Mihir Bhoj Controversy, क्यों MP से लेकर UP तक सम्राट मिहिर भोज पर विवाद में आमने सामने हैं गुर्जर क्षत्रिय, जानें पूरा विवाद

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Published : Aug 30, 2022, 1:42 PM IST

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सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर छिड़ा संग्राम पुराना है. जाति की जंग में गुर्जर और क्षत्रिय सालों से एक दूसरे पर हिंसक वार करने से भी नहीं चूकते हैं. कई बार वर्ग संघर्ष की आशंका को देखते हुए सरकार और प्रशासन खासा संघर्ष करना पड़ता है. दोनों समुदायों को समझाने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है. मगर बड़ा सवाल यही है कि आखिर हर साल क्यों गुर्जर और क्षत्रिए इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि एक दूसरे के खून के प्यासे होने से भी इन्हे गुरेज नहीं. पढ़िए पूरा विश्लेषण. samrat mihir bhoj cast controversy, who was king mihir bhoj, what is cast controversy of gurjar kshatriye, cast controversy gurjar kshatriye samrat in mp up

ग्वालियर। देश में सम्राट मिहिर भोज को लेकर असल विवाद दो समुदायों का उनकी बौद्धिक विरासत को अपना बताने की होड़ है. इसकी वजह से कई बार देश के कई राज्यों में विवाद की स्थिति बन जाती है. पिछले साल की ही बात करें तो ग्वालियर में सम्राट मिहिर भोज की एक मूर्ति लगाई गई थी, इस मूर्ति के नीचे लगे शिलालेख में उन्हें गुर्जर बताया गया, बस यही बात क्षत्रियों को नागवार गुजर गई. इसके विरोध (Gurjar Kshatriya Face to Face) में वो सड़कों पर आ गए. दो जातियों के बीच छिड़ी इस जंग का दायरा बढ़ता गया, जोकि अब धीरे-धीरे वर्ग संघर्ष का रूप लेता गया. जब ये विवाद सुलग रहा था, तभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 सितंबर को ग्रेटर नोएडा के दादरी में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण कर दिया, जिसके बाद इस आग को और हवा मिल गई थी. (samrat mihir bhoj cast controversy) (who was king mihir bhoj)

कौन थे सम्राट मिहिर भोज और गुर्जर प्रतिहार वंश से क्या था नाता: इस संबंध में भिंड जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय बताते हैं कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ईसवी में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालात और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा को कायम किया था जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.

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जाति पर गुर्जर-क्षत्रिय के अपने-अपने दावे: हालांकि, सम्राट मिहिर भोज को लेकर हाल में कई विवादित घटनायें घटी हैं, जिनमें इनके गुर्जर या राजपूत होने को लेकर कई जगहों पर विवाद हुआ शामिल है. गुर्जर समुदाय के लोगों का दावा है कि मिहिर भोज गुर्जर थे, जबकि राजपूत समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि ये राजपूत क्षत्रिय थे और गुर्जर नाम केवल गुर्जरा देश के एक क्षेत्र के नाम के चलते प्रयोग किया जाता है. इन दोनों ही दावों को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के मतों का प्रमाण हाल में मिला है. वर्तमान में यही मुद्दा दोनों समुदायों के बीच कटुता और संघर्ष का कारण बन गया है.

इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद: सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर लिखे गुर्जर शब्द पर ही ये विवाद शुरू हुआ है. गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. राजपूत करणी सेना ने सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर एतेहासिक तथ्यों को सामने लाने के लिए गौतमबुद्ध नगर के डीएम से मिलकर इतिहासकारों की कमेटी गाठित करने की मांग की थी. (what is cast controversy of gurjar kshatriye) (cast controversy gurjar kshatriye samrat in mp up)

'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी: सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया, उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है. इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे, इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे, इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था, ऐसा माना जाता है.

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ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख: ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो प्रतिहार वंश की स्थापना आठवीं शताब्दी में नाग भट्ट ने की थी और गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में इन्हें गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है. इतिहासकार केसी श्रीवास्तव की पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति' में लिखा है कि 'इस वंश की प्राचीनता 5वीं शती तक जाती है'. पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख पहली बार हुआ है. हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख है. चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.

सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सियासत: सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर या राजपूत बताए जाने को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका इतिहास से मतलब कम, राजनीति से ज्यादा है. मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर थे, इसमें ऐतिहासिकता कम राजनीति ज्यादा हो रही है. इतिहास तो यही कहता है कि आज के जो गूजर या गुज्जर-गुर्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा है. दूसरी बात, यह गुर्जर-प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था. ऐसे में विवाद की बात होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन अब लोग कर रहे हैं तो क्या ही कहा जाए. (kya thi mihir ki jati ) (kaun the mihir bhoj)

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