डेंगू के मरीज बढ़े और प्लेटलेट्स की कालाबाजारी भी, WHO की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ा रहे हैं प्राइवेट हॉस्पिटल

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Published : Sep 15, 2021, 5:51 PM IST

Updated : Sep 16, 2021, 4:08 PM IST

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देश में डेंगू का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है ,डेंगू के मरीजों का आंकड़ा 2000 के ऊपर जा चुका है. अकेल भोपाल में जनवरी से अभी तक 204 केस आ चुके हैं. डेगूं के पीड़ितो को प्लेटलेट्स कम होने पर इलाज के तौर पर प्लेटलेट्स चढ़ाई जाती हैं. मामले बढ़ने के साथ ही प्लेटलेट्स की कालाबाजारी के मामले भी सामने आने लगे हैं.

भोपाल/ जबलपुर / ग्वालियर. प्रदेश में डेंगू का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है, प्रदेश भर में डेंगू के मरीजों का आंकड़ा 2000 के पार जा चुका है. अकेल भोपाल में जनवरी से अभी तक 204 केस आ चुके हैं. खास बात यह है कि डेंगू के मरीजों के बढ़ने के साथ ही प्लेटलेट्स की कालाबाजारी के मामले भी सामने आने लगे हैं. जबलपुर में ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें प्राइवेट हॉस्पिटल्स मरीजों पर एसडीपी प्रक्रिया के जरिए मरीज को प्लेटलेट्स दिए जाने का दवाब बना रहे हैं. हॉस्पिटल ऐसे मरीजों को भी प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत बता रहे हैं जिनका प्लेटलेट्स काउंट 50 हजार से ऊपर है. ऐसा कर हॉस्पिटल विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन की भी खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं. जबलपुर के अलावा ग्वालियर और भोपाल में भी ईटीवी की टीम ने रियलिटी चेक किया..एक रिपोर्ट

डेंगू के मरीज बढ़े और प्लेटलेट्स की कालाबाजारी भी
जबलपुर

जबलपुर के निजी अस्पताल अब कोरोना वायरस बाद डेंगू के मरीजों के साथ प्लेटलेट्स के नाम पर लूट कर रहे हैं. खास बात यह है कि यह लूट बेवजह की जा रही है. सिंगल डोनर प्लेटलेट्स डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन और सरकारी आदेशों को ठेंगा दिखा रहे हैं और आम आदमी निजी अस्पतालों में लूटा जा रहा है.

यह है WHO की गाइड लाइन
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की गाइड लाइन के अनुसार केवल कुछ ही गंभीर मरीजों को प्लेटलेट्स की जरूरत पड़ती है. डेंगू के मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्पष्ट गाइडलाइन है कि जब तक डेंगू के मरीज का प्लेटलेट्स काउंट 10000 प्रति माइक्रो लीटर के नीचे नहीं जाता है तब तक उसे बाहर से प्लेटलेट्स नहीं देनी चाहिए. इसमें एक शर्त यह भी है कि यदि किसी मरीज को ब्लीडिंग हो रही हो तो बाहर से प्लेटलेट्स दी जा सकती हैं, लेकिन यदि प्लेटलेट्स इससे ज्यादा हैं तो बाहर से मरीज को प्लेटलेट्स देने की जरूरत नहीं है. मध्य प्रदेश सरकार ने इस गाइडलाइन के अनुसार इस संख्या को 20000 पर रखा है. एक स्वस्थ व्यक्ति में सामान्य प्लेटलेट काउंट 150 हजार से 450 हजार प्रति माइक्रोलीटर होता है. जब ये काउंट 150 हजार प्रति माइक्रोलीटर से नीचे चला जाता है, तो इसे लो प्लेटलेट माना जाता है.

डेंगू के मरीज बढ़े और प्लेटलेट्स की कालाबाजारी भी

प्लेटलेट्स की स्थिति पर डिपेंट करती है बीमारी की गंभीरता
जबलपुर में इस समय डेंगू का कहर चल रहा है और अस्पतालों में डेंगू के मरीज भरे पड़े हैं डेंगू का मरीज जैसे ही अस्पताल पहुंचता है डॉक्टर उसकी प्लेटलेट्स काउंट चेक करते हैं, सामान्य मरीज में प्लेटलेट्स दो लाख से लेकर साढ़े चार लाख तक होती हैं. डेंगू के मरीज में इनकी संख्या कम हो जाती है. प्लेटलेट्स की मौजूदा स्थिति के आधार पर ही डेंगू के मरीज की गंभीरता जानी जाती है. डॉक्टर मरीज की गंभीरता को देखते हुए मरीज के परिजनों से प्लेटलेट्स का इंतजाम करने के लिए कहते हैं.

