Compensation बांधवगढ़ किले का अधिग्रहण कर मुआवजा अदा करे सरकार, रीवा राजघराने की याचिका पर हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस

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Published : Nov 11, 2022, 11:21 AM IST

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आजादी के बाद देश में रियासतें तो खत्म हो गईं, लेकिन राजघराने अभी भी कायम हैं. ऐसा ही एक राजघराना है rewa royalty का. यहां के महाराज पुष्पराज सिंह ने राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ में स्थित अपनी निजी संपत्ति का compensation दिलाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है. उच्च न्यायालय ने भी उसका संज्ञान लेते हुए सभी संबंधितों को नोटिस जारी कर 19 दिसंबर तक जवाब मांगा है.

उमरिया। पूर्व rewa royalty के महाराज पुष्पराज सिंह ने जिले के राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ में स्थित अपनी निजी संपत्ति का मुआवजा दिलाने के लिए अब High Court का दरवाजा खटखटाया है. सिंह की याचिका क्रमांक 24210/22 को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय जबलपुर के जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने notice जारी कर 19 दिसंबर तक अपना जवाब प्रस्तुत करने को कहा है.

निजी संपत्तियों में किला भी शामिल थाः रीवा के राजघराने की ओर से High Court में याचिका दायर कर कहा गया है कि बांधवगढ़ नेशनल पार्क में बने किले को राज्य सरकार नियमानुसार अधिग्रहण (acquiring) कर उसकी मुआवजा राशि प्रदान करे. मामले में प्रारंभिक सुनवाई के बाद जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सचिव, केन्द्र सरकार के कैबिनेट सेक्रेटरी, केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन विभाग के संयुक्त सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग के अतिरिक्त मुख्य के सचिव, वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रधान वन संरक्षक शहडोल, बांधवगढ़ नेशनल पार्क के डायरेक्टर व कलेक्टर उमरिया को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए. रीवा के पूर्व महाराज मार्तंड सिंह के पुत्र पुष्पराज सिंह ने याचिका में बताया कि वर्ष 1954 में rewa royalty का भारत में विलय हुआ था. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिजीत अवस्थी ने बताया कि उस दौरान ट्रीटी ऑफ इस्टेट के तहत रीवा राजघराने की सभी निजी संपत्तियों का शेडयूल बनाया गया था. उस शेडयूल में bandhavgarh fourt भी शामिल था.

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किला 565 एकड़ में फैला हैः पहले राजघराने के सदस्य करीब 565 एकड़ में फैले उस किले में आते-जाते थे, लेकिन नेशनल पार्क बनने के बाद वहां जाना वर्जित हो गया. दलील दी गई कि संविधान के अनुच्छेद 363 के तहत ऐसी संधियों को विशेष दर्जा प्राप्त है और सरकार संपत्ति के उत्तराधिकारियों को उनके अधिकार से वंचित नहीं कर सकती. अब चूंकि राज्य सरकार और वन विभाग इस किले का इस्तेमाल कर रहा है तो नियमानुसार इसका अधिग्रहण (acquiring) कर याचिकाकर्ता को उसका उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए.

विलय पत्र में मानी गई थी निजी संपत्तिः याचिकाकर्ता का कहना है कि देश की स्वतंत्रता के उपरांत रीवा स्टेट का भारत मे विलय हुआ था. सरकार द्वारा विलय पत्र में अन्य चल-अचल संपत्तियों के सांथ बांधवगढ़ किले और उससे लगी करीब साढ़े पांच सौ पैसठ एकड़ भूमि को भी राजघराने की निजी संपत्ति माना गया था. बांधवगढ़ नेशनल पार्क की स्थापना के बाद प्रशासन द्वारा इस क्षेत्र मे आवागमन पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था. पुष्पराज सिंह के अधिवक्ता ने माननीय न्यायालय को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 363 के अुनसार राजघराने एवं उनके उत्तराधिकारियों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. वर्तमान समय में उक्त निजी संपत्तियों का उपयोग राज्य सरकार और वन विभाग द्वारा किया जा रहा है. इसके एवज में आज तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है. अत: शासन की गाईडलाईन के मुताबिक संपत्ति का मुआवजा दिलाया जाय.

बिना पक्ष सुने सरकार ने किया था फैसलाः बताया गया है कि राज्य की शिवराज सरकार ने कई वर्ष पूर्व bandhavgarh fourt और उससे लगी भूमि को शासकीय संपत्ति घोषित कर दिया था. उस समय भी सरकार ने राजघराने का न तो पक्ष सुना और न ही अवार्ड ही पारित किया गया. काननूविदों का मानना है कि किसी भी निजी संपत्ति को बिना उचित मुआवजा दिए अथवा अधिग्रहण की कार्यवाही के शासकीय संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट भी जा चुका है मामलाः मिली जानकारी के अनुसार यह मामला इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय तक भी जा चुका है. बताया गया है कि किसी एनजीओ द्वारा प्रस्तुत याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने आदेशित किया था कि वन्यजीव कानून के तहत नेशनल पार्क के कोर जोन में निजी संपत्ति नहीं रह सकती. इस दौरान भी बांधवगढ़ किले और भूमि के संबंध मे राजघराने के स्वामित्व को नकारा नहीं गया था. matter has also gone to Supreme court)

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