Jivitputrika Vrat 2022: संतान की दीर्घायु के लिए किया जाने वाला जितिया व्रत आज, ऐसे करें पूजा, जानें शुभ मुहूर्त

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Published : Sep 18, 2022, 8:19 AM IST

Jivitputrika Vrat 2022

जीवित्पुत्रिका व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए बेहद कठिन व्रत माना जाता है, इस व्रत को महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं. हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत या जीउतपुत्रीका व्रत करने का विधान है. Jitiya Vrat 2022, Jivitputrika Vrat 2022, Jivitputrika Vrat 2022 Puja, Jivitputrika Nahay khay 2022, Jivitputrika Vrat Katha, Jivitputrika Vrat Shubh Muhurat

भोपाल। हिंदू धर्म में व्रत-त्योहारों का अलग महत्व होता है, इनमें से जीवित्पुत्रिका व्रत भी खास है. जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया व्रत और जिउतिया व्रत के नाम से भी जानते हैं, आश्विन मास कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को पुत्र के आरोग्य लाभ, दीर्घायु और सर्वविद कल्याण के लिए जीवित्पुत्रिका अर्थात जितिया व्रत का विधान धर्मशास्त्रकारों ने निर्दिष्ट किया है. प्राय: स्त्रियां इस व्रत को करती हैं, मान्यता है कि जितिया व्रत को माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन की कामना के लिए रखती हैं. इस बार यह व्रत 18 सितंबर को रखा जा रहा है. जानिए पूजन का समय और पूजन विधि-Jivitputrika Vrat 2022

जीवित्पुत्रिका का मुहूर्त कब से और कब तकः वैसे तो इसकी तिथि को लेकर अलग-अलग पंचांग अलग-अलग मत देते हैं, लेकिन शनिवार को नहाए-खाय कर महिलाओं ने व्रत का संकल्प शुरू किया है और रविवार को व्रत रखकर इसका पारण सोमवार की सुबह में करेंगी. व्रत रखने का शुभ मुहूर्त रविवार (अष्टमी तिथि प्रारम्भ यानी सूर्योदय के पहले) से शाम 4 बजकर 32 मिनट तक रहेगा, व्रत रखने वाली महिलाएं कथा सुनने के बाद सोमवार को पारण करने का काम करेंगी. इस दौरान फल-फूल-माला के साथ ही सत्पुटिया की पत्ती, खली सहित अन्य चीजें प्रयोग में लाई जाती है.Jitiya Vrat 2022, Jivitputrika Nahay khay 2022, Jivitputrika Vrat Shubh Muhurat

जिउतिया व्रत: रविवार, सितम्बर 18 2022 को.
अष्टमी तिथि प्रारम्भ: 17 सितम्बर 2022 को शाम दो बजकर 14 मिनट से.

अष्टमी तिथि समाप्त: 18 सितम्बर 2022 को शाम 4 बजकर 32 मिनट तक.
अभिजित मुहूर्त: शाम 12 बजकर 08 मिनट से शाम 12 बजकर 57 मिनट तक.

विजय मुहूर्त: शाम 2 बजकर 34 मिनट से शाम 3 बजकर 23 मिनट तक.
गोधूलि मुहूर्त: शाम 6 बजकर 26 मिनट से शाम 06 बजकर 50 मिनट तक.

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जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजन विधि: आज के दिन पवित्र होकर संकल्प के साथ व्रती प्रदोषकाल में गाय के गोमय से अपने प्रांगण को उपलिप्त कर परिष्कृत करें और छोटा सा तालाब भी जमीन खोदकर बना लें. तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें, शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुश निर्मित मूर्ति जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित कर पीली और लाल रुई से उसे अलंकृत करें और धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्य से पूजन करें. मिट्टी और गाय के गोबर से चिल्ली (मादा चील) और सियारिन की मूर्ति बनाकर उनके मस्तकों को लाल सिंदूर से भूषित कर दें. अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए उपवास कर बांस के पत्तों से पूजन करना चाहिए. व्रत महात्म की कथा का श्रवण करना चाहिए. अपनी संतान की लंबी आयु और सुंदर स्वास्थ्य की कामना के लिए महिलाओं को विशेष कर इस व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए. Jivitputrika Vrat 2022 Puja, Jivitputrika Vrat puja vidhi

क्यों पड़ा जीवित्पुत्रिका व्रत: जिउतिया व्रत के पीछे महाभारत की कहानी है. ऐसा कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो उठा. उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी. इसी के चलते उसने से बदला लेने की ठानी और पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला. वो सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं. फिर अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली. अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया. ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया. इस तरह गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा. तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जिउतिया का व्रत किया जाने लगा.

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जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा: इस व्रत के पीछे की पौराणिक कथा इस प्रकार है कि गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे. युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे. एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान हैं. वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा. इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है. नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है. इसके बाद उन्होंने ऐसा ही किया. गरुड़ जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला. जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया. जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को न खाने का भी वचन दिया. Jivitputrika Vrat Katha

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