मां सिंह वाहिनी की महिमा: 170 साल पुरानी हैं मिट्टी से बनी प्रतिमा, साल में दो बार भक्तों को दर्शन देती है माता

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Published : Oct 7, 2021, 5:47 PM IST

Updated : Oct 7, 2021, 7:40 PM IST

Glory of Maa Singh Vahini

दमोह के फुटेरा तालाब के पास दस भुजाधारी मां सिंह वाहिनी का मंदिर है. इस मंदिर में माता की प्रतिमा मिट्टी से बनी हुई है. 170 साल से बनी इस प्रतिमा में दोबारा कोई भी रंग रोगन नहीं किया गया. फिर भी इस प्रतिमा को कोई क्षति नहीं पहुंची है. यह मंदिर भक्तों के लिए साल में दो बार खुलता है. अश्विन एवं चैत्र नवरात्र में प्रतिपदा तिथि को मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं. साल भर माता की प्रतिमा को रुई और कागज से ढंककर रखा जाता है. जानिए क्या हैं इस मंदिर की खासियत...

दमोह। ऐतिहासिक एवं गौरवशाली इतिहास को अपने में समेटे दमोह जिला धर्म क्षेत्र में बहुत ही अनूठा और अलौकिक है. यहां कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं, जो वाकई अपने आप में बेमिसाल और बेजोड़ हैं. ऐसा ही एक मंदिर नगर के फुटेरा तालाब के समीप स्थित है. भारत दुर्गे देवालय (Bharat Durge Devalaya) नाम से विख्यात इस मंदिर में विशुद्ध रूप से मिट्टी की बनी हुई 170 साल प्राचीन प्रतिमा आज भी स्थित है. यह मंदिर भक्तों के लिए साल में दो बार 15-15 दिन के लिए खोला जाता है. अश्विन एवं चैत्र नवरात्र में प्रतिपदा तिथि को मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं.

मां सिंघ वाहिनी की महिमा

1851 में हुई थी मंदिर की स्थापना

फुटेरा वार्ड स्थित भारत दुर्गे देवालय में मिट्टी से बनी हुई उत्तर मुखी 10 भुजा वाली सिंह वाहिनी माता की प्रतिमा उस समय स्थापित की गई थी जब देश गुलाम था. तब यहां पर अंग्रेजों का राज था. मंदिर के पुजारी डॉक्टर नरेंद्र भारत बताते हैं कि 1851 में इस प्रतिमा का निर्माण हटा में किया गया था. उस समय किसी तरह की कोई विशेष सुविधा और यातायात के साधन नहीं थे. इसलिए इसे बैलगाड़ी से लाया गया था. बाघ पर सवार मां के दाएं-बाएं उनकी गणिकाएं खड़ी हुई है.

रात्रि में होते है मां के अनुष्ठान

पुजारी ने बताया कि शूल से राक्षस का वध करती माता रानी की यह जिले में इकलौती मूरत है. प्रतिमा की स्थापना उनके प्रथम सेवक देवी प्रसाद भारत और भागीरथ प्रसाद भारत ने की थी. स्थापना काल से ही माता की सेवा भारत परिवार करता आ रहा है. अब यह चौथी पीढ़ी है, जो माता की सेवा कर रही है. उत्तर मुखी देवी के पूजन का विधान अलग है. उनका पूजन रात्रि में ही किया जाता है. सुबह-शाम आरती तो होती है, लेकिन अनुष्ठान रात्रि में होते हैं.

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170 साल से नहीं हुआ प्रतिमा में बदलाव

इस मिट्टी की प्रतिमा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि 170 वर्ष से इसमें दूसरी बार रंग रोगन नहीं किया गया. फिर भी माता रानी के चेहरे पर उनके तेज, उनके आभामंडल में किसी तरह की कोई कमी दिखाई नहीं देती है. प्रतिमा कहीं से भी खंडित भी नहीं है. यह भी अपने आप में एक अनूठी बात है, क्योंकि मिट्टी की प्रतिमाएं अक्सर नमी पकड़कर भी भिसकने लगती हैं, लेकिन इस प्रतिमा में ऐसा कुछ भी दृश्य परिलक्षित नहीं होता है.

अंग्रेज सरकार के फरमान पर रुका था चल समारोह

पुजारी नरेंद्र बताते कि पहले प्रतिमा को दशहरे के अवसर पर चल समारोह में निकाला जाता था. मंदिर से प्रतिमा को नगर भ्रमण कराकर वापस मंदिर में स्थापित कर दिया जाता था. प्रतिमा का कभी विसर्जन नहीं किया गया. उसे हर बार मंदिर में स्थापित कर दिया गया. लेकिन 1942 में जब द्वारका प्रसाद श्रीवास्तव ने गौ हत्या के विरोध में आंदोलन चलाया तो अंग्रेज सरकार हिंदुओं से इस कदर गुस्सा हो गई कि उन्होंने चल समारोह को बीच में ही रोकने का फरमान जारी कर दिया.

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22 दिन तक एक ही स्थान पर खड़ी रही प्रतिमा

पुजारी नरेंद्र के अनुसार, दमोह में उस समय निकाली जाने वाले चल समारोह की चारों प्रतिमाओं को रोक दिया गया. करीब 22 दिन तक प्रतिमाएं एक ही स्थान पर खड़ी रही. वहीं पर उनकी पूजा-अर्चना होती रही. इस तरह जब लंबा समय बीत गया. तब तत्कालीन पुजारी मूलचंद भारत ने मां से प्रार्थना की कि 'हे मां किसी तरह से अब आप घर चलो, अब के बाद कभी भी आपको मंदिर से दोबारा बाहर नहीं निकालेंगे'.

उनकी प्रार्थना करने के दो-तीन दिन बाद ही अंग्रेज सरकार ने अपना फरमान वापस ले लिया. उसके बाद प्रतिमा को वापस लाकर मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित कर दिया गया और तब से लेकर अब तक दोबारा नहीं निकाला गया.

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रुई और कागज से ढंकी जाती है प्रतिमा

डॉक्टर भारत बताते हैं कि पूर्णिमा के बाद रुई एवं पेपर से प्रतिमा को पूरी तरह ढंक दिया जाता है. गुप्त रूप से 6 माह तक उनकी विशेष आराधना बंद कक्ष में चलती रहती है. केवल नवरात्रि के अवसर पर प्रतिपदा को ही माता रानी के पट भक्तों के लिए खोले जाते हैं. पट खुलते ही जिले ही नहीं प्रदेश के कई जिलों एवं दूर-दराज क्षेत्रों से लोग अपनी मन्नतें मांगने आते हैं और नारियल बांधकर जाते हैं.

Last Updated :Oct 7, 2021, 7:40 PM IST
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