यहां बनी कालीन की देश के बड़े शहरों और विदेशों में थी डिमांड, जानें क्यों अब ठप पड़ी है इकाई

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Published : Sep 23, 2022, 2:33 PM IST

Unit of Handicrafts and Handloom Center

शहडोल के छतवई गांव में हस्तशिल्प और हथकरघा केंद्र की यूनिट है. यहां की बनी कालीन की डिमांड कभी बड़े शहरों से लेकर विदेशों तक में होती थी, लेकिन आज वही हथकरघा अपनी पहचान को तरस रहा है. महज 25 से 30 लाख रुपए का बजट नहीं मिलने के कारण यहां का काम ही पूरी तरह से अब बंद होने की कगार पर है.

शहडोल। जिला मुख्यालय से लगा हुआ छतवई गांव हैं, जहां हस्तशिल्प और हथकरघा केंद्र की यूनिट स्थापित है, छतवई में स्थित हस्तशिल्प और हथकरघा केंद्र में बनने वाले कालीन की कभी बड़ी डिमांड थी. अपने देश के बड़े शहरों में तो यहां बनी कालीन की डिमांड थी ही साथ ही विदेशों में भी यहां से बनाई कालीन जाती थी, मध्यप्रदेश के भोपाल में विधानसभा में भी यहां की बनी कालीन कभी बिछाई गई थी, लेकिन अब यहां हर तरह का काम पूरी तरह से बंद है. ना तो यहां अब कालीन बन पा रही हैं और ना ही काष्ठ कला के हुनर देखने को मिल रहे हैं, एक तरह से देखा जाए तो ये हस्तशिल्प और हथकरघा केंद्र अब अपने ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.

मलेशिया तक जाती थी यहां बनी कालीन: छतवई हस्तशिल्प और हथकरघा केंद्र में जब आप जाएंगे तो वहां हर कुछ अस्त-व्यस्त पाएंगे, वजह है अब यहां ना तो कालीन बनती है और ना ही काष्ठ कला के कोई काम होते हैं एक दौर था जब कभी यहां से बनी कालीन की देश के बड़े-बड़े शहरों में डिमांड थी. चेन्नई, नोएडा, कोलकाता , कालीकट, मद्रास इन जगहों पर तो यहां से बनाई गई कालीन जाती ही थी, साथ ही विदेश में मलेशिया तक में भी यहां से बनी कालीन की डिमांड थी मध्य प्रदेश भोपाल में स्थित विधानसभा में भी यहां की बनी कालीन बिछाई गई थी.

यहां बनी कालीन की देश के बड़े शहरों और विदेशों में थी डिमांड

जानिए कब स्थापित हुई: हस्तशिल्प हथकरघा केंद्र छतवई में पदस्थ अकॉउंटेंट शिव शंकर पांडे बताते हैं कि इस इकाई की स्थापना 1991-92 में हुई थी. इसको कालीन केंद्र के नाम से जाना जाता था, यहां के करीब 250 अनुसूचित जन जाती वर्ग के लोग कालीन में कई क्वालिटी की डिजाइन का प्रशिक्षण हासिल किये और कालीन निर्माण भी किया. ये कार्यक्रम लगातार चलता भी रहा लेकिन 2012 के बाद से ये इकाई ठप्प हो गई है.

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हस्तशिल्प और हथकरघा केंद्र में बनी कालीन

इसलिये बंद है कालीन का काम: छतवई का हस्तशिल्प और हथकरघा केन्द्र पिछले कुछ साल से पूरी तरह से ठप पड़ा है. यहां पंजीकृत करीब 250 से ज्यादा बुनकर या यूं कहें शिल्पी बेरोजगार बैठे हैं या फिर अपने हुनर से हटकर आजीविका के लिए कोई दूसरा काम करने को मजबूर हैं. आखिर इस हस्तशिल्प केंद्र में अचानक कालीन और काष्ठ कला का काम क्यों बंद करना पड़ा इसे लेकर यहां के लोग बताते हैं कि महज 25 से 30 लाख रुपए का बजट नहीं मिलने के कारण यहां का काम ही पूरी तरह से अब बंद होने की कगार पर है. अगर बजट मिलना शुरू हो जाए तो यह इकाई एक बार फिर से शुरू हो सकती है और उसी तरह से काम की शुरुआत भी हो सकती है.

