कहानी सीहोर के चैन सिंह की... जिन्होंने सन 1857 से 33 साल पहले ही अंग्रेजों को चटाई थी धूल

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Published : Aug 14, 2021, 10:10 PM IST

Updated : Aug 15, 2021, 2:18 PM IST

Story of Sehore Chain Singh

सन 1824 में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) से सीहोर जिले के नरसिंहगढ़ रियासत के राजा ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका था. 1824 में ब्रिटिश शासन ने नरसिंहगढ़ रियासत को विलय करने के लिए कहा था लेकिन कुंवर चैन सिंह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. जिसके बाद अंग्रेजों ने सीहोर में मुलाकात पर बुलाकर चैन सिंह पर हमला कर दिया. इस दौरान 24 जून 1824 को चैन सिंह देश के लिए शहीद हो गए.

सीहोर। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम से भी लगभग 33 वर्ष पूर्व सीहोर के कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंका था. उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर अंग्रेजी हूकुमत की नींव हिलाकर रख दी थी. कहा जाता है कि चैन सिंह की हुंकार से ही अंग्रेजों के पांव कांपने लगते थे. युद्ध नीति में निपुर्ण कुंवर चैन सिंह सीहोर जिले के नरसिंहगढ़ रियासत के राजा थे. ईस्ट इंडिया कंपनी ने नरसिंहगढ़ रियासत के साथ साथ आसपास की कई रियासतों को अपने अधीन कर लिया था. जिसके बाद कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. 24 जून 1824 को चैन सिंह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे.

Story of Sehore Chain Singh
कहानी सीहोर चैन सिंह की

भोपाल के नवाब से समझोता कर नरसिंहगढ़ को किया अधीन

1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भोपाल के तत्कालीन नवाब से समझौता करके सीहोर में एक हजार सैनिकों की छावनी स्थापित की थी. कंपनी ने नियुक्त पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक को इन फौजियों का प्रभारी बनाया. समझौते के तहत पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक को भोपाल सहित नजदीकी नरसिंहगढ़, खिलचीपुर और राजगढ़ रियासत से संबंधित राजनीतिक अधिकार भी सौंप दिए गए. इस फैसले को नरसिंहगढ़ रियासत के युवराज कुंवर चैन सिंह ने गुलामी की निशानी मानते हुए स्वीकार नहीं किया. जिसके बाद उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया.

अंग्रेजों की आंख में चुभने लगे थे कुंवर चैन सिंह

एक ओर कुंवर चैन सिंह अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ चुके थे, वहीं दूसरी ओर दीवान आनंदराम बख्शी और मंत्री रूपराम बोहरा चैन सिंह से गद्दारी कर रहे थे. चैन सिंह ने गद्दारी की सजा के रुप में दीवान आनंदराम बख्शी और मंत्री रूपराम बोहरा को मौत के घाट उतार दिया. मंत्री रूपराम के भाई ने कुंवर चैन सिंह के हाथों अपने भाई के मारे जाने की शिकायत कलकत्ता में गवर्नर जनरल से की.

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कुंवर चैन सिंह ने ठुकराई अंग्रेजों की शर्तें

गवर्नर जनरल के निर्देश पर पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को भोपाल के नजदीक बैरसिया में बैठक के लिए बुलाया. बैठक में मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को दीवान आनंदराम बख्शी और मंत्री रूपराम बोहरा की हत्या के अभियोग से बचाने के लिए दो शर्तें रखीं. पहली शर्त थी कि नरसिंहगढ़ रियासत, अंग्रेजों की अधीनता स्वीकारे. दूसरी शर्त थी कि क्षेत्र में पैदा होने वाली अफीम की पूरी फसल सिर्फ अंग्रेजों को ही बेची जाए. कुंवर चैन सिंह ने दोनों ही शर्तें ठुकरा दी.

मुलाकात पर बुलाकर अंग्रेजों ने किया हमला

शर्तें ठुकराने के बाद मैडॉक ने उन्हें 24 जून 1824 को सीहोर पहुंचने का आदेश दिया. अंग्रेजी जाल को कुंवर भांप गए. जिसके बाद चैन सिंह नरसिंहगढ़ से अपने सबसे विश्वास पात्र साथी सारंगपुर निवासी हिम्मत खां और बहादुर खां सहित 43 सैनिकों के साथ सीहोर पहुंचे. वहां मैडॉक और अंग्रेज सैनिकों से उनकी जमकर मुठभेड़ हुई. कुंवर चैन सिंह और उनके साथियों ने अंग्रेजों की फौज से डटकर मुकाबला किया. घंटों चली लड़ाई में अंग्रेजों के तोपखाने ओर बंदूकों के सामने कुंवर चैन सिंह और उनके जांबाज लड़ाके डटे रहे.

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तलवार लेकर तोप से भिड़ गए चैन सिंह

ऐसा कहा जाता है कि युद्ध के दौरान कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों की तोप पर अपनी तलवार से प्रहार किया. जिससे तलवार तोप में फंस गई. मौका पाकर अंग्रेज तोपची ने उनकी गर्दन पर तलवार का प्रहार कर दिया. जिससे कुंवर चैन सिंह की गर्दन रणभूमि में ही गिर गई. ऐसा कहा जाता है कि गर्दन कटने के बाद भी अंग्रेजों को चैन सिंह का पार्थिव शरीर नहीं मिल सका. चैन सिंह का स्वामीभक्त घोड़ा धड़ को लेकर नरसिंहगढ़ आ गया.

Last Updated :Aug 15, 2021, 2:18 PM IST
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