Sharad Yadav ईमानदारी, नैतिकता व संघर्ष की मूर्ति शरद यादव जैसे नेता बिरले, पढ़ें- उनके जीवन की पूरी कहानी

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Published : Jan 13, 2023, 5:22 PM IST

Sharad Yadav

जनता दल (यू) के पूर्व अध्यक्ष व वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव (JD U former president Sharad yadav) के निधन से समाजवाद का एक बड़ा स्तंभ ढह गया. एक ऐसा नेता जो 7 बार सांसद रहे, कई बार केंद्रीय मंत्री रहे, दो दशक तक केंद्र की राजनीति में खासा रसूख रहा. इसके बावजूद देश की राजधानी दिल्ली में खुद के रहने का ठिकाना तक नहीं बना पाए. भारतीय राजनीति में ऐसे ईमानदार व नैतिकता के सभी पैमानों पर खरा उतरने वाले नेता बिरले हैं. आइए जानते हैं इस असली जननायक की पूरे जीवन की कहानी.

शरद यादव के जीवन की कहानी

भोपाल/ जबलपुर/नर्मदापुरम। देश में समाजवाद का एक बड़ा चेहरा आज हमारे बीच नहीं रहा. देश की राजनीति को हमेशा नैतिकता का आईना दिखाने वाले जनता दल यू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव हमारे बीच नहीं रहे. कुछ दिनों से उनकी सेहत कुछ ठीक नहीं चल रही थी. दिल्ली-एनसीएआर के गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में शरद यादव ने 75 साल की उम्र में गुरुवार रात 9 बजे अंतिम सांस ली. निधन की सूचना उनकी बेटी ने सोशल मीडिया पर जारी की. मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में जन्मे शरद यादव ने सियासत की पूरी इबारत भले ही बिहार में पढ़ी हो. लेकिन राजनीति की एबीसीडी मध्यप्रदेश से शुरू की. इसलिए उनके निधन से बिहार के साथ ही मध्यप्रदेश भी गमगीन है.

जबलपुर से सियासत का सफर : शरद यादव का जन्म 1 जुलाई 1947 को एमपी के होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) जिले के बाबई तहसील स्थित आंखमऊ गांव में एक किसान परिवार में हुआ. साल 1971 में जबलपुर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उनकी रुचि राजनीति में हुई. यहां से वह छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद शरद यादव ने राजनीति की जो सीढ़ी चढ़ी तो आगे बढ़ते ही गए. शरद यादव छात्र जीवन से ही लिखने-पढ़ने में काफी होनहार थे. उन्होंने जबलपुर से सिविल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडल भी जीता. वह चाहते तो उस समय किसी भी सरकारी विभाग में इंजीनयिर बड़ी आसानी से बन सकते थे. लेकिन उनके मन में समाजवादी आंदोलन के सूत्रधार राम मनोहर लोहिया के विचार चल रहे थे. इसीलिए वह लोहिया के आंदोलनों में भाग लेने लगे. शरद यादव को मीसा के तहत कई बार गिरफ्तार किया गया. वह 1970, 72 और 75 में जेल में भी रहे.

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जनता दल यू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का निधन

जबलपुर से दो बार लोकसभा चुनाव जीते : शरद यादव ने सियासी सफर छात्र राजनीति से शुरू किया. इसके बाद देश की सक्रिय राजनीति में पहली बार उन्होंने 1974 में पहली बार जबलपुर लोकसभा सीट से किस्मत आजमाई. इस दौरान जेपी आंदोलन जोरों पर चल रहा था. जेपी ने उन्हें जनता पार्टी से जबलपुर से उम्मीदवार बनाया. शरद यादव ने सबको चौंकाते हुए इस सीट पर जीत हासिल की और संसद भवन की दहलीज पर पहुंचे. इसके बाद साल 1977 में भी वे इसी सीट से सांसद चुने गए. इसके बाद शरद यादव ने यूपी व बिहार में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दी. चूंकि समाजवाद का उस समय प्रमुख गढ़ बिहार ही था. इसलिए बिहार में शरद यादव की लोकप्रियता बढ़ने लगी. इसके बाद राजनीति की असली पारी वह बिहार से खेलते रहे.

केंद्र की राजनीति में ऐसा रहा रसूख : शरद यादव को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपना राजनीतिक गुरु मानते रहे हैं. शरद यादव ने जनता दल यू के अध्यक्ष की भूमिका सराहनीय तरीके से निभाई. वह कुल 7 बार सांसद रहे. राजनीति के जानकार बताते हैं शरद यादव भारत के ऐसे पहले नेता नेता हैं जिन्होंने तीन राज्यों से लोकसभा का चुनाव जीता. राज्यसभा जाने के तीन साल बाद 1989 में उन्होंने उत्तरप्रदेश की बदाऊं लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता. शरद यादव यादव 1989-90 तक केंद्रीय मंत्री रहे. उन्हें कपड़ा और फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय का जिम्मा मिला. यूपी की राजनीति के बाद उन्होंने बिहार में सियासत की पारी खेली. वह 1991 में बिहार के मधेपुरा लोकसभा सीट से चुनाव जीते. इसके बाद उन्हें 1995 में जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया. 1996 में वे 5वीं बार सांसद बने. 1997 में उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया. इसके बाद 1999 में उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया और एक जुलाई 2001 को वह केंद्रीय श्रम मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बने. 2004 में वे दूसरी बार राज्यसभा सांसद चुने गए. 2009 में वे सातवीं बार सांसद बने, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें मधेपुरा सीट से हार मिली.

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राम मनोहर लोहिया की तस्वीर के पास बैठे शरद यादव

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अपने गृह गांव से काफी लगाव रहा : शरद यादव के निधन की खबर पाते ही नर्मदापुरम (होशंगाबाद) में शोक की लहर दौड़ गई. पैतृक गांव में पहुंचकर लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की. शरद यादव के भाई एसपीएस यादव ने बताया कि उनका बचपन से काफी लगाव यहां से रहा है. हर साल वह यहां आते थे और लोगों से मिलते थे. गांव के लोगों से भी उनका काफी गहरा लगाव रहा है. जब भी वह यहां आते थे तो सुकून के पल गुजारते थे. जैसे ही सोशल मीडिया पर उनके निधन की जानकारी लोगों को लगी तो अनेक संगठनों व सभी दलों के नेताओं ने शोक व्यक्त किया.

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