संविधान कैलेण्डर: ताकि दिन नहीं दिल दिमाग भी संविधान से चले, संविधान को सरल बनाने विकास संवाद की नायाब कोशिश
Updated on: Jan 25, 2023, 11:58 AM IST

संविधान कैलेण्डर: ताकि दिन नहीं दिल दिमाग भी संविधान से चले, संविधान को सरल बनाने विकास संवाद की नायाब कोशिश
Updated on: Jan 25, 2023, 11:58 AM IST
विकास संवाद संस्था संविधान को सरल बनाने एक नायाब कोशिश कर रहा है. विकास संस्था ने संवाद संविधान कैलेंडर तैयार किया है, जिससे दिन ही नहीं बल्कि आम आदमी का दिल दिमाग भी संविधान से चले.
भोपाल। अगर आपसे कहें कि संविधान की मुश्किल और भारी भरकम किताब नहीं आसानी से समझ आने वाला संविधान कैलेंडर भी है, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी. मध्यप्रदेश में संविधान को दीवार पर टंगे कैलेंडर के साथ आम आदमी के दिलो दिमाग तक पहुंचाने की एक नायाब कोशिश हुई है. संविधानिक मूल्यों पर काम कर रही संस्था विकास ने संवाद संविधान कैलेंडर तैयार किया है, जिससे दिन ही नहीं बल्कि आम आदमी का दिल दिमाग भी संविधान से चले.
किताब नहीं संविधान कैलेंडर भी है: 26 जनवरी को बीते कितने बरसों से आप रस्मन संविधान की याद करते आए हैं. आम आदमी के लिए हमेशा से एक मुश्किल किताब जिसके लिए धारणा भी यही रही है कि संविधान की जरुरत तो अदालती लड़ाई और पुलिस की कार्रवाई के वक्त होती है. संविधान लागू होने के इतने बरस बाद भी संविधान आम आदमी तक नहीं पहुंचा तो संवैधानिक मूल्यों की समझ बढ़ाने और उसे बेहद आसानी से आम आदमी तक पहुंचाने संस्था विकास संवाद ने एक प्रयोग किया. इस प्रयोग का नाम है संविधान कैलेण्डर. विकास संवाद का विचार ये था कि संवैधानिक मूल्य आम जनता तक कैसे पहुंचाए जाएं. संविधान आम जन में संवाद का विषय बन पाए और सबसे अहम संविधान की शिक्षा और उसके मूल्यों को हर व्यक्ति अपने भीतर स्थापित कर सके. विकास संवाद ने एक कम्यूनिकेशन और एडवोकेसी संस्थान होने के नाते कैलेंडर समेत कई ऐसे प्रयोग कर संविधान को लेकर बने हुए मिथक तोड़ने का प्रयास किया है.
कैलेंडर में संविधान की शपथ भी: जनवरी 2023 से मार्च 2024 तक बने इस कैलेंडर की सबसे खास बात यह है कि संवैधानिक मूल्यों जैसे बंधुता, समता, पंथनिरेपक्षता जैसे ग्यारह शब्दों की इस कैलेंडर में व्याख्या भी की गई है. संविधान की उद्देशिका से इस कैलेंण्डर की शुरुआत होती है. कैलेंडर की खासियत जनता की ओर से इसे आत्मसात करने का उदघोष है. प्रयास ये कि ये ड्राइंग रुम की दीवार पर टंगा ये कैलेंडर तारीख दर तारीख हमारे दिलो दिमाग पर संवैधानिक मूल्यों की दस्तक देता रहेगा. विकास संवाद की ओर से ही एक पोस्टर भी प्रकाशित किया गया है, जिसमें संवैधानिक मूल्यों का क्या अर्थ है और उसे हम अपने जीवन में अपने आसपास कैसे देख समझ सकते हैं और उसके लिए पहल कर सकते हैं. इस पर जोर दिया गया है. कैलेंडर में संविधान की उद्देशिका में लिखे गए शब्दों को मानवीय भाषा में समझाया जा सके. इस कैलेंडर में संविधान का मूल तत्व लेते हुए संविधान की शपथ भी है और नागरिकों के कर्तव्य भी.
संविधान की मूल भावना समाज तक पहुचाने है ये कैलेंडर: विकास संवाद के निदेशक सचिन जैन बताते हैं हमने ये देखा है कि संविधान जब से भारत में लागू हुआ तब से संविधान को लेकर लोक शिक्षण की प्रक्रियाएं नहीं हुई हैं. इसी चीज को हम महसूस करते हैं कि जिन सविधान मूल्यों को संविधान में शामिल किया गया है वो हमारी लोक व्यवहार में नजर नहीं आते हैं. हमारी राजनीतिक प्रक्रियाओं में नजर नहीं आते हैं. हमारे सामाजिक संगठनों की प्रक्रिया में नजर नहीं आते हैं. इसी मकसद से हमने ये पहल की है. सचिन बताते हैं बहुत सारी जो कोशिशें हो रही हैं, उनमें एक कोशिश और की ये जो संविधान की उद्देश्यिका के बारह शब्द हैं. जिसमें संपूर्ण प्रभुत्व संपन्नता है, लोकतंत्रात्मक व्यवस्था है गणराज्य है. गरिमा है अखंडता है बंधुता स्वतंत्रता शब्द है. इन शब्दों के मायने को कितना ज्यादा से ज्यादा मानवीय संवाद की भाषा में सरल भाषा में प्रस्तुत कर सकते हैं. तो उस नजरिए से ही इस कैलेण्डर को तैयार किया गया. इसमें हमने उद्देश्यिका को भी दर्ज किया है, साथ में इन सभी शब्दों की भी व्याख्या की है और इस तरह से की है कि आम लोग अपने जीवन से इनका जो जुड़ाव है, उसे महसूस कर पाएं. सचिन कहते हैं दूसरी एक बात संवैधानिक पदों पर जो लोग आसीन होते हैं, ये सभी संविधान की शपथ लेते हैं. हमको एक बात लगी कि संविधान की रक्षा का दायित्व हम नागरिकों से नहीं जुड़ता है क्या. इसीलिए हमने इस कैलेंडर में शपथ का मूल तत्व लेते हुए नागरिकों की शपथ भी रची है. कैलेण्डर का जो आखिरी हिस्सा है उसमें नागरिकों के मूल कर्तव्य हैं. संविधान को आम आदमी तक पहुंचाने के इस अभिनव प्रयास को लेकर सचिन कहते हैं हमारा मकसद यही है कि संविधान की जो मूल भावना है उससे समाज को जोड़ सकें.