डेंगू के मरीज बढ़े और प्लेटलेट्स की कालाबाजारी भी

प्लेटलेट्स देने के हैं 2 तरीके

पहला तरीका

प्लेटलेट्स देने के दो तरीके हैं. इसका एक सरल तरीका है जिसमें खून से प्लेटलेट्स निकाली जाती हैं जिसे प्लेटलेट रिच प्लाज्मा के नाम से जानते हैं. इसमें खून से प्लेटलेट्स अलग की जाती हैं, लेकिन इस तरीके से मरीज को कम प्लेटलेट्स मिल पाती हैं. हालांकि यह तरीका बहुत सस्ता और महज 300 रुपए में यह पूरी प्रक्रिया हो जाती है.

दूसरा तरीका

थोड़ा कठिन और बहुत महंगा है. इसे एसडीपी के नाम से जाना जाता है एसडीपी में प्लेटलेट्स डोनर को एक बड़ी मशीन से जोड़ा जाता है और इसके जरिए ही प्लेटलेट्स सेपरेट कर कर ज्यादा मात्रा में सीधे ही मरीज को दी जाती है. एसडीपी ब्लड के जरिए एक घंटे में प्लेटलेट्स निकालता है। डोनर के शरीर से ब्लड निकालकर मशीन में ले जाया जाता है वहां से प्लेटलेट्स अलग होकर मरीज के शरीर तक पहुंचता है और बाकि ब्लड दोबारा डोनर के शरीर में पहुंचाया जाता है। खास बात यह भी है कि प्लेटलेट्स देने वाला व्यक्ति 72 घंटे बाद दोबारा प्लेटलेट्स दे सकता है. इस विधि से प्लेटलेट्स चढ़ाने से मरीज में 50 से 60 हजार तक प्लेटलेट्स बढ़ता है.जबलपुर की पैथोलॉजी में प्लेटलेट्स देने वाले एक सिंगल डोनर और इस पूरी प्रक्रिया की कीमत करीब ₹15000 तक वसूली जा रही है. खास बात यह है कि डॉक्टर मरीजों को डरा कर उनसे इसी प्रक्रिया के जरिए प्लेटलेट्स लाने की मांग कर रहे हैं, जबकि कई मरीज ऐसे हैं जिन्हें इसकी जरूरत ही नहीं है और उनका प्लेटलेट्स काउंट 50000 से ऊपर है बावजूद इसके डॉक्टरों के सामने मरीज के परिजन कुछ नहीं कर पाते.



व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं प्राइवेट हॉस्पिटल
जबलपुर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने इस गड़बड़ झाले को रोकने के लिए गाइडलाइन भी बना कर रखी हुई है और यदि कोई शिकायत करता है कि उसकी प्लेटलेट्स ज्यादा थी, इसके बावजूद डॉक्टर अगर उनसे एचटीपी की मांग करता है तो ऐसे अस्पताल और डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.ब्लड बैंक को भी यह कहा गया है की एसटीपी यदि किसी को दे रहे हैं तो उसका प्लेटलेट्स काउंट कितना है इसकी जानकारी भी स्वास्थ्य विभाग को रोजाना मुहैया करवानी होती है, लेकिन इसके बावजूद निजी अस्पताल सरकारी व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं. मरीज के परिजनों पर एसटीपी का दबाव बनाया जाता है और मरीज के गंभीर बीमार होने का डर दिखाकर इस तरह की लूट को अंजाम दिया जा रहा है.

डेंगू के मरीज बढ़े और प्लेटलेट्स की कालाबाजारी भी

डर का फायदा उठाकर होती है कालाबाजारी
करोना के बाद मध्य प्रदेश में डेंगू को लेकर प्रदेश में अलर्ट जारी है राजधानी भोपाल के भी कई एरिया को हाई अलर्ट जोन घोषित किया गया है. सामान्य तौर पर डेंगू से पीड़ित होने पर मरीज के शरीर में खून में मौजूद प्लेटलेट्स बड़ी मात्रा में गिरने लगती हैं जिससे मरीज की हालत बिगड़ने लगती है. ऐसे में प्राइवेट अस्पताल मरीज के डर का फायदा उठाकर उसे प्लेटलेट्स चढ़वाने की सलाह देते हैं. यहीं से मरीज कालाबाजारी करने वाले दलालों के चंगुल में फंस जाता है. हमारी टीम में भोपाल ब्लड बैंक, तत्पर ब्लड बैंक के साथ ही भोपाल के हमीदिया और जेपी अस्पताल के ब्लड बैंक में जाकर वहां की स्थिति को समझा. हमें किसी भी ब्लड बैंक में कोई मरीज ऐसा नजर नहीं आया जो डेंगू के लिए प्लेटलेट्स और ब्लड का इंतजाम करने आया हो. सीएमएचओ के मुताबिक अगस्त में डेंगू के कुछ बड़े मामले सामने आए थे, लेकिन इन मामलों में प्लेटलेट्स को लेकर कोई शिकायत सामने नहीं आई वहीं प्लेटलेट्स की कालाबाजारी से जुड़ा भी कोई मामला नहीं आया है.

प्लाज्मा और प्लेटलेट्स लेते समय बरतें ये सावधानी

पिछले साल ग्वालियर में मिलावटी (नकली) प्लाज्मा सप्लाई किए जाने का मामला पूरे देश भर में चर्चित हुआ था. क्या प्लाज्मा भी नकली हो सकता है, क्या प्लेटलेट्स भी मैनिपुलेट कर तैयार की जा सकती है. मरीजों और उनके परिजनों के दिमाग में इसे लेकर कई तरह के भ्रम भी हैं. इसी भ्रम को दूर करने के लिए और प्लेटलेट्स लेते समय क्या सावधानी बरती जाए इस संबंध में ईटीवी भारत में जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज में पैथोलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉक्टर की मंगल से बातचीत की उन्होंने बताया कि प्लेटलेट्स नकली नहीं होती और न ही इसे तैयार किया जाता है, लेकिन मैनुअली इसके कंसंट्रेशन में बदलाव किया जा सकता है. डॉक्टर ने बताया कि प्लेटलेट्स लेते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए.

- मरीजों के परिजनों को किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में से ही प्लाज्मा लेना चाहिए यह पूरी तरह सुरक्षित होता है.

- जब प्लेटलेट्स कंसलटेंट जो प्लाज्मा (तैयार किया गया है) को डाल्यूट कर सकते हैं और उसकी सांद्रता बदल सकती है.

- यह शरीर के लिए बेहद हानिकारक होता है.

- प्लेटलेट्स लेते समय सावधानी रखना काफी महत्वपूर्ण है. लोगों को यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि उनके पास खुद का या डोनर का अगर कोई दोनों नहीं है तो सरकारी ब्लड बैंक या प्रशासन के द्वारा मान्यता प्राप्त ब्लड बैंक से ही प्लेटलेट्स लेना चाहिए.

- इसके साथ ही लोगों को अस्पतालों के वार्ड बॉय, डॉक्टर्स और अन्य कर्मचारियों से प्लेटलेट्स नहीं लेना चाहिए.

- किसी बाहरी व्यक्ति से भी प्लेटलेट्स नहीं लेना चाहिए.

डेंगू के मरीज बढ़े और प्लेटलेट्स की कालाबाजारी भी

लोगों को किया जा रहा है जागरुक
भोपाल के सीएमएचओ प्रभाकर तिवारी कहते हैं कि भोपाल में तमाम इंतजाम डेंगू को लेकर किए जा रहे हैं. लगातार फॉगिंग के साथ ही जांच भी की जा रही है. वहीं लोगों को जागरुक करने के साथ ही यह निर्देश भी दिए जा रहे हैं कि घरों में पानी जमा ना होने दें. साथ ही जांच दल समय-समय पर मोहल्लों में जाकर डेंगू के लार्वा को नष्ट करने की कार्रवाई भी कर रहा है.

ग्वालियर

जिले में हर रोज बढ़ रही डेंगू मरीजों की संख्या के बाद प्लेटलेट्स की मांग भी बढ़ती जा रही है. इसी बीच शहर में प्लेटलेट्स की कालाबाजारी का खतरा भी बढ़ गया है. हालांकि अभी तक जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है. अंचल की सबसे बड़े जयारोग्य अस्पताल में स्थित रेड क्रॉस ब्लड बैंक में रोजाना 30 से 40 ऐसे मरीजों के परिजन पहुंच रहे हैं जिन्हें प्लेटलेट की आवश्यकता है. रेड क्रॉस सोसाइटी ब्लड बैंक की प्रभारी डॉ रेनू जैन बताती हैं कि रोज 30 से 40 मरीजों को प्लेटलेट दिया जा रहा है. अगर कोई डोनर रहता है तो उसे ब्लड के बदले प्लेटलेट दी जाती है. इसमें सिर्फ 300 रुपए खर्च आता है. हालांकि शहर के प्राइवेट ब्लड बैंकों में जाने पर मरीज को प्लेटलेट्स के नाम पर 10 से 15 हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं, अगर कोई डोनर उपलब्ध नहीं है तो मरीजो के परिजनों से दुगनी रकम तक वसूली जा रही है. लेकिन इसे लेकर प्रशासन अभी लापरवाह बना हुआ है.

Last Updated :Sep 16, 2021, 4:08 PM IST
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