कोरोना की तीसरी लहर का डर और डेंगू का बढ़ता कहर, डॉक्टरों की कमी से अस्पताल के हाल बेहाल MP में वेंटिलेटर पर स्वास्थ्य सेवाएं

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Published : Sep 15, 2021, 11:08 PM IST

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कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका गहराने लगी है. मध्य प्रदेश में भी मामले सामने आने लगे हैं. तीसरी लहर की आशंका के बीच सरकार ने कैबिनेट बैठक में कोरोना और वैक्सीनेशन और डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे प्रदेश को निजात दिलाने पर भी चर्चा की गई. खास बात यह है कि कोरोना की तीसरी लहर को मेडिकल से जुड़े लोगों में भी दहशत का माहौल है, जिसको लेकर खाली पड़े पदों पर कोई आने को तैयार ही नहीं है.

भोपाल। कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका गहराने लगी है. मध्य प्रदेश में भी मामले सामने आने लगे हैं. तीसरी लहर की आशंका के बीच सरकार ने कैबिनेट बैठक में कोरोना और वैक्सीनेशन और डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे प्रदेश को निजात दिलाने पर भी चर्चा की गई. खास बात यह है कि कोरोना की तीसरी लहर को मेडिकल से जुड़े लोगों में भी दहशत का माहौल है, जिसको लेकर खाली पड़े पदों पर कोई आने को तैयार ही नहीं है. मध्यप्रदेश में डॉक्टरों के 5000 से अधिक और नर्सिंग स्टाफ के 16,000 से अधिक पद खाली हैं. इसके बावजूद इन पदों पर अभी तक कोई नियुक्ति नहीं हुई है.

दूसरी लहर के दौरान 18-20 घंटे काम करने को मजबूर रहे डॉक्टर
कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान भी प्रदेश में डॉक्टरों की भारी कमी देखी गई. इसकी वजह से डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ को लगातार 18 से 20 घंटे काम करना पड़ा. जिसका मुख्य कारण अस्पतालों में मरीजों की बढ़ी हुई संख्या और डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ सहित पैरामेडिकल स्टाफ की खासी कमी रही. हालात ये भी देखे गए कि 20 बेड के वार्ड में मरीज मात्र दो जूनियर डॉक्टरों के थे. एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में फिलहाल 5000 डॉक्टरों की जरूरत है. 13 मेडिकल कॉलेजों में 1000 और सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के 4000 से अधिक पद खाली पड़े हैं. नर्सिंग स्टाफ की बात की जाए तो इनके 16 से 18000 पद अभी भी खाली हैं. कोरोना काल के दौरान इन पदों पर नियुक्तियां तो निकाली गई, लेकिन महामारी की भयावहता को देखकर कोई आने को तैयार नहीं था. जो आवेदन आए भी थे वे तय पैमानों पर खरे नहीं उतरे.


- भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के लिए 325 वैकेंसी निकाली गईं.

- रतलाम के मेडिकल कॉलेज में 500 भर्तियां अस्थाई रूप से निकाली गईं थीं, लेकिन इन पदों पर कोई भी आने को तैयार नहीं था.

- इस सबके बावजूद सरकार मेडिकल कॉलेज खोल रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि तीसरी लहर की तैयारी में जुटी सरकार बिना डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ के इस संकटकाल से कैसे निपट पाएगी.

मानसिक तनाव झेल रहे डॉक्टर
डॉक्टर्स टीचर्स एसोसिएशन के सचिव राकेश मालवीय कहते हैं कि

एक और डॉक्टरों की कमी है, वहीं दूसरी ओर नियुक्तियां नहीं की जा रही हैं, और जो की जा रही हैं उनमें डॉक्टर आने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में जो डॉक्टर काम कर रहे हैं, वह मानसिक रूप से परेशान हैं. वहीं सरकार कई वर्षों से डॉक्टरों की पेंशन पॉलिसी, प्रमोशन पॉलिसी और सातवें वेतनमान की ओर ध्यान नहीं दे रही है.

राकेश मालवीय,सचिव,डॉक्टर्स टीचर्स एसोसिएशन

प्रदेश में 16 से 18000 पद अभी भी नर्सिंग स्टाफ के रिक्त हैं, इन पदों को भरा नहीं गया है. सरकार को चाहिए कि जो कोरोना ड्यूटी के दौरान जो नर्सेज संक्रमित हुई हैं, उनके लिए अलग से व्यवस्था की जाए. इस दौरान कई नर्सों की मौत भी हो चुकी है. ऐसे में उन्हें कोरोना योद्धा मानकर सरकार उनके परिवार को आर्थिक सहायता दे.

