काम रोक दिया. जिससे 1 साल में बना हिंदी भवन आज खंडहर हो गया है. उसमें भाषाओं के शोध की जगह एक परिवार निवास कर रहा है. भवन की हालत दिनों दिन खस्ता होती जा रही है. Azadi ka Amrit Mahotsav

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का सपना पूरा होता नहीं दिखाई दे रहा है
Raghuveer Sharma Dream
स्वतंत्रता सेनानी रघुवीर शर्मा का हुआ था सम्मान

स्वतंत्रता सेनानी की मंशा दरकिनार: 2016 में रघुवीर चरण शर्मा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ट्रस्ट ने एक 3 मंजिला हिंदी भवन बनाने का प्रस्ताव विदिशा जिला प्रशासन के समक्ष रखा था. घुवीर चरण शर्मा ने हिंदी भवन का नक्शा एवं 10 लाख रुपए जिला प्रशासन को दिए थे. इस पर जिला प्रशासन ने प्रस्ताव पर सहमति जताते हुए 15 लाख रुपए नगरपालिका से और 25 लाख रुपए जनभागीदारी से देने की घोषणा की थी. काम भी शुरू हो गया था. मंशा थी की हिंदी भवन बनने से हिंदी सहित समस्त भारतीय भाषाओं का अध्ययन और प्रचार प्रसार हो सकेगा. भाषाओं पर शोध होंगे, पुस्तकालय बनेगा. भाषाई संगोष्ठी आयोजित की जा सकेंगी. लेकिन 1 वर्ष काम चला और भवन की एक मंजिल बनने के बाद काम रुक गया. धीरे धीरे भवन खंडहर हो गया. भवन के सामने पार्क बनना था उसका काम भी शुरू नहीं किया गया. आज भवन पर कोई रहने लगा है और घटिया निर्माण के चलते भवन भी जर्जर हालत में हो गया है.

Raghuveer Sharma Dream
स्वतंत्रता सेनानी रघुवीर चरण शर्मा
Azadi ka Amrit Mahotsav
जर्जर हालत में शहीद ज्योति स्तंभ

शहीद ज्योति स्तंभ भी उपेक्षा का शिकार: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रघुवीर चरण शर्मा इसकी शिकायत हर स्तर पर कर चुके है. लेकिन हर जगह से उन्हें केवल आश्वासन ही मिले हैं. जिससे वे बहुत दुखी और निराश हैं. वहीं 2011 में उन्होंने शहीद ज्योति स्तंभ का निर्माण भी कराया था. जिसका शुभारंभ करने मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव आए थे. घटिया निर्माण के चलते उसकी दीवार भी कुछ वर्षो में ढह गई. कई बार शिकायत और आंदोलन की चेतावनी के बाद उसका निर्माण चालू हुआ जो पिछले 1 वर्ष से कछुआ गति से चल रहा है.

People living in Vidisha Hindi Bhawan
हिन्दी भवन पर लोगों का डेरा

आजादी के अमूल्य स्वतंत्रता सेनानी रघुवीर चरण शर्मा, इनके लिए देश सेवा आज भी सर्वोपरि

हिंदी भवन में लोगों का डेरा: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रघुवीर चरण शर्मा के बेटे राम कृष्ण शर्मा बताते हैं कि ''बाबू जी (रघुवीर चरण शर्मा) ने 10 लाख रुपय का योगदान हिंदी भवन के लिए दिया है. लेकिन वह हिंदी भवन आज तक नहीं बन सका. 3 साल से शहीद ज्योति स्तंभ की भी बहुत दयनीय स्थिति है. दीवार गिर चुकी है. प्रशासन ने उसमें भी कोई काम नहीं कराया. हम यही चाहते हैं कि हिंदी भवन में जो योगदान दिया है उससे भवन निर्माण का काम पूरा हो जाए. आज उसमें दूसरे लोग रह रहे हैं. हिंदी भवन बनवाने के पीछे यही मंशा थी कि राष्ट्रीय भाषा का प्रचार प्रसार हो''. People living in Vidisha Hindi Bhawan

क्या कहना है हिंदी भवन में रहने वाले लोगों का: हिंदी भवन में रहने वाले अजय बाबू विश्वकर्मा ने कहा कि ''नपा के कहने पर मैं हिंदी भवन में रह रहा हूं. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने यह हिंदी भवन के लिए दिया था. लेकिन अधूरा पड़ा हुआ है''. वहीं हिंदी भवन में रह रही एक छात्रा ने बताया कि ''यह हिंदी भवन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने बनवाया था. जिसका उपयोग नहीं हो पा रहा है. यदि इसका उपयोग होता तो सभी छात्रों को सुविधा मिल सकती थी''.
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