Data Protection Bill: संसद में बवाल मचने से पहले इस बिल में आपकी प्राइवेसी से जुड़ा पेंच जान लीजिए

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Published : Nov 24, 2021, 9:34 PM IST

Updated : Nov 25, 2021, 7:48 PM IST

deta protection bill

संयुक्त संसदीय समिति यानि Joint Parliamentary Committee (JPC) ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल (Personal Data Protection Bill) के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी है. लेकिन इस बिल को लेकर विपक्षी सांसदों ने आपत्ति दर्ज कराई है. ये बिल संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है. सवाल है कि क्या अब आपका डेटा सरकार की पहुंच में हो जाएगा ? इस बिल को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल ? क्या हैं इस बिल में प्रावधान ? जानने के लिए पढ़िये पूरी ख़बर

हैदराबाद: व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक (Personal Data Protection Bill) को लेकर बनी संयुक्त संसदीय समिति यानि Joint Parliamentary Committee (JPC) ने बिल के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी है. बिल को साल 2019 में जेपीसी के पास भेजा गया था और अब दो साल के बाद इसे समिति की मंजूरी मिली है. कहा जा रहा है कि इसे सरकार आगामी संसद सत्र में पेश कर सकती है. लेकिन डेटा प्रोटेक्शन का ये बिल कई सवालों के साथ आ रहा है ? इस बिल के कुछ पेंच ऐसे हैं जो विपक्ष को रास नहीं आ रहे हैं.

डेटा प्रोटेक्शन बिल के ड्राफ्ट में क्या है ?

दिसंबर 2019 में मोदी कैबिनेट ने व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को मंजूरी दी थी. जो भारतीय नागरिकों के डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा से संबंधित था. इस बिल का ड्राफ्ट किसी अपराध को रोकने या उसकी जांच के लिए केंद्रीय एजेंसियों की निजी डाटा तक पहुंच को आसान बनाता है. यानि जांच एजेंसियां किसी अपराध की जांच, देश में शांति, कानून व्यवस्था या सुरक्षा का हवाला देकर आपका पर्सनल डेटा को खंगाल सकती हैं और इसके लिए उस व्यक्ति या किसी अन्य की सहमति की जरूरत नहीं होगी.

बिल में आपकी प्राइवेसी से जुड़ा पेंच जान लीजिए

ये बिल सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को प्रस्तावित प्रावधानों से बाहर रखने की इजाजत देता है. यानि सीबीआई, ईडी जैसी केंद्रीय एजेसियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जा सकता है.

विपक्ष को क्यों है आपत्ति ?

विरोध करने वाले सांसदों का कहना है कि कैसे बिना संसद की अनुमति के केंद्रीय एजेंसी को इस कानून के प्रावधानों से छूट दी जा सकती है. कहा जा रहा है कि विपक्षी सांसदों ने सुझाव भी दिया था कि सरकार को इस तरह का कदम उठाने से पहले संसद की मंजूरी लेनी चाहिए ताकि जवाबदेही हो सके. लेकिन ये सुझाव स्वीकर नहीं किया गया. विरोध करने वाले कुछ सांसदों की दलील है कि जांच एजेंसियों को दायरे से बाहर रखकर उन्हें ऐसी ताकत दी जा रही है जिसका दुरुपयोग भी हो सकता है.

विपक्षी सांसदों ने बिल के कुछ प्रावधानों पर जताया ऐतराज
विपक्षी सांसदों ने बिल के कुछ प्रावधानों पर जताया ऐतराज

सासंद जयराम रमेश मुताबिक बिल के सेक्शन 35 में बदलाव करते हुए सरकारी एजेंसियों को छूट देने से पहले संसद की अनुमति जरूरी होनी चाहिए. इसी तरह सेक्शन 12 एजेंसियों को सहमति के मामले में कई छूट प्रदान करती है, जो सीमित होनी चाहिए. सूत्रों के मुताबिक टीएमसी सांसदों अपने असहमति नोट में इस विधेयक को स्वभाव से ही नुकसान पहुंचाने वाला बताया और कहा कि इसमें निजता के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उचित उपाय नहीं है.