मंजू मेश्राम , अध्यक्ष,प्रांतीय नर्सेज एसोसिएशन

सरकार का प्लान 25% डॉक्टरों की होगी सीधी भर्ती
प्रदेश सरकार के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कैबिनेट की बैठक के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने के लिए फैसला लिया गया है. इसमें विशेषज्ञों के 25% पद सीधी भर्ती और 75% पद पदोन्नति से भरे जाएंगे. यह फैसला डॉक्टर, विशेषज्ञ और पैरामेडिकल की कमी से जूझते मध्य प्रदेश को निजात दिलाने के लिए लिया है. उन्होंने बताया कि कैबिनेट ने स्वास्थ्य नीति में संशोधन को भी मंजूरी दी है. गृहमंत्री ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए बनाए गए नियमों को कैबिनेट की ओर से मंजूरी दे दी गई है. इसमें आयु सीमा के साथ पात्र हितग्राहियों को भी आयु सीमा में छूट देने की बात कही गई है.

अभी 40 साल पुरानी पॉलिसी अपनाती है सरकार
मध्य प्रदेश चिकित्सा कर्मचारी एसोसिएशन ने सरकार की पॉलिसी पर ही सवालिया निशान उठाए हैं. एसोसिएशन के अध्यक्ष राजन नायर का कहना है कि

सरकार की जो पॉलिसी है. वह 40 साल पुरानी है. 1980 के बाद से ही भर्ती नियम नहीं बदले गए हैं. कर्मचारियों की नियुक्ति जितनी होनी थी, उतनी सरकार ने अभी तक नहीं की हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में मेडिकल कॉलेजों में स्टाफ की और कमी देखने को मिलेगी.

राजन नायर,अध्यक्ष,मध्य प्रदेश चिकित्सा कर्मचारी एसोसिएशन

मंत्री भी मान चुके हैं ,डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा प्रदेश
स्वास्थ्य मंत्री प्रभु राम चौधरी ने भी इस बात को मान चुके हैं कि प्रदेश में डॉक्टरों की कमी है, लेकिन जल्द ही इसे दूर किया जाएगा. ऐसे में सवाल यही उठता है कि जब मेडिकल स्टाफ और डॉक्टरों की कमी है और उनकी भर्ती के लिए अपनाई जाने वाली पॉलिसी में 40 सालों से कोई बदलाव नहीं किया गया हालांकि सरकार ने इसमें कुछ बदलाव को मंजूरी दे दी है.

मौसम बदलते ही बढ़ने लगी मरीजों की तादाद
एकाएक मौसम में परिवर्तन के चलते प्रदेश के कई जिलों में वायरल और डेंगू के मरीज़ों की संख्या में इजाफा हो रहा है. जिला अस्पताल में भी मरीजों की संख्या बढ़ गई है. भिंड़ जैसे छोटे जिलों के हालात काफी खराब हैं, क्योंकि गंभीर बीमारी के मरीजों को उचित इलाज के लिए मरीज़ों को ग्वालियर या दिल्ली रिफर करना पड़ता है. जिसका बड़ा कारण है डॉक्टर्स की कमी है जिसकी वजह से ज़िले में स्वास्थ्य सेवाएं खुद वेंटिलेटर पर हैं. ग़रीब और बेसहारा मरीज़ों के इलाज के लिए भारत सरकार द्वारा नेशनल हेल्थ मिशन के तहत ऐसे मरीज़ों के लिए मुफ़्त इलाज मुहैया कराने के लिए जिला अस्पताल से लेकर उप स्वास्थ्य केंद्र तक खोले गए लेकिन चिकित्सकों की भारी कमी की वजह से जरूरतमंदों को इलाज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है.

यह है भिंड में डॉक्टरों की स्थिति
भिंड़ जिला अस्पताल में ही विशेषज्ञ डॉक्टरों के 37 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में सिर्फ़ 7 विशेषज्ञ डॉक्टर अपनी सेवाएं जिला अस्पताल में दे रहे हैं, जबकि 30 पद ख़ाली पड़े हुए हैं. जिला अस्पताल में 22 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं हालांकि वर्तमान में यहां 24 मेडिकल डॉक्टर कार्यरत हैं मेडिसिन डॉक्टर भी एक ही है जिन पर सैकड़ों मरीज़ों की ज़िम्मेदारी है. ज़िला स्वस्थ्य केंद्रों की स्थिति भी काफी दयनीय है.भिंड में एक जिला अस्पताल, दो सिविल अस्पताल लहार और गोहद तहसील में हैं. पांच सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और 24 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, 186 उपस्वास्थ्य केन्द्र संचालित हैं CMHO डॉक्टर अजीत मिश्रा के मुताबिक़ भिंड ज़िले के 24प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर एक एक मेडिकल ऑफ़िसर हैं वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 2-3 डॉक्टरों की ही पदस्थापना है.

एक तरफ प्रदेश में कोरोना की तीसरी लहर के आने का अंदेशा, मौसम में हुए बदलाव के चलते बढ़ती बामारियां, डेंगू के मरीजों की बढ़ती संख्या और डॉक्टरों की कमी. सरकार के साथ ही लोगों के लिए भी चेतावनी है कि वे खुद को मजबूत रखें, बीमारियों से बचाव के उपाय सख्ती से अपनाएं ताकि उन्हें प्रदेश के लचर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का सामना न करना पड़े.

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