मैदान बना चारागाह: 80 लाख रुपए की लागत से बने स्टेडियम में घास चर रहे मवेशी, कहां खेले खिलाड़ी?

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Published : Aug 13, 2021, 10:52 PM IST

Cattle grazing grass in stadium

रायसेन जिले में बने खेल मैदान भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए है. सांची से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित आमखेड़ा गांव में बने खेल मैदान मवेशियों के लिए चारागाह बन गया है. इस मैदान पर खिलाड़ी नहीं खेलते, बल्कि मवैशी घास चरते है. इस मैदान का उद्घाटन तत्कालीन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने किया था. 80 लाख से बने इस मैदान में सिर्फ चारदीवारी ही बन पाई है.

रायसेन। रायसेन जिले में स्थित कई खेल मैदानों में घास उग रही है तो, कई मैदान मवेशियों के चारागाह में तब्दील हो गए है. जिससे ये मैदान युवाओं की खेल प्रतिभा निखारने में बाधा बनी हुए है. मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने ग्रामीण क्षेत्रों में खेल को बढ़ावा देने के लिए मैदान और स्टेडियम निर्माण की कई योजनाएं बनाई थी. जिनके अंतर्गत जिले में कई निर्माण भी हुए. लेकिन इन निर्माणों में सरकारी पैसे का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है. जिसकी वजह से स्टेडियम का निर्माण सफेद हाथी साबित होता नजर आ रहा है.

स्टेडियम में घास चर रहे मवेशी

शासन ने खेल मैदानों के लिए स्विकृत किए लाखों रुपए

शासन ने एक दशक पूर्व प्रत्येक हायर सेकंडरी, हाईस्कूल और ग्राम पंचायत में खेल मैदान स्वीकृत किए थे. करीब एक लाख रुपये प्रत्येक ग्राम पंचायत को खेल मैदान विकसित करने के लिए राशि भी आवंटित की थी. लेकिन अब ना तो स्कूलों में कहीं खेल मैदान नजर आते हैं और ना ही ग्राम पंचायतों में खेल मैदान दिखाई दे रहे हैं. कुछ ग्राम पंचायतों में चरनोई की शासकीय भूमि पर खेल मैदान बनाए गए थे, लेकिन अब वहां भी अतिक्रमण होना नजर आता है.

मैदान में है मूलभूत सुविधाओं का अभाव

ऐसा ही एक निर्माण सांची से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित आमखेड़ा गांव में हुआ है. यहां पर करीब 80 लाख रुपए की लागत से 4 साल पहले स्टेडियम का निर्माण कराया गया था. जिसका उद्घाटन तत्कालीन मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने किया था. लेकिन आज ये स्टेडियम चारागाह में तब्दील होता नजर आ रहा है. उद्घाटन के बाद से बाउंड्री के अलावा कोई निर्माण नहीं कराया गया. शासन प्रशासन की लापरवाही से बच्चे गांव की गलियों और खेतों में खेलने को मजबूर हैं.

The playing field is made of only four walls
खेल मैदान की बनी है सिर्फ चार दीवार

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इस बारे में ताइक्वांडो खिलाड़ी विकाश जेशवल ने बताया कि जब से यह स्टेडियम बना है, तब से इस में ताला ही डाला रहता है. इसमें एक भी टूर्नामेंट नहीं खेला गया. स्थानीय खिलाड़ी खेतों और गलियारों में प्रैक्टिस करते हैं. यहीं वजह है कि मूलभूत सुविधाएं नहीं मिलने के कारण सांची में सिर्फ नाम के खिलाड़ी बचे हैं.

मैदान की चारदीवारी में घास चर रहे मवैशी

सांची के खेल शिक्षक एवं पूर्व खिलाड़ी शुभम सेन ने बताया कि सांची में स्टेडियम बनवाने के लिए हमने पूर्व में काफी संघर्ष किया. इसके बाद यह स्टेडियम बना तो हमें काफी उम्मीद थी. लेकिन 4 साल बाद भी इस स्टेडियम को खेल मैदान का रूप नहीं दिया जा सका. इसमें गाय भैंस के लिए चारागाह बन गया हैं. सिर्फ चारदीवारी ही बनाई गई. स्टेडियम का फर्श पर बेस भी तैयार नहीं है. जिसमें पत्थर पड़े हुए हैं.

2017 में सांची में 500 से ज्यादा खिलाड़ी अभ्यास करते थे, जिसमें से लगभग डेढ़ सौ बच्चे नेशनल भी खेल चुके हैं. लेकिन आज वहीं खिलाड़ी कहीं मजदूरी कर रहे हैं या प्राइवेट जॉब कर रहे हैं. अगर सांची के बच्चों को अच्छा प्लेटफार्म, खेल मैदान मिले तो काफी खिलाड़ी सांची से आगे पहुंचेंगे और देश का नाम रोशन करेंगे.

There is a lock on gate of the field
मैदान के गेट पर लगा रहता है ताला

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जिले के कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर पर दिखाया जौहर

जिले में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं. खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए शासन ने जिला मुख्यालय पर स्टेडियम, मंडीदीप में हाकी फीडर कोर्ट, सांची में ताइक्वांडो कोर्ट, बरेली में हैंडबॉल, उदयपुरा में कबड्डी, सिलवानी में फुटबाल मैदान का निर्माण कराया है. यही कारण है कि मंडीदीप से करीब 50 हॉकी खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक खेल चुके हैं. सांची से ताइक्वांडो में 12, बरेली से हैंडबॉल में दो, उदयपुरा से कबड्डी में दो, रायसेन से फुटबाल में दस और सिलवानी से फुटबाल में दो खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं. वर्तमान में करीब 40 युवा मंडीदीप में, 15 बरेली में, 25 उदयपुरा में, रायसेन में 40 और सांची में 20 युवाओं का पंजीयन खेल विभाग के पास है.

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