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पहले यहां से मिलता था बजट: बताया गया कि केंद्र के संचालन के लिए 2012 से पहले तक बैगा विकास परियोजना व जिला पंचायत से राशि मिलती थी. केंद्र से जुड़े लोग बताते हैं कि कुछ लाख के बजट में ही यहां कई लोगों का काम चल रहा था. कुछ समय तक भोपाल से बजट मिला अब वह भी नहीं मिल रहा है. जिससे बजट की दिक्कत आ रही है और काम को रोकना पड़ गया.

यहां बनी कालीन की देश के बड़े शहरों और विदेशों में थी डिमांड

पहले ट्रेनिंग फिर काम: 1991-92 में केंद्र की शुरुआत की गई थी, इसमें 18 से 35 वर्ष तक के युवाओं को कालीन बनाने से लेकर दरी के साथ ही लकड़ी और लोहे के आकर्षक सामग्री बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था. काष्ठ कला और लोहे की बनी कई आकर्षक कलाकृतियां आज भी छटवई के हस्तशिल्प और हथकरघा केंद्र में देखने को मिलती है. इसके अलावा अभी भी वहां की बनाई हुई पुरानी कालीन भी है, जो आपका मन मोह लेगी, हालांकि कई सालों से काम बंद है. जिसकी वजह से अब यह भी पुरानी होती जा रही है.

2012 से अबतक कालीन का काम शुरू नहीं हुआ: वहां के लोगों ने बताया कि बजट न होने के चलते 2012 से लेकर के अब तक कालीन जॉब वर्क का उत्पादन नहीं कराया गया, जिसके कारण 250 हितग्राहियों को या शिल्पियों को रोजगार का अभाव है, यहां पर मुख्यतः कालीन बनाने का काम होता था पहले 6 माह की ट्रेनिंग होती थी. ट्रेनिंग के दौरान उन्हें स्टायफण्ड दिया जाता था और ट्रेनिंग के बाद जो भी उनसे अच्छे बुनकर निकलते थे. उन्हें घर पर ही ऑर्डर देकर कालीन बनवाया जाता था, सब अपने विभाग से दिया जाता था.

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काष्ठ कला का भी होता था काम

यहां के कालीन की एक अलग क्वालिटी थी: यहां के कालीन की देश के बड़े-बड़े शहरों में डिमांड थी. जो बाहर जाती थी यहां के कालीन में आखिर क्या खास बात थी जो इतनी डिमांड थी, इसे लेकर जब हमने वहां के लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि यहां की कालीन टोटल हैंडमेड हुआ करती थी, जो बहुत ही अलग होती थी. मजबूत होती थी और कई सालों तक चलती थी और देखने में बिल्कुल आकर्षक लगती थी. जिसके चलते यहां के कालीन को लोग काफी पसंद करते थे.

रॉ मटेरियल उपलब्ध कराते थे: शिल्पियों और बुनकरों के काम के लिए रेट फिक्स कर दिया गया था. उन्हें कच्चा मटेरियल इस यूनिट से उपलब्ध कराया जाता था. जिसके बाद वह अपने घरों में इसे बनाकर हस्तशिल्प और हथकरघा केंद्र के छतवई कार्यालय में जमा करवाते थे और फिर उसे बाहर भेजा जाता था उसके बदले में उन्हें एक रेट फिक्स तय की गई थी उनके काम के हिसाब से शिल्पियों और बुनकरों को पैसा दे दिया जाता था. जिससे न केवल शिल्पी और बुनकरों को रोजगार मिला हुआ था, साथ ही अपने कला का प्रदर्शन भी वहीं कालीन और काष्ठ के माध्यम से करते थे.

गौरतलब है कि यहां के लोगों का अभी भी कहना है कि अगर थोड़ी बहुत भी बजट स्थानीय स्तरीय प्रशासनिक स्तर से इस इकाई को मिलने लगे तो छटवई का यह हथकरघा और हस्तशिल्प का केंद्र एक बार फिर से शुरू हो सकता है और उन शिल्पीयों बुनकरो और काष्ठ के कलाकारों के कला को नया जीवन मिल सकता है, या यूं कहें कि नई पहचान मिल सकती है.

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