किसने दर्ज कराई है आपत्ति ?

जेपीसी में सभी दलों की भागीदारी होती है यानि सभी दल के सांसद इसका हिस्सा होते हैं. बीजेपी सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति ने बिल के ड्राफ्ट को मंजूरी तो दे दी है लेकिन 30 सदस्यों वाली इस जेपीसी के 7 सदस्यों ने इस बिल के पर आपत्ति जताई है. कांग्रेस के 4 सांसदों जयराम रमेश, मनीष तिवारी, गौरव गोगोई और विवेक तन्खा के अलावा टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन, महुआ मोइत्रा और बीजू जनता दल के अमर पटनायक ने असहमति जताई है. इन सांसदों ने असहमति पत्र भी दिया है. इन सभी सांसदों का कहना है कि ये बिल कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाएगा. इसमें जासूसी और इससे जुड़े अत्याधुनिक ढांचा बनाने की कोशिश में पैद हुई चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया है.

जेपीसी ने ड्राफ्ट को दी मंजूरी
जेपीसी ने ड्राफ्ट को दी मंजूरी

सरकार की क्या दलील है

इस जेपीसी के अध्यक्ष बीजेपी सांसद पीपी चौधरी के मुताबिक सरकार और केंद्रीय एजेंसियों को उसी स्थिति में छूट दी गई है जब उसका इस्तेमाल लोगों के फादे में हो. उन्होंने साप कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों पर किसी तरह की अनुमति की जरूरत नहीं होगी. जेपीसी को इस बिल से जुड़े 93 सुझाव मिले थे, सदस्यों और संबंधित पक्षों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद ये रिपोर्ट तैयार की गई है. इस प्रस्तावित बिल का वैश्विक असर होगा और डाटा सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानक भी तय होंगे.

निजता का अधिकार और डेटा प्रोटेक्शन बिल

साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट के 9 न्यायाधीशों की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजता के अधिकार (right to privacy) को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया था. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि निजता मानव गरिमा का संवैधानिक मूल है. अब कुछ जानकार सवाल उठा रहे हैं कि निजता का अधिकार और डेटा प्रोटेक्शन बिल एक साथ कैसे चल सकते हैं, क्योंकि अगर सरकारी एजेंसियों को किसी के भी निजी डेटा को खंगालने की छूट मिलती है तो निजता का हनन लाजमी है. हालांकि अभी इस बिल को संसद की अग्निपरीक्षा से गुजरना बाकी है.

संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है बिल
संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश हो सकता है बिल

संसद में बिल पर बवाल होना तय

माना जा रहा है कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र (parliament winter session 2021) में ये बिल पेश हो सकता है. जेपीसी के 30 में से 7 विपक्षी सांसदों का विरोध साफ इशारा करता है कि संसद में बिल पर हंगामा और बवाल होना तय है. आगामी 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर चुके हैं ऐसे में निजता और एजेंसियों को बेहिसाब ताकत देने वाला ये बिल सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध की नई वजह बन सकता है.

पेगासस जासूसी कांड की छाया बढ़ाएगी सरकार की मुश्किल ?

सरकार इस बिल को कानून बनाने की मंशा लेकर चल रही है और विपक्ष विरोध के मूड में है. इसके अलावा बीते दिनों पेगासस जासूसी कांड के साए के बीच इस बिल को लाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है. पेगासस की वजह से सरकार को संसद से लेकर सड़क और सोशल मीडिया तक पर विरोध झेलना पड़ा था. सुप्रीम कोर्ट में भी पेगासस मामले की सुनवाई चल रही है, ऐेसे में कई जानकार मानते हैं कि इस बिल को संसद से पास करवाने की राह में कई रोड़े हैं.

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Last Updated :Nov 25, 2021, 7:48 PM IST
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