गुरू वंदन, अभिनंदन रायसेन के शालेगढ़ की शाला की बदल डाली तस्वीर, इस शिक्षक पर डाक्यूमेंट्री भी बना चुकी है भारत सरकार

author img

By

Published : Jul 23, 2021, 9:09 PM IST

mp-raisen-salegarh-village-teacher

साल 2009 में रायसेन की शालेगढ़ शाला में आए शिक्षक नीरज सक्सेना ने अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा आदिवासी इलाके में जंगल में बने इस स्कूल की तस्वीर बदलने में खर्च कर दिया है. इसका नतीजा यह है कि आज आसपास के इलाके में कोई भी बच्चा अशिक्षित नहीं है.

रायसेन। किसी भी मुश्किल को आसान बनादे वो है गुरू, जीवन को सही राह दिखा दे, वो है है गुरू और जो इंसान को इंसान होने का मतलब सिखा दे वो है गुरू. रायसेन के एक ऐसे ही गुरू और नौनिहालों को दी जा रही उनकी सीख को देखकर आप भी श्रद्धा से ऐसे गुरूजी का वंदन, अभिनंदन करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे. गुरू पूर्णिमा के अवसर पर हम आपको एक ऐसे ही गुरू जी से मिलवा रहे हैं जिन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया है.

रायसेन के शालेगढ़ की शाला की बदल डाली तस्वीर
मिसाल बनी शालेगढ़ की शालामध्य प्रदेश के रायसेन जिले के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत शालेगढ़ की प्राथमिक शाला पिछले कुछ सालों से ऐसी स्थिति में थी जहां बच्चे पढ़ने जाना तो दूर यहां आना भी पसंद नहीं करते थे.स्कूल तक पहुंचने के न तो पक्की सड़क थी और न ही दूसरे संसाधन. ऐसे में साल 2009 में यहां आए शिक्षक नीरज गुरूजी. नीरज ने बीड़ा उठाया इस स्कूल की सूरत बदलने का और गांव के हर बच्चे को शिक्षित करने का. काम बेहद मुश्किल था स्कूल तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं था, स्कूल की जर्जर सी बिल्डिंग गांव से 2-3 किलोमीटर दूर जंगली इलाके मे थी. यहां जरूरी सामान पहुंचाने का साधन थी सिर्फ बैलगाड़ी परेशानियां बहुत थीं, लेकिन इनसे बड़ा था गुरूजी नीरज सक्सेना का वादा और अपने वादे को निभाने के लिए उनका हौसला.

स्कूल के विकास में लगा दिया कई महीनों का वेतन

आसपास के आदिवासी इलाके के बच्चों के लिए यही एक सरकारी शाला थी, लेकिन यहां पढ़ाई का माहौल न होने की वजह से सभी पेरेंट्स अपने बच्चों का प्राइवेट स्कूल में दाखिला करा चुके थे. स्थिति विकट थी लेकिन हौंसले ने हार नहीं मानी. नीरज सक्सेना ने अपने कई महीने का वेतन स्कूल के विकास में लगा दिया. बिल्डिंग ठीक कराई, परिसर साफ सुथरा कराया और शिक्षा के अनूकूल माहौल तैयार किया. इसके बाद शुरू हुआ बच्चों के स्कूल आने का सिलसिला. बच्चों को भी अपने स्कूल की बदली हालत देखकर बेहद खुशी हुई. बच्चों और उनके परिजनों ने मास्टरजी की मदद की और आज इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 100 से ज्यादा हो चुकी है.

खेल-खेल में शिक्षा

नीरज सक्सेना के पढ़ाने का तरीका भी बच्चों को काफी पसंद आता है. अब लगभग एक बगीचे का रूप ले चुकी शाला में यहां -वहां कई बोर्ड लगे हुए है जिनपर शिक्षा के सबक लिखे हुए हैं. इससे खेलने कूदने के दौरान ही बच्चे ज्ञान हासिल कर रहे हैं. यह नीरज का समर्पण ही है कि कभी जिन आदिवासी इलाकों में लड़कियों पढ़ने लिखने नहीं भेजा जाता था , वहां आज किसी भी घर में कोई भी बच्चा ऐसा नहीं है जो शिक्षित न हो. इनमें लड़कियां भी बड़ी संख्या में शामिल हैं. जिनकी स्कूल में उपस्तिथि 100 फीसदी रहती है. यह नीरज के प्रयासों का ही नतीजा है कि उन्होंने पढ़ाई को खेलों से जोड़ा और बच्चों को पढ़ाई का बेहतर माहौल दिया. आज शालेगढ़ प्राथमिक शाला पर की गई नीरज की गई मेहनत रंग लाई है. आसपास के गावों के लोग और शिक्षा अधिकारी भी नीरज की तारीफ करते नहीं थकते.

बन चुकी है डाक्यूमेंट्री

यह शिक्षा के प्रति एक गुरू का समर्पण ही है अपने स्कूल, शिक्षा और शिक्षा देने के अनोखे तरीके के लिए उनपर एक डाक्यूमेंट्री भी बन चुकी है. नीरज के पढ़ाने की तरीके पर केंद्र सरकार ने एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई है. इसके अलावा भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय ने शिक्षक नीरज सक्सेना को अपना ब्रांड एंबेसडर भी बनाया है